नैनीतालःरामगढ़ के नाम एक बड़ी उपलब्धि जुड़ गया है. रवींद्रनाथ टैगोर की कर्मस्थली में अब विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना होने जा रही है. जिसका भूमिपूजन सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कर दिया है. जल्द ही रामगढ़ में विश्व भारती विश्वविद्यालय का कैंपस तैयार हो जाएगा.
दरअसल, राष्ट्रगान के रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर की 161वीं जयंती (Rabindranath Tagore Birth anniversary) के मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नैनीताल के रामगढ़ में विश्व भारती विश्वविद्यालय का भूमि पूजन (Visva Bharati University in Ramgarh) किया. इस दौरान सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि रामगढ़ में बनने वाले परिसर को गीतांजलि के नाम से जाना जाएगा. जो क्षेत्र शिक्षा के लिए अग्रणी काम करेगा.
विश्व भारती विश्वविद्यालय का भूमि पूजन. रामगढ़ में की थी गीतांजलि के कुछ अंश की रचनाः गौर हो कि केंद्र सरकार ने रामगढ़ में विश्व भारती विश्वविद्यालय की घोषणा की थी. जिसके बाद 45 एकड़ भूमि भी इसके लिए उपलब्ध करा दी गई. भूमि पूजन के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विश्व भारती विश्वविद्यालय कैंपस का नाम गीतांजलि रखा है. उन्होंने कहा कि इस स्थान पर आदि गुरु महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर ने गीतांजलि के कुछ अंश लिखे थे. लिहाजा, इस कॉलेज का नाम गीतांजलि होना चाहिए.
45 एकड़ भूमि में बनेगा विश्व भारती विश्वविद्यालय का परिसरः मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कहा कि विश्व भारती की स्थापना के लिए प्रथम चरण में ₹150 करोड़ की डीपीआर केंद्र सरकार से स्वीकृति की प्रक्रिया में है. राज्य सरकार की ओर से 45 एकड़ भूमि में विश्व भारती केंद्रीय विश्वविद्यालय के परिसर की स्थापना की औपचारिकता पूर्ण कर ली गई है.
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बता दें कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासांको में हुआ था. भारत में 7 मई तो वहीं बांग्लादेश में रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती 9 मई को मनाई जाती है. रवींद्रनाथ टैगोर को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है. रवींद्रनाथ टैगोर ने भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन' तो लिखा ही था, लेकिन बांग्लादेश का राष्ट्रगान 'आमार सोनार बांग्ला' भी लिखा है.
रवींद्रनाथ टैगोर को मिला था एशिया में पहला नोबेल पुरस्कारःरवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) एक कवि, उपन्यासकार, नाटककार, चित्रकार और दार्शनिक थे. रवींद्रनाथ एशिया के पहले व्यक्ति थे. जिन्हें साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. टैगौर साल 1903 से 1913 तक तीन बार रामगढ़ आए थे. यहीं पर उन्होंने अपना आशियाना भी बनाया. जहां उन्होंने गीतांजलि के कुछ अंश की रचना की थी.