हल्द्वानीःकंक्रीट में खो रहे इंसानों को जगाने की कोशिश है विश्व पर्यावरण दिवस. विकास की इस अंधी दौड़ के नाम पर धरती को खत्म होने से रोका नहीं गया तो जल-जंगल-जमीन से इंसान पूरी तरह महरूम हो जाएगा.लगातार कंक्रीट के बढ़ते जंगलों के कारण मानव जीवन तो प्रभावित हुआ ही है, मौसम चक्र भी असंतुलित हो रहा है. उत्तराखंड में करीब 70 फीसद भू-भाग जंगल हैं. कुमाऊं मंडल के सबसे बड़े महानगर हल्द्वानी में जहां लोगों का दबाव बढ़ता जा रहा है, तो वहीं कंक्रीट के जंगल दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं.
हल्द्वानी शहर आज महानगर का रूप ले चुका है. लगातार वनों का दोहन और खेत खलिहानों को खत्म कर बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनाने से यहां तापमान में जो परिवर्तन आया है वो काफी चिंताजनक है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इन सब के पीछे इंसानी जीवन और स्वार्थ है, क्योंकि प्रदूषण फैलाने और पेड़ों के दोहन में भारत विश्व का नंबर एक देश है. विश्व के 15 गर्म शहरों में 11 से लेकर 14 शहर भारत के हैं. इससे साफ है कि किस तरह कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं और पेड़-पौधों की आबादी कम हो रही है.
इस प्रक्रिया से न सिर्फ छोटे-छोटे शहरों के पर्यावरण पर फर्क पड़ रहा है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग जैसे खतरे बढ़ने लगे हैं. ऐसी अवस्था में सबसे पहला उत्तरदायित्व देश की जनता का है जो अपने स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक नहीं हैं.