नैनीतालः कोरोना संक्रमण का असर अब उत्तराखंड की बहुमूल्य वन संपदा पर भी पड़ने लगा है. क्योंकि इन दिनों विशेषकर कुमाऊं के जंगलों में लाल रंग का बुरांश का फूल बेतहाशा जंगलों में हो रहा है. कोरोना वायरस की वजह से इन फूलों को जंगलों से फैक्ट्री तक पहुंचाने के लिए मजदूर नहीं मिल पा रहे हैं. यही कारण है कि इस बार स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक माने जाने वाला बुरांश का फूल बाजार से पूरी तरह गायब है.
प्रसिद्ध बुरांश का जूस बाजारों से होगा गायब. बुरांश का पेड़ लगभग 1500 से लेकर 3600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है. बुरांश के फूल का प्रयोग उत्तराखंड में सबसे अधिक जूस बनाने के लिए किया जाता है, जो प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में प्रसिद्ध है. बुरांश के जूस को यहां आने वाले पर्यटक पहाड़ की याद के रूप में अपने साथ ले जाना नहीं भूलते, क्योंकि बुरांश के शरबत की तासीर ठंडी होती है, जो शुगर से परेशान लोगों के लिए रामबाण से कम नहीं.
बुरांश के फूल से बनने वाला शरबत, लू से बचाने में भी बेहद कारगर होता है. बुरांश का जूस नैनीताल के आसपास के लोग घरों में भी बनाते हैं. जिसके लिए पहले बुरांश के पेड़ से फूलों को तोड़कर उसकी पंखुड़ियों को अलग करते हैं. जिसके बाद उन फूल की पंखुड़ियों को पानी में उबाल जाता है. उबालने के बाद इन फूलों के रस को कपड़े में छानकर चीनी की चाशनी में डुबाकर इसका मिश्रण कुछ एसेंस मिलाकर शरबत तैयार किया जाता है.
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औषधीय गुण से भरपूर है बुरांश
विशेषज्ञों की मानें तो बुरांशके फूल के रस में प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट होता है, जो टॉक्सिन और हानिकारक कीटाणुओं को सफाया करने के लिए जरूरी होता है. हार्ट जैसी खतरनाक बीमारी की दवा बनाने के लिए भी बुरांश के फूल का प्रयोग किया जाता है. वहीं इसका उपयोग जैम, चटनी बनाने में भी किया जाता है. लेकिन इस बार कोरोना वायरस की वजह से यह औषधि युक्त जूस, जैम बाजारों से गायब रहेगा.