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जिम कार्बेट: वो शिकारी जिसका नाम आज भी जिंदा है

नैनीताल के कालाढूंगी में गुरुवार को जिम कॉर्बेट का 144वां जन्मदिन धूमधाम के साथ मनाया गया. ब्रिटिश शिकारी जिम कॉर्बेट का जन्म 1875 में आज ही नैनीताल में हुआ था. वे ब्रिटिश इंडियन आर्मी में कर्नल थे. 1907 से 1938 के बीच कुमाऊं और गढ़वाल के गांवों में नरभक्षी बाघों और तेंदुओं का आतंक था. उन्होंने एक नरभक्षी बाघ का शिकार किया था, जो 436 लोगों को मार चुका था. बाघों के संरक्षण के लिए नेशनल रिजर्व बनाने में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही. 1957 में इस पार्क को उन्हीं के सम्मान में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क नाम दिया गया.

कालाढूंगी

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Published : Jul 25, 2019, 7:16 PM IST

कालाढूंगी: नैनीताल के कालाढूंगी में गुरुवार को जिम कॉर्बेट का 144वां जन्मदिन धूमधाम के साथ मनाया गया. इस समारोह का आयोजन कॉर्बेट संग्रहालय में किया गया. जिसमें बीजेपी के विधायक बंशीधर भगत समेत कई लोगों ने हिस्सा लिया. इस मौके पर कई कार्यक्रम भी आयोजित किये गए.

जिम कार्बेट का 144वें जन्मदिन हर्षोल्लास के साथ मनाया गया.

कार्बेट ग्राम विकास समिति द्वारा आयोजित जन्मदिवस कार्यक्रम में कालाढूंगी कार्बेट संग्रहालय में लगी जिम कार्बेट की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. इसके साथ ही ग्रामीणों का कहना है कि जिम कॉर्बेट के योगदान को हमेशा याद रखा जायेगा. इसमें विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया, जिसमें गांव के बच्चों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. जिसके बाद उन बच्चों को पुरस्कृत भी किया गया.

इस मौके पर क्षेत्रीय विधायक बंशीधर भगत सहित पार्क वार्डन शिवराज चंद, शोध रेंज अधिकारी संजय पांडे, आरएन गौतम और समिति अध्यक्ष राजकुमार पांडे शामिल रहे.

कौन थे जिम कॉर्बेट?
जेम्स ए. जिम कार्बेट (25 जुलाई 1875 - 19 अप्रैल 1955) ब्रिटिश इंडियन आर्मी में कर्नल थे. 1907 से 1938 के बीच कुमाऊं और गढ़वाल के गांवों में नरभक्षी बाघों और तेंदुओं का आतंक था. उन्होंने एक नरभक्षी बाघ का शिकार किया था, जो 436 लोगों को मार चुका था. बाघों के संरक्षण के लिए नेशनल रिजर्व बनाने में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही. 1957 में इस पार्क को उन्हीं के सम्मान में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क नाम दिया गया.

जिम कार्बेट ने मानवीय अधिकारों के लिए संघर्ष किया और संरक्षित वनों के आंदोलन का भी प्रारंभ किया. उन्होंने नैनीताल के पास कालाढूंगी में आवास बनाया था. यह स्थान आज भी यहां आने वाले पर्यटकों उनकी याद दिलाता है. वो न केवल एक शिकारी थे बल्कि एक संरक्षक, चमड़े का कार्य करने वाले, जंगली जानवरों की फोटो खींचने वाले और बढ़ई भी थे.

वे शिकार करनें में जितने दक्ष थे, उतने ही प्रभावशील लेखक भी थे. शिकार-कथाओं में जिम कार्बेट का नाम सबसे आगे है. उनकी 'भाई इण्डिया' पुस्तक बहुत चर्चित है. आज विश्व में उनका नाम प्रसिद्ध शिकारी से जाना जाता है. बाद में बाघों की घटती संख्या देखकर उन्होंने सिर्फ फोटोग्राफी शुरू कर दी थी.

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