हरिद्वार:वैसे तो धर्म नगरी हरिद्वार में कई विश्वविख्यात देवी देवताओं के मंदिर स्थित हैं लेकिन दक्ष नगरी कनखल में भगवान भोलेनाथ का एक ऐसा चमत्कारी शिवलिंग स्थापित है, जो चंद्रमा की सोलह कलाओं के साथ अपना रूप हर दिन बदलता है. बताया जाता है कि यह शिवलिंग कई सौ साल पुराना है, जिसका उल्लेख पुराणों में भी किया गया है. आम शिवलिंग की तरह यह शिवलिंग केवल धरती के ऊपर नहीं, बल्कि धरती के कई फीट नीचे तक विराजमान हैं. इस शिवलिंग को इसके ईशान कोण में स्थापित होना इस शिवलिंग को और अलग बनाता है.
हरिद्वार के कनखल स्थित प्राचीन सिद्धपीठ श्री तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर यहां के पौराणिक मंदिरों में से प्रमुख है. शिवपुराण में भी इस मंदिर का वर्णन है. मंदिर में लक्ष्मी-नारायण, मां दुर्गा और बजरंग बली की भव्य मूर्तियां स्थापित हैं. मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित किया गया है. इसकी गोलाई करीब पांच फीट और ऊंचाई दो फीट के आसपास है.
तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता: दक्ष नगरी कनखल को आदिकाल से ही भगवान शंकर की ससुराल, माता सती का मायका, राजा दक्ष की नगरी व ब्रह्मांड की राजधानी के रूप में जानी जाती है. इस पौराणिक नगरी का महत्व यहां भगवान शंकर के एक अद्भुत शिवलिंग के कारण भी बढ़ जाता है. हरिद्वार के कनखल स्थित प्राचीन सिद्धपीठ श्री तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर यहां के पौराणिक मंदिरों में से प्रमुख है.
सिद्धपीठ श्री तिलभांडेश्वर महादेव मंदिर का वर्णन शिवपुराण में भी मिलता है. इस मंदिर के गर्भगृह में यह अलौकिक शिवलिंग स्थापित है. बताया जाता है की यह शिवलिंग किसी के द्वारा स्थापित नहीं किया गया, बल्कि यह स्वयंभू शिवलिंग है. इसकी सबसे बड़ी खासियत है की इस शिवलिंग का स्वरूप रोजाना तिल तिल बदलता है, जिस कारण इसे तिलभांडेश्वर महादेव भी कहा जाता है. यहां पर गंगाजल के साथ तिल चढ़ाए मात्र से भगवान शंकर प्रसन्न हो जाते हैं.
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