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गंगा नदी स्कैप चैनल विवाद को लेकर पुरोहितों ने फिर खोला मार्चा, जनांदोलन की चेतावनी

तीर्थ पुरोहितों ने गंगा नदी स्कैप चैनल को लेकर एक बार फिर से मोर्चा खोल दिया है. पुरोहितों ने सरकार से इसके शासनादेश को रद्द करने की मांग की है.

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गंगा नदी एस्केप चैनल विवाद को लेकर पुरोहितों ने फिऱ खोला मार्चा

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Published : Sep 16, 2020, 6:26 PM IST

Updated : Sep 16, 2020, 10:25 PM IST

हरिद्वार:श्री गंगा सभा के सदस्यों ने एक बार फिर से हरकी पैड़ी से होकर बहने गंगा नदी को स्कैप चैनल वाले शासनादेश को रद्द करने की मांग की है. हरिद्वार में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए तीर्थ पुरोहितों ने इसके साथ ही गंगा में गिर रहे 22 गंदे नालों पर रोक, हरकी पैड़ी के अलावा अन्य घाटों पर होने वाले कर्मकांडों पर रोक लगाने की मांग की है साथ ही पुरोहितों ने ऑनलाइन कराए जा रहे श्राद्ध कर्म को अनुचित बताते हुए सरकार से इस पर कार्रवाई की मांग की है.

तीर्थ पुरोहितों ने आरोप लगाया कि पहले कांग्रेस ने गंगा को स्कैप चैनल का शासनादेश जारी करके बड़ा पाप किया. अब बीजेपी सरकार इस शासनादेश को रद्द नहीं कर रही है. तीर्थ पुरोहितों ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जल्द ही उनकी मांगों को सरकार पूरा नही करती तो वे 18 सितंबर को हरकी पैड़ी से जनांदोलन शुरू करेंगे.

गंगा नदी स्कैप चैनल विवाद.

वहीं, पुरोहितों ने ये आरोप भी लगाया गया है कि विभिन्न स्नान पर्वों पर प्रशासन हर बार हरकी पैड़ी को सील कर अन्य घाटों को खोल देता है. इन घाटों पर हरकी पैड़ी के साइन बोर्ड लगाकर ब्रह्मकुंड के अस्तित्व को ठेस पहुंचाने का काम प्रशासन द्वारा किया जा रहा है, जिसका वे पुरजोर विरोध करेंगे.

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क्या है पूरा विवाद?

गौर हो कि साल 2016 में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार ने हरकी पैड़ी से होकर बहने वाली गंगा की धारा को नहर (स्कैप चैनल) घोषित कर दिया था. दरअसल, हरकी पैड़ी से होकर बह रही गंगा के किनारे होटल, आश्रम निर्मित हैं. एनजीटी का आदेश था कि गंगा के किनारों के 200 मीटर के दायरे में निर्माण को हटाया जाए. तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने निर्माणाधीन होटल, धर्मशाला और दूसरे प्रोजेक्ट को पूरे करवाने के लिए ही यह शासनादेश जारी किया था. इस फैसले के बाद से ही संत समाज और अखाड़ा परिषद इसका विरोध कर रहे थे.

अभी कुछ समय पहले ही पूर्व सीएम हरीश रावत ने अपने इस फैसले पर माफी मांगते हुये कहा था कि सम्मान की भावना रखते हुए साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के फल स्वरूप एनजीटी की तलवार लटक रही थी. इस वजह से 300 से ज्यादा निर्माण ध्वस्त होने जा रहे थे. एनजीटी ने सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए कहा था. उस वक्त समय कम होने की वजह से टेक्निकल बदलाव करते हुए आदेश जारी कर इन निर्माणों को ध्वस्त होने से बचाया था. उस समय उनकी सरकार की ओर से लिए गए निर्णय से जिन लोगों की भावना आहत हुई है, वो उनसे क्षमा मांगते हैं.

हालांकि, त्रिवेंद्र रावत सरकार में अब संसदीय कार्यमंत्री मदन कौशिक की अध्यक्षता में विधानसभा में हुई बैठक में यह तय किया गया था कि 2016 का शासनादेश पलटा जाएगा लेकिन इस पर अबतक कोई फैसला नहीं हो सका है.

Last Updated : Sep 16, 2020, 10:25 PM IST

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