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यहां है भगवान शंकर का ससुराल, फाल्गुन और श्रावण मास में विराजते हैं साक्षात भोलेनाथ

हरिद्वार के कनखल स्थित दक्ष प्रजापति मंदिर में फाल्गुन और श्रावण मास में भोलेनाथ की पूजा अर्चना की जाती है. पुराणों के अनुसार इसे राजा दक्ष की नगरी कहा जाता था. यहां जो भक्त भगवान शिव का सच्चे मन से जलाभिषेक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जानिए धार्मिक मान्यताएं...

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फाल्गुनी कांवड़ यात्रा

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Published : Feb 20, 2022, 6:03 AM IST

हरिद्वारःधर्मनगरी हरिद्वार में फाल्गुन मास की कांवड़ यात्रा का आगाज हो गया है. आज कांवड़िए गंगाजल भरकर अपने गंतव्यों की ओर रवाना होंगे. कांवड़ के दौरान हरिद्वार की कनखल नगरी में स्थित प्राचीन भगवान दक्ष प्रजापति के मंदिर की अहम महत्ता है. ऐसे में कांवड़िए इस मंदिर में जलाभिषेक करना नहीं भूलते हैं. कनखल को भगवान शंकर का ससुराल भी माना जाता है. मान्यता है कि भगवान शंकर फाल्गुन और श्रावण मास में यहां साक्षात विराजमान रहते हैं. यही वजह है कि विशेष रूप से इन दोनों मास में न केवल स्थानीय लोग बल्कि, दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु और कांवड़िए इस मंदिर में पहुंचकर जलाभिषेक करते हैं.

भगवान शंकर का ससुराल और दक्ष नगरी कनखल स्थित दक्ष प्रजापति के मंदिर का कांवड़ के दौरान विशेष महत्व माना जाता है. कहा जाता है कि फाल्गुन मास की शिवरात्रि पर इस धरा की पहली शादी भगवान शंकर और सती की हुई थी. वह स्थान भगवान शंकर का ससुराल कनखल है. देश में भगवान शंकर के कई सिद्ध मंदिर हैं, लेकिन इनमें दक्ष प्रजापति का अपना विशेष महत्व है. यहां पर भगवान शंकर लिंग नहीं, बल्कि धड़ के रूप में विराजते हैं.

फाल्गुनी कांवड़ यात्रा में भगवान शंकर के ससुराल का महत्व.

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यही कारण है यहां पर महाशिवरात्रि के अवसर पर भारी संख्या में जहां श्रद्धालु पहुंचते हैं तो वहीं इससे पहले कांवड़ के दौरान भारी संख्या में कांवड़िए भी भगवान शिव की पूजा करने पहुंचते हैं. कहा जाता है कि दुनिया में सबसे पहला विवाह शिव का हुआ था. उन्होंने पहला विवाह सती से जबकि, दूसरा विवाह पार्वती संग किया था. माता सती से विवाह कनखल के दक्ष प्रजापति के इसी मंदिर में होने का वर्णन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है. यह मंदिर पूरी दुनिया में दक्षेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है.

क्या है यहां से जुड़ी कथा: कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति ने अपने यहां एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था. जिसमें देव-दानव सभी को आमंत्रित किया था, लेकिन अपनी बेटी सती एवं भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था. इसके बावजूद माता सती हठ कर यज्ञ में पहुंच गई थी, लेकिन यज्ञ में पहुंची सती का राजा दक्ष ने अपमान किया. जिसके बाद उन्होंने यहां बने हवन कुंड में कूद कर प्राणों की आहूति दे दी थी.

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वीरभद्र ने मचाया था तांडव: दक्ष नगरी कनखल ने भगवान शिव के गण वीरभद्र, जिन्हें शिव ने अपनी जटा से उत्पन्न किया था. उसे राजा दक्ष के उस महायज्ञ में विध्वंस मचाने के लिए भेजा था. वीरभद्र ने न केवल यज्ञ नष्ट किया, बल्कि राजा दक्ष का सिर भी धड़ से अलग कर दिया था. यज्ञ का विध्वंस होने और धड़ से सिर के अलग होने के बाद राजा दक्ष को अपनी गलती का पश्चाताप हुआ तो उन्होंने तपस्या कर भगवान शंकर से क्षमायाचना की. जिसके बाद भगवान शंकर ने दक्ष के धड़ पर एक बकरे का स्रगा जीवित कर दिया.

ब्राह्मण की राजधानी रही कनखल: राजा दक्ष के जीवन दान देने के बाद दक्ष ने भगवान शंकर से एक प्रार्थाना की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि साल में दो बार भगवान शंकर अपनी इसी ससुराल में विराजेंगे. तभी से फाल्गुन एवं श्रावण मास में भगवान इसी नगरी में विराजते हैं. वेदों में वर्णन है कि जब सृष्टि की रचना हुई तो कनखल पूरे ब्राह्मण की राजधानी बनाई गई थी. कनखल सबसे प्राचीन नगरी भी बताई जाती है. इसी स्थान पर भगवान शिव का पहला विवाह माता सती से हुआ था. जिसमें देव, दानव, नर, पिशाच शामिल हुए थे.

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महाशिवरात्रि में बनता है विशेष योग:फाल्गुन मास में पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है. इस शिवरात्रि में एक विशेष योग बनता है, जिस कारण इसकी महत्ता श्रावण मास की शिवरात्रि से काफी अधिक माना जाता है. इसी नक्षत्र में भगवान शिव एवं सती का विवाह संपन्न हुआ था. यही कारण है कि यहां जल चढ़ाने व यहां से जल ले जाने का एक विशेष महत्व है. फाल्गुन एवं श्रावण मास में आने वाले कांवड़ियों में कई ऐसे कांवड़िए होते हैं, जो मन्नत पूरी होने के बाद यहां पैदल जल लेने आते हैं. फिर चाहे वो सफर कितना ही कठिन या लंबा क्यों न हो.

कैसे पहुंचे शिव की ससुराल:भोले की इस प्राचीन ससुराल में यदि आप आना चाहते हैं तो आप रेल या बस से आ सकते हैं. हरिद्वार पहुंचने पर यहां के लिए ऑटो व रिक्शा आसानी से मिल जाती है. बस अड्डे एवं रेलवे स्टेशन से दक्ष मंदिर की दूरी करीब चार किलोमीटर है. यदि आप कार से आते हैं तो कनखल बाजार से आने के बजाय जगजीतपुर क्षेत्र की ओर से सीधे मंदिर तक पहुंच सकते हैं.

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