हल्द्वानी:सूर्य उपासना के महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है. अगले चार दिनों तक सूर्य देव और छठी मइया की उपासना की जाएगी. आज नहाए खाए (कदूआ भात) के साथ के साथ यह पर्व शुरू हो गया है. उत्तराखंड में भी छठ का महापर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. कल शुक्रवार को दिन छोटी छठ मनाया जाएगी. जबकि, शनिवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ महापर्व का आयोजन होगा. वहीं रविवार के दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ महापर्व का समापन हो जाएगा.
लोक आस्था के इस पर्व को बहुत ही पवित्रता के साथ मनाया जाता है. आज नहाए खाए के दिन व्रत करने वाली महिलाएं स्नान के साथ-साथ शुद्धता का विशेष ध्यान रखती हैं. महिलाएं चावल, दाल और कददू की सब्जी खाकर छठ की शुरुआत करती हैं. हल्द्वानी और लालकुआं में छठ महापर्व बड़े ही भव्य तरीके से मनाया जाता है. छठ पूजा समिति द्वारा कई दिनों से इसकी तैयारियां की जा रही हैं.
पढे़ं-उत्तराखंड में कई पुलिस उपाधीक्षकों के तबादले, यहां देखें पूरी लिस्ट
षष्ठी देवी को भगवान सूर्य की बहन कहा गया है, छठ पर्व पर षष्ठी देवी को खुश करने के लिए सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है. मान्यता है कि पांडव की माता कुंती ने विवाह से पूर्व सूर्यदेव की उपासना की थी. जिसके फलस्वरूप उन्हें कर्ण जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई थी. यह पर्व भगवान सूर्य की आराधना के लिए प्रसिद्ध है. इस पर्व को महिलाएं और पुरुष दोनों ही करते हैं.
एक और मान्यता के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने रावण वध के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की और अगले दिन यानी सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा की और आशीर्वाद प्राप्त किया. छठ पर्व करने से पुत्र प्राप्ति, धन समृद्धि, सुख-शांति, पति, पुत्र की दीर्घायु जैसी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है.
चार दिनों का होता है छठ पर्व
छठ पर्व का प्रारंभ 'नहाय-खाय' से प्रारंभ होता है, इस दिन व्रती स्नान कर अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी का भोजन करती हैं. इस दिन खाने में सेंधा नमक का प्रयोग किया जाता है. नहाय-खाय के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी के दिनभर व्रती उपवास कर शाम को स्नान कर विधि-विधान से रोटी और गुड़ से बनी खीर का प्रसाद तैयार कर भगवान भास्कर की आराधना कर प्रसाद ग्रहण करती हैं.. इस पूजा को 'खरना' कहा जाता है.
इसके अगले दिन उपवास रखकर शाम को व्रतियां बांस से बना दउरा या सुप में ठेकुआ, मौसमी फल, ईख समेत अन्य प्रसाद लेकर नदी, तालाब या अन्य जलाशयों में जाकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं. चौथे दिन व्रतियां सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर घर वापस लौटकर अन्न-जल ग्रहण कर 'पारण' करती हैं, यानी व्रत तोड़ती हैं.