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भारतीय संस्कृति की विरासत को बचाने, पांडुलिपि संरक्षण प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन

भारतीय इतिहास और संस्कृति की विरासत को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. ताकि आने वाले समय में लोगों को भारतीय संस्कृति से रूबरू कराया जा सके. हिमालयन सोसायटी फॉर हेरिटेज एंड कंजर्वेशन रानी बाग नैनीताल द्वारा 30 दिवसीय उच्चस्तरीय पांडुलिपि संरक्षण प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है.

पांडुलिपि संरक्षण

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Published : Apr 6, 2019, 12:22 AM IST

नैनीतालः इन दिनों नैनीताल में भारतीय इतिहास और संस्कृति की विरासत को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. ताकि आने वाले समय में लोगों को भारतीय संस्कृति से रूबरू कराया जा सके. हिमालयन सोसायटी फॉर हेरिटेज एंड कंजर्वेशन रानी बाग नैनीताल द्वारा 30 दिवसीय उच्चस्तरीय पांडुलिपि संरक्षण प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है.

जिसमें राष्ट्रीय स्तर के पांडुलिपि संरक्षण केंद्रों से 25 प्रतिभागी जो कोलकाता, बिहार, महाराष्ट्र, असम, दरभंगा, राजस्थान, देवप्रयाग, उत्तराखंड मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर के प्रतिभागी भाग ले रहे हैं, जिन्हें पांडुलिपि विशेषज्ञ पांडुलिपि संरक्षण प्रशिक्षण दे रहे हैं.


पांडुलिपि प्राचीन काल का हाथ से लिखा गया ग्रंथ है जो कई भाषाओं के साथ साथ वेदों, बाल कथा, संस्कृत, खगोल विज्ञान, ज्योतिष, गणित शास्त्र, आयुर्वेदा, यूनानी औषधियों के ज्ञान से विद्यमान हैं जिसमें भूत काल भविष्य काल के साथ साथ इतिहास की जानकारी है.

जिनमें हजारों लाखों साल के कई राज्य छुपे हुए हैं, क्योंकि अब तक कई पांडुलिपि को पढ़ा नहीं जा सका है. यह कार्यशाला देशभर में मौजूद सैकड़ों पांडुलिपियों को बचाने के लिए महत्वपूर्ण कार्य है, वहीं महाराष्ट्र से भी कई पांडुलिपियों को नैनीताल लाया गया है जिनमें लगभग ढाई सौ वर्ष पुरानी पांडुलिपि है जो काफी दयनीय स्थिति में है और कभी भी नष्ट हो सकती हैं.

भारतीय इतिहास और संस्कृति की विरासत को बचाने का प्रयास हिमालयन सोसायटी फॉर हेरिटेज एंड कंजर्वेशन द्वारा किया जा रहा है.

इन पांडुलिपियों में अनेक बीमारियों से निपटने के लिए भी उपचार है, जिसमें ब्लड कैंसर जैसी घातक बीमारियों के उपचार की विधि दी गई है.
कार्यशाला में असम से भी पांडुलिपि यहा लाई गई है. इन पांडुलिपियों की विशेषता है कि एक विशेष प्रकार के कागज में बनाई जाती हैं, जो विश्व में केवल समय पाई जाती हैं और इस कागज को सांची नामक पेड़ से निकाला जाता है.

आपको बता दें कि इस पेड़ की एक विशेषता है कि जब पेड़ में फफूंदी लग जाती है, तो पेड़ की खुशबू से पूरा गांव में है खुशबू फैल जाती है और इस पेड़ से इत्र भी निकाला जाता है. इस पेड़ की छाल से बनने कागज पर लिखी सैकड़ों साल पुरानी पांडुलिपि सुरक्षा के लिए लाया गया है.

साथ ही इस प्रकार की अन्य पांडुलिपि के संरक्षण के लिए छात्रों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है जिससे हमारे देश के महत्वपूर्ण दस्तावेज संरक्षित हो सकेंगे, जो भारतीय ज्ञान की प्राचीन परंपरा का संरक्षण है.

वही पांडुलिपि भारतीय ज्ञान की अति प्राचीन परंपरा का संरक्षण है. जिसमें कई राज आज भी दबे हुए हैं जिनके अध्ययन और संरक्षण के लिए केंद्र सरकार द्वारा कई कार्य किए जा रहे हैं.

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वहीं जर्मनी के वेद विद्वान मैक्स मूलर ने कहा था कि इस संसार में ज्ञानियों और पंडितों का एकमात्र देश भारत है जहां विपुल ज्ञान संपदा हस्तलिखित ग्रंथों के रूप में सुरक्षित है.

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