हरिद्वार:श्राद्ध पक्ष में कौवों और कुतों का विशेष महत्व माना जाता है. भादौ महीने के 16 दिन कौवा हर घर की छत का मेहमान बनता है. वहीं श्राद्ध पक्ष के ये 16 दिन कौवों और लोगों के लिए खास होते हैं. लोग अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए कौवे और कुत्तों को भोजन कराकर अपने पितरों की मुक्ति की कामना करते हैं. वहीं महानगरों में बढ़ते प्रदूषण के कारण जहां कौवों की संख्या में तेजी से कमी आ रही है.
श्राद्ध पक्ष में कौवों और कुत्तों का महत्व. धर्मनगरी हरिद्वार में पितृ पक्ष के इन दिनों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु कौवे और कुतों को भोजन कराने के लिए उमड़ रहे हैं और नारायणी शिला पर अपने पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करते दिखाई दे रहे हैं.
अपने रंग आवाज और फितरत के चलते कौवां समाज में शुरू से हाशिए पर रहे हैं, लेकिन श्राद्ध पक्ष के इन दिनों में इन्हीं कौवों के दर्शन ही नहीं, बल्कि इन्हें भोजन देने के लिए भी लोग तरसते हैं. प्रदूषण और लगातार पेड़ों की कमी के चलते कौवों की संख्या में भारी कमी हो रही है. पुराणों के अनुसार कौवे पितृ पक्ष के दौरान पितरों के रूप में पितृ लोक से भू लोक पर आते हैं. यही कारण है कि पितृ पक्ष में लोग इन कौवों के निमित्त भोजन निकालते हैं.
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कौवे और कुत्तों को भोजन कराने का महत्व
माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष में कौवे और कुत्तों को भोजन कराने से पित्र तृप्त होते हैं. इसलिए बड़ी संख्या में लोग अपने पितरों की तृप्ति के लिए कौवे और कुत्तों को भोजन कराते हैं. साथ ही मुक्ति के द्वार हरिद्वार के नारायणी शिला मंदिर में आकर अपने पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं. नारायणी शिला के मुख्य पुजारी मनोज त्रिपाठी का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में जब हम अपने पितरों के प्रति श्राद्ध कर्म करते हैं और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं. तब पांच प्रकार की बलि का विशेष तौर पर महत्व बताया गया है. पहली है विश्व देव, दूसरी है गोग्रास, तीसरी है चींटी के लिए भोजन, चौथी है कौवों के लिए काकबली और पांचवी है स्वांगबली जो कुत्तों को दी जाती है.
इन सब में कौवें का विशेष महत्व है क्योंकि कौवों को माना जाता है कि वह इस लोक और परलोक में प्रवेश करने में सक्षम हैं. कौवे का एक नेत्र नीचे और एक नेत्र ऊपर रहता है जो पित्र हमारे अधोगति चले जाते हैं वह सिर्फ दो रूपों में ही आकर हमसे हमारा प्रसाद या भाव स्वीकार करते हैं. एक स्वांगबलि के रूप में एक ताकबलि के रूप में इसलिए कौवे का विशेष महत्व माना जाता है कि अगर कौवे ने भोजन कर लिया तो यह भोजन पितरों ने स्वीकार कर लिया और यह श्राद्ध स्वीकार करने से उनको अधोगति से मुक्त होकर उत्तम गति में चले जाएगा यानी कि पित्र लोक चले जाएगे इसलिए श्राद्ध में कौवों का विशेष तौर पर महत्व माना जाता है.
मनोज त्रिपाठी का कहना है कि श्राद्ध पक्ष में कौवे का दर्शन ही दुर्लभ हो जाते हैं मगर जो कौवे को भोजन करा देते हैं उनके पितरों को मुक्ति मिल जाती है. कौवे के साथ ही कुत्तों को भी भोजन कराने का महत्व माना जाता है, कुत्ते को अधोगति माना जाता है. जिसके दर्शन भी गलत बताए गए हैं और ऐसा कहा जाता है कि जिस घर में कुत्ता पाला हो उस घर में पितृ और देवता हव्य और कव्य स्वीकार नहीं करते हैं, इसलिए कौवे के लिए स्वांगबली निकालते हैं और स्वांगबलि देने के समय पर यही माना जाता है कि जो अधोगति गया हुआ पितृ है, वह उसको स्वीकार करके वहां से मुक्त हो जाएगा मगर कुछ कुल के ब्राह्मण मानते हैं कि काकबली और स्वांगबली नहीं होती है, क्योंकि उनके यहां यह माना जाता है कि उनके पितृ कभी अधोगति नहीं जाते हैं यह सामवेदी ब्राह्मण होते हैं और यह कभी भी श्राद्ध कर्म में कौवे और कुत्ते के लिए भोजन नहीं निकालते हैं. आधुनिकता के इस दौर में इंसान चांद तक भले ही पहुंच गया हो लेकिन आज भी हमारे रीति इसलिए कौवों की भी पितृ पक्ष के इन सोलह दिनों में भारी डिमांड रहती है और लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए इन कौवे और कुत्तों को भोजन कराकर पितरों की मुक्ति की कामना करते हैं.