उत्तराखंड में कम समय में मालामाल होंगे किसान हल्द्वानी:सरकार किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही हैं. इसी के तहत उत्तराखंड सरकार द्वारा रेशम कीट पालन की योजना भी चलाई जा रही है. किसान पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम कीट पालन को अपना कर अपनी आर्थिकी को मजबूत कर सकते हैं. सरकार रेशम कीट पालन के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है.
रेशम कीट पालन को दिया जा रहा बढ़ावा:उपनिदेशक रेशम विभाग कुमाऊं मंडल हेमचंद्र ने बताया कि उत्तराखंड के किसानों के लिए इस समय रेशम उत्पादन का अनुकूल मौसम है. रेशम विभाग रेशम उत्पादकों के लिए कीट उपलब्ध करा रहा है. उन्होंने बताया कि रेशम कीट पालन का वर्ष में दो बार अनुकूल मौसम होता है. मार्च और सितंबर में रेशम कीट को शहतूत के पत्ते खिलाकर रेशम का कोया तैयार किया जाता है. कुमाऊं मंडल में 3000 से अधिक किसान रेशम उत्पादन के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं, जिनको रेशम के कीट उपलब्ध कराये जा रहे हैं. रेशम के कीट को पालने के लिए किसानों को निशुल्क शहतूत के पौधे उपलब्ध कराए गए हैं. जिससे अधिक से अधिक किसान रेशम उत्पादन के क्षेत्र से जुड़ सकें.
पढ़ें-रुद्रप्रयाग के माल्टा को नहीं मिल रहा उचित दाम, किसानों ने मांगी पेड़ों को काटने की अनुमति
किसान इतनी कर सकते हैं आमदनी:हेमचंद्रने बताया कि कुमाऊं मंडल में 40 रेशम के सेंटर हैं. जिनके माध्यम से किसानों को कीट उपलब्ध कराए जा रहे हैं. किसानों के लिए एक लाख दो हजार डीएलएफ रेशम अंडे से कीट तैयार किए हैं. जो कुमाऊं मंडल के अलग-अलग जिलों के करीब 3000 किसानों को वितरित किये जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि किसान अपनी परंपरागत खेती के साथ-साथ रेशम उत्पादन कर सकता है. मात्र 21 दिन तक इन रेशम के कीड़ों को पालने के बाद वह उनसे तैयार रेशम को विभाग को उपलब्ध कराएंगे. किसानों को उनके रेशम का उचित मूल्य दिया जाएगा. किसान अगर रेशम उत्पादन का काम करते हैं तो अन्य खेती के साथ साल में दो बार रेशम का उत्पादन कर 40 से 50 हजार तक की आमदनी अलग से हो सकती है.
पढ़ें-पहाड़ी फलों का राजा माल्टा अब अन्य राज्यों में भी बना रहा पहचान
रेशम की बाजार में भारी मांग:रेशम के कीड़ों की लाइफ सिर्फ 25 से 28 दिन की होती है. वहीं रेशम लेने के लिये इन्हें शहतूत की पत्तियों पर डाला जाता है. रेशम के मादा कीड़े अपने जीवन काल में 450-500 अंडे देती हैं. जिसमें से अगले 10 दिनों में लार्वा निकलते हैं. ये लार्वा अपने मुंह से लार निकालते हैं, जिसमें तरल प्रोटीन मौजूद होता है. हवा लगने पर ये लार्वा धीरे-धीरे सूखकर धागे का रूप ले लेता है और रेशम के कीड़े इस धागे को अपने चारों ओर लपेट लेते हैं, जिसे रेशम का कोया कहा जाता है. विभाग के मुताबिक एक एकड़ में करीब 100 किग्रा रेशम के कीड़ों का उत्पादन किया जा सकता है. वहीं एक एकड़ की खेती के मेड़ पर 300 शहतूत के पेड़ साल भर में लगा सकते हैं. सरकार ने रेशम किसानों को उनके उत्पादित रेशम का समर्थन मूल्य₹360 प्रति किलो घोषित किया हुआ है. लेकिन बाजार में डिमांड के अनुसार ₹500 से लेकर ₹600 प्रति किलो तक रेट मिलता है.