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चंडी देवी मंदिर में खंभ के रूप में विराजमान हैं मां दुर्गा, माता की महिमा है निराली - नवरात्रि में चंडी पूजा

हरिद्वार में शिवालिक पर्वत माला पर मां चंडी देवी का पौराणिक मंदिर हैं. यहां मां चंडी के दो रूप देखने को मिलते हैं. एक रूप मां का रौद्र रूप में हैं, जो खंभ के रूप में विराजमान हैं. जबकि, दूसरा मूर्ति के रूप में विराजमान हैं. यहां पर मां चंडिका ने शुंभ और निशुंभ राक्षसों का वध किया था. जानिए मां चंडी की महिमा...

Haridwar chandi devi
मां चंडी देवी के दर्शन

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Published : Apr 6, 2022, 4:03 AM IST

हरिद्वारः आज चैत्र नवरात्रि 2022 का पांचवां दिन है. नवरात्रि के पांचवें दिन मां के पंचम स्वरूप माता स्कंदमाता की पूजा अर्चना की जाती है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको मां के उग्र व शांत रूप के दर्शन एक साथ मां चंडी देवी मंदिर के रूप में कराने जा रहा है. चंडी देवी मंदिर यह मंदिर हरिद्वार में स्थित है. कहा जाता हैं कि यह इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां मां चंडी खंभ के रूप में स्वयं प्रकट हुई थी. यह मां का क्रोध वाला स्वरूप है. जबकि, इसके बगल में ही मां का शांत स्वरूप दुर्गा, मूर्ति के रूप में स्थापित है.

बता दें कि हरिद्वार में स्थित चंडी देवी का यह प्राचीन मंदिर हिंदुओं की आस्था का एक प्रमुख स्थल है. यह मंदिर हिमालय की सबसे दक्षिणी पर्वत श्रृंखला शिवालिक पहाड़ियों के पूर्वी शिखर में नील पर्वत के ऊपर स्थित है. हरिद्वार के भीतर स्थित पंच तीर्थ में से यह एक तीर्थ स्थल है. यह मंदिर पूरी दुनिया में एक सिद्ध पीठ के रूप में अत्यधिक पूजनीय स्थल है.

मां चंडी देवी की महिमा.

माना जाता है कि यह एक ऐसा स्थल है, जहां सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जिसके कारण देश के कोने-कोने से श्रद्धालु अपनी मन्नतें लेकर देवी के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते हैं. मां चंडी देवी मंदिर हरिद्वार में स्थित तीन पीठों में से एक है, अन्य दो पीठ मनसा देवीमंदिर और माया देवी मंदिर हैं.

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चंडी देवी मंदिर का इतिहास कई सौ साल पुराना बताया जाता है. मंदिर में मौजूद मूर्ति 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थी. शंकराचार्य हिंदू धर्म के सबसे महान पुजारियों में से एक थे. मंदिर को नील पर्वत के तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है, जो हरिद्वार के भीतर स्थित पांच तीर्थों में से एक है.

यह है पौराणिक कथा: देवी चंडी को चंडिका के रूप में भी जाना जाता है, जो इस मंदिर की प्रमुख देवी हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीनकाल में शुंभ और निशुंभ नामक राक्षसों ने स्वर्ग के देवता इंद्र के राज्य पर कब्जा कर लिया था और देवताओं को स्वर्ग से फेंक दिया था. देवताओं की प्रार्थना के बाद पार्वती ने चंडी के रूप को धारण किया और राक्षसों के सामने प्रकट हुईं.

उस असाधारण महिला की सुंदरता से चकित होकर शुंभ ने उनसे शादी करने की इच्छा जताई. इनकार किए जाने पर शुंभ ने अपने राक्षस प्रमुख चंड और मुंडा को उसे मारने के लिए भेजा, लेकिन वे देवी चामुंडा के हाथों मारे गए. फिर शुंभ और निशुंभ ने मिलकर चंडिका को मारने की कोशिश की, लेकिन देवी के हाथों दोनों राक्षस का संहार कर दिया गया.

मां त्रिशूल के रूप में हैं विराजमान: इसके बाद चंडिका ने नील पर्वत के ऊपर थोड़ी देर आराम किया था और इसके बाद से मां शांत रूप में यहीं विराजमान हो गई. ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर बाद में एक मंदिर बनाया गया. इसके अलावा पर्वत श्रृंखला में स्थित दो चोटियों को शुंभ और निशुंभ कहा जाता है. हरिद्वार में मां मनसा देवी मध्य में मां माया देवी और फिर मां चंडी देवी एक त्रिशूल के रूप में हरिद्वार की रक्षा करती आ रही हैं. दरअसल, त्रिशूल बनने की मान्यता ये है कि तीन देवियां पर्वत पर विराजमान हैं.

