नैनीताल के जियारानी मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़. हल्द्वानी: काठगोदाम के रानीबाग में चित्रशिला घाट पर स्थित जियारानी माता का मंदिर है. मकर संक्रांति पर मंदिर में माता के आशीर्वाद के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. कत्यूर वंश के लोग यहां माता जियारानी की पूजा अर्चना कर उनका आशीर्वाद लेते हैं और पवित्र गौला नदी में स्नान कर सुख शांति की प्रार्थना करते हैं.
कहा जाता है कि लगभग 800 साल पहले कत्यूरी राजवंश का राज्य था, जिनकी राजधानी कत्यूर घाटी बागेश्वर हुआ करती थी. कत्यूरी राजवंश की रानी जियारानी थी. 12वीं शताब्दी में मुगल और तुर्कों का शासन बढ़ता चला गया. मुगलों ने राज्य को लूटने के लिए गढ़वाल में हरिद्वार और कुमाऊं में हल्द्वानी को अपना रास्ता बनाया. लेकिन मुगलों को कत्यूरी सेना से मुंह की खानी पड़ी और युद्ध हार गए.
जियारानी शिवजी की परम भक्त थीं. बताया जाता है कि जब वो रानीबाग गौला नदी के तट पर चित्रेश्वर महादेव यानी शिवजी के दर्शन करने आई थीं तो उनके स्नान करने के दौरान मुगल दीवान उनकी सुंदरता पर मोहित हो गया. मुगल सैनिकों से लड़ते-लड़ते उस स्थान को अपवित्र होने से बचाने के लिए जियारानी वहां से अंतर्ध्यान हो गईं.
बताया जाता है कि जियारानी ने उस समय अपना लहंगा उसी स्थान पर छोड़ दिया और जब मुगलों ने लहंगे को छूकर जियारानी को ढूंढना चाहा तो लहंगा पत्थर की शिला में तब्दील हो गया और मुगलों को जियारानी का कोई अता पता नहीं चल सका. यह पत्थर आज भी चित्रशिला घाट पर मौजूद है और मकर संक्रांति के दिन लोग यहां पर जियारानी के नाम की पूजा अर्चना कर अपने लिए सुख समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हैं.
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मकर संक्रांति पर लगता है मेला: जियारानी मंदिर के पुजारी ललित गोस्वामी ने कहा कि चित्रशिला घाट के ठीक ऊपर माता जियारानी की गुफा भी है. बताया जाता है कि जब मुगलों ने माता जियारानी का पीछा किया तो वे इस गुफा में अंतर्ध्यान हो गईं. यहां से अपने इष्ट देव के दरबार में प्रकट हुईं. जियारानी की गुफा आज भी यहां मौजूद हैं. मकर सक्रांति पर कत्यूरी वंश के लोग यहां आकर माता जियारानी की पूजा अर्चना करते हैं. हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर माता जियारानी के दरबार में यहां मेला भी लगता है.
ऐसे पड़ा रानीबाग का नाम: पहाड़ों में जब किसी भी तरह की जागर का आयोजन होता है तो जजिया शब्द का उच्चारण होता है जिसका अर्थ है 'जय जिया' यानी जियारानी माता की जय. कहते हैं कि जियारानी जब बड़ी हुईं तो अपने राज्य का कार्यभार देखने के लिए गौला नदी के घाट पर आईं. जहां उन्होंने एक बाग बनवाया और तब से इस पूरे इलाके का नाम रानीबाग पड़ गया.