हरिद्वारःमां दुर्गा की उपासना के लिए खास महत्व रखने वाले चैत्र नवरात्रि की शुरुआत आज से हो रही है. नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों में पूजा की जाती है. नवरात्रि के दिनों में श्रद्धालु विभिन्न मंदिरों में जाकर माता का आशीर्वाद लेते हैं. हरिद्वार में भी कई मंदिर और सिद्ध पीठ हैं. जहां माता रानी के दर्शन कर सकते हैं, लेकिन एक मंदिर बेहद खास है. जिसे दक्षिण काली मंदिर के नाम से जाना जाता है.
ईटीवी भारत आज आपको मां काली के सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर की महिमा से रूबरू कराएगा. जिसका काफी महत्व माना जाता है. जो नील धारा क्षेत्र में स्थित है. वैसे तो किसी भी मंदिर का नाम उसमें रखी मूर्ति या भगवान के नाम पर रखा जाता है, लेकिन हरिद्वार का यह मंदिर अपने मुख की वजह से जाना जाता है. जिसमें माता की मूर्ति का मुख तो पूर्व दिशा की ओर है, लेकिन मंदिर का नाम दक्षिण काली मंदिर है.
मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मुराद जरूर पूरी होती है. मंदिर में स्थापित मां काली की प्रतिमा का मुख पूरब दिशा की ओर है, लेकिन गंगा की दिशा यहां पर दक्षिण की ओर है. यही वजह है कि इस मंदिर को दक्षिण काली मंदिर के नाम से जाना जाता है. यही कारण है कि यहां देश दुनिया से लोग दक्षिण मुखी मां काली के दर्शन करने आते हैं. नवरात्र के दौरान यहां नौ दिन नहीं बल्कि पंद्रह दिन तक विशेष पूजा चलती है.
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बाबा कामराज ने की थी स्थापना: इस सिद्धपीठ के बारे में धार्मिक ग्रंथों में भी उल्लेख भी मिलता है. बताया जाता है कि इस मंदिर की स्थापना बाबा कामराज ने की थी. काली मां ने उन्हें स्वप्न में इस मंदिर की स्थापना करने का निर्देश दिया था. इसके अलावा बाबा कामराज ने इसी जगह पर आल्हा और उनकी पत्नी मछला को यहां पर दीक्षा दी थी. बाबा कामराज ने गंगा के किनारे 1008 नरमुंडों पर मां को स्थापित किया था और तभी से इसके गर्भगृह में मां स्थापित है.
2700 साल पुराना त्रिशूल, शनिवार का है विशेष महत्व: इस मंदिर के गर्भ गृह के कोने में 2700 साल पुराना त्रिशूल आज भी लगा हुआ है. जिससे इस मंदिर की प्राचीनता का सरलता से अंदाजा लगाया जा सकता है. नवरात्रि के अलावा प्रत्येक शनिवार को वे लोग ज्यादा पहुंचते हैं, जो परेशान हैं. इस मंदिर में आकर उनका तनाव और परेशानी दूर होती है.