चंडी चौदस का है विशेष महत्व:वैसे तो मां चंडी के दरबार में पूरे साल ही भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि से लेकर चंडी चौदस तक यहां पर विशेष पूजा का आयोजन होता है. माना जाता है कि नवरात्रि में जहां मां की तमाम स्वरूप मंदिर में विराजमान रहते हैं. वहीं, चंडी चौदस के दिन पृथ्वी पर मौजूद तमाम देवी देवता अपनी बहन चंडी से मिलने इसी स्थान पर पहुंचते हैं.

चंडी देवी को काली देवी की तरह माना जाता है और प्रायः इनके उग्र रूप की पूजा की जाती है. अश्विन और चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रि में चंडी पूजा विशेष समारोह के साथ मनाया जाता है. पूजा के लिए ब्राह्मण की ओर से मंदिर के मध्य स्थान को गोबर और मिट्टी से लीप कर मिट्टी के एक कलश की स्थापना की जाती है. चंडी देवी मंदिर के पास हनुमानजी की माता अंजना का मंदिर स्थित है. इस मंदिर में आने वाले भक्त अंजना मंदिर में भी जरूर जाते हैं.

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मनसा और चंडी देवी पार्वती के दो रूप हैं. हमेशा एक दूसरे के करीब रहती हैं. मनसा का मंदिर बिल्व पर्वत पर गंगा नदी के विपरीत तट पर दूसरी ओर है. चूंकि चंडी देवी का मंदिर मन्नतें पूरी करने के लिए जाना जाता है. यही कारण है कि अन्य मंदिरों की अपेक्षा इस मंदिर में भारी भीड़ जुटती है.

चंडी देवी मंदिर में दर्शन का समयःचंडी देवी के इस मंदिर का संचालन महंतों की ओर से किया जाता है, जो मंदिर के पीठासीन हैं. यह मंदिर सुबह पांच बजे के बाद खुलता है और रात में 8 बजे बंद होता है. मंदिर खुलने के बाद यहां सबसे पहले सुबह साढ़े पांच बजे चंडी देवी की आरती की जाती है. सुबह की आरती के बाद दिन भर पूजा पाठ और दर्शन का कार्य चलता रहता है.

श्रद्धालुओं की है ये आस्था: इस मंदिर के प्रति जितनी आस्था और श्रद्धा बाहर से आने वाले लोगों में हैं, ऐसी ही आस्था स्थानीय लोग भी रखते हैं. पंचपुरी से ऐसे काफी लोग हैं, जो रोजाना मां चंडी के दर्शन करने आते हैं. कनखल निवासी अनिल कुमार का कहना है कि उनकी मां के इस स्थान पर अपार आस्था व श्रद्धा है. करीब चार किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई को चढ़कर वे माता के दर पर शीश नवाने आते हैं.

चंडी देवी मंदिर तक रोपवे की व्यवस्था: कुछ साल पहले तक मां के इस प्राचीन मंदिर तक जाने के लिए यात्री को करीब साढे़ 4 किलोमीटर की कठिन पैदल यात्रा करनी पड़ती थी, लेकिन अब रोपवे लगने के बाद जो यात्री पैदल नहीं जाना चाहते, वे रोपवे में अपनी यात्रा को संपन्न कर सकते हैं. रोपवे के लिए टिकट नीचे से ही मिल जाता है.

कैसे पहुंचे मां के दरबार: चंडी देवी मंदिर हरिद्वार से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यदि आप बस या ट्रेन से आना चाहते हैं तो बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन से ऑटो या ई रिक्शा मिल जाती है. जो पैदल मार्ग या रोपवे तक जाने के लिए डेढ़ सौ रुपए किराया लेती है. यदि आप अपनी गाड़ी से बिजनौर की तरफ से आते हैं तो श्यामपुर क्षेत्र में ही मां चंडी का मंदिर स्थित है, लेकिन यदि आप ऋषिकेश-देहरादून या फिर दिल्ली की तरफ से आते हैं तो हरिद्वार पहुंचकर आप चंडी घाट पुल होते हुए मां के मंदिर आसानी से पहुंच सकते हैं.

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