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ऐसे हुआ धरती पर पतीत पावनी मां गंगा का आगमन, जानें पूरी कहानी - story of ganga

मान्यता है कि गंगा में आस्था की डुबकी लगाने से मनुष्य के इस जन्म के नहीं बल्कि पुराने सभी जन्मों के पाप धुल जाते हैं इसीलिए मां गंगा को पतित पावनी नाम से भी जाना जाता है. सनातन धर्म में गंगा को प्रत्यक्ष देवी का दर्जा प्राप्त है, जिनके मानव प्रत्यक्ष दर्शन कर फल प्राप्त कर सकता है, ऐसे में हम आज आपको बताएंगे कि मां गंगा का धरती पर अवतरण कैसे हुआ

मां गंगा के धरती पर आगमन की कहानी.

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Published : Jun 12, 2019, 2:46 AM IST

हरिद्वार:हिंदू धर्म में मां गंगा को विशेष महत्व प्राप्त है. गंगा के आध्यात्मिक महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि विश्व भर में रहने वाले सभी हिंदू परिवारों में गंगाजल अवश्य रूप से मिल जाता है. जिसकी वजह है जीवन के प्रत्येक संस्कार केवल गंगाजल से ही पूरे किए जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि गंगा में आस्था की डुबकी लगाने से मनुष्य के इस जन्म के नहीं बल्कि पुराने सभी जन्मों के पाप धुल जाते हैं इसीलिए मां गंगा को पतित पावनी नाम से भी जाना जाता है.

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सनातन धर्म में गंगा को प्रत्यक्ष देवी का दर्जा प्राप्त है, जिनके मानव प्रत्यक्ष दर्शन कर फल प्राप्त कर सकता है, ऐसे में हम आज आपको बताएंगे कि मां गंगा का धरती पर अवतरण कैसे हुआ. पतित पावनी मां गंगा के धरती पर अवतरण के पीछे ऐसा मानना है कि प्राचीन काल में अयोध्या में राजा सगर का राज था, महाराजा सगर के साठ हजार पुत्र थे, एक बार महाराज सगर ने अश्वमेध यज्ञ के दौरान अश्वमेध का घोड़ा छोड़ा, स्वर्ग के राजा इंद्र इस यज्ञ को सफल नहीं होने देना चाहते थे इसलिए उन्होंने अश्वमेध का घोड़ा महर्षि कपिल के आश्रम में ले जाकर छुपा दिया. वहीं जब अश्वमेघ का घोड़ा बहुत देर तक नहीं मिला तो राजा सगर के साठ हजार पुत्र घोड़े को ढूंढने निकले.

मां गंगा के धरती पर आगमन की कहानी.

घोड़े को ढूंढते हुए राजा सगर के साठ हजार पुत्र महर्षि कपिल के आश्रम पहुंचे, घोड़े को आश्रम में बंधा देख वह महर्षि कपिल पर जोर-जोर से चिल्लाने लगे और घोड़े के चोरी का आरोप लगा दिया. राजा सगर के पुत्रों के चिल्लाने की वजह से महर्षि कपिल की तपस्या भंग हो गई और जैसे ही उन्होंने अपने नेत्र खोले राजा सागर के सभी साठ हजार पुत्र जलकर भस्म हो गए. जिसके बाद राजा ने अपने पुत्रों की शांति के लिए ऋषि-मुनियों से उपाय पुछा. तब उन्हें पता चला कि मां गंगा के धरती पर अवतरित होने से उनके पुत्रों की आत्मा को शांति मिल सकती है. जिसके बाद राजा ने घोर तपस्या कर भगवान ब्रम्हा को खुश किया और उनसे वरदान के रुप में मां गंगा को धरती पर बुलाने को कहा. जिसपर ब्रम्हा ने कहा कि मैं गंगा को धरती पर ला दूंगा लेकिन उसके तीव्र वेग को धारण कौन करेगा, इसके लिए तुम्हें भगवान शिव की मदद लेनी होगी.

जिसके बाद राजा भागीरथ ने एक टांग पर खड़े होकर कड़ी तपस्या की. वहीं भगवान शिव ने भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा जी को अपनी जटाओं में रुकने की मंजूरी दे दी. जिसके बाद गंगा को अपनी जटाओं में रोक कर एक जटा को भगवान शिव ने पृथ्वी की ओर छोड़ा. इस प्रकार से गंगा धरती पर पहुंची और उन्होंने भागीरथ के साठ हजार पुत्रों को मुक्ति प्रदान की. भागीरथी की तपस्या के बाद जिस दिन गंगा माता धरती पर अवतरित हुई थी उस दिन जेष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी थी, इसीलिए प्रतिवर्ष जेष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा अवतरण के महापर्व को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है.

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