हल्द्वानीः देवभूमि के पर्वतीय अंचलों में ठंड के मौसम में गहत की दाल लजीज मानी जाती है. जिसकी तासीर गर्म और औषधीय गुणों से भरपूर मानी जाती है. प्रोटीन तत्व की अधिकता से यह दाल शरीर को ऊर्जा देती है, साथ ही पथरी की बीमारी में लाभप्रद मानी जाती है.
सर्द मौसम में गहत की दाल का स्वाद हर किसी की जुबां पर आ ही जाता है. गहत पर्वतीय क्षेत्रों की दालों में अपना विशेष स्थान रखती है. गहत का वानस्पतिक नाम डौली कॉस बाईफ्लोरस है. सर्द मौसम में पर्वतीय क्षेत्रों के हर घर में इस दाल को भोजन में प्रयोग किया जाता है. पहाड़ के सर्द मौसम में गहत की दाल लजीज दाल मानी जाती है. बात उत्पादन की करें तो पूरे उत्तराखंड में गहत की दाल की खेती करीब 13 हजार हेक्टेयर में की जाती है. वर्ष 2017-18 में जहां गहत की दाल का उत्पादन पूरे प्रदेश में 10 हजार 555 मीट्रिक टन था, जो बढ़कर 2018-19 में 11 हजार 511 मीट्रिक टन हो गया है.
संयुक्त कृषि निदेशक प्रदीप कुमार सिंह के अनुसार पहाड़ के काश्तकार अब अन्य फसलों के साथ-साथ पारंपरिक फसल मडुआ, गहत, राजमा, भट्ट की खेती की ओर रुख कर रहे हैं. कृषि विभाग भी किसानों को सभी प्रकार की सुविधाएं मुहैया करा रहा है.
मडुवे की खेती पूरे प्रदेश में करीब 91 हजार 937 हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है जिसका उत्पादन करीब 1लाख 9 हजार 800 मीट्रिक टन है. आंकड़े की बात करें तो पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा गहत दाल का उत्पादन टिहरी जनपद में होता है, जहां 3,679 हेक्टेयर क्षेत्र में खेती की जाती है जबकि 6,491 मीट्रिक टन का उत्पादन भी है.
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