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उत्तराखंड में सेब की फसल पर मौसम की मार, उत्पादन घटने से निराश हैं काश्तकार

नैनीताल जिले के पर्वतीय क्षेत्र रामगढ़ और मुक्तेश्वर ओखलकांडा की पूरी बेल्ट फलों के उत्पादन के लिए मशहूर है. लेकिन मौसम की मार से सेब का उत्पादन कम हो गया है. काश्तकारों का कहना है कि पहाड़ों में भूस्खलन होने से मार्केट नहीं मिल पा रही है. साथ ही बाजार भाव भी गिर गया है.

apple production
सेब की फसल

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Published : Aug 6, 2022, 10:29 AM IST

हल्द्वानी:उत्तराखंड में मौसम बदलाव का असर पहाड़ी क्षेत्र में होने वाली फसलों के उत्पादन पर पड़ रहा है. नैनीताल जिले के पर्वतीय क्षेत्र रामगढ़ और मुक्तेश्वर ओखलकांडा की पूरी बेल्ट फलों के उत्पादन के लिए मशहूर है. यहां सेब का बेहतर उत्पादन होता है. लेकिन मौसम की मार से सेब का उत्पादन तो कम (Apple production decreased in Uttarakhand) हुआ ही है, साथ ही बाजार भाव ना मिलने की वजह से काश्तकार बेहद निराश हैं.

फल उत्पादन पर मौसम परिवर्तन का असर: काश्तकारों के मुताबिक मौसम में हो रहे परिवर्तन की वजह से सेब के उत्पादन पर गहरा असर पड़ रहा है. आजकल रामगढ़ और मुक्तेश्वर के उद्यान फलों से लकदक हैं. सेब, नाशपाती, आड़ू और पुलम यहां की पहचान हैं. काश्तकारों के मुताबिक फलों का स्वाद अब वैसा नहीं रहा, जैसा पहले हुआ करता था. दरअसल मौसम में लगातार बदलाव हो रहा है.

सेब की फसल पर मौसम की मार

भूस्खलन से फलों को नहीं मिल रही मार्केट: काश्तकारों के मुताबिक सेब की कई वैरायटी कम होती जा रही हैं. अप्रैल मई के महीने में बारिश की कमी से सेब का उत्पादन कम रहा है. राम सिंह नयाल का कहना है कि पहाड़ों में भूस्खलन होने से मार्केट नहीं मिल पा रही है. साथ ही बाजार भाव गिर गया है. उद्यान के लिहाज से कोई शोध भी यहां नहीं हो रहा, जिससे आने वाले दिनों में यहां के उद्यान गुलजार हो सकें. सेब तैयार हो चुका है अभी पहाड़ों में मौसम बेहद ठंडा है.

सूखने लगे सेब के पेड़: काश्तकारों का मानना है कि पिछले कुछ सालों में मौसम चक्र में होने वाले बदलाव की वजह से सेब के कई पेड़ सूख रहे हैं. सेब का आकार भी कम हो रहा है, जिस पर उद्यान के लिहाज से ध्यान देने की आवश्यकता है. बची फसल को लोकल बाजार में पहले तो पहुंचा ही नहीं पा रहे हैं. अगर पहुंचा दिया तो बाजार भाव नहीं मिल पा रहा है.
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कृषि मंत्री गणेश जोशी (Agriculture Minister Ganesh Joshi) का कहना है कि उद्यान के लिहाज से जहां भी इस रिसर्च और बेहतर तकनीक की जरूरत होगी, उसे पूरा किया जाएगा. उम्मीद है कि आने वाले सालों में उद्यान के बेहतर परिणाम सामने आएंगे.

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