हरिद्वार: इस बार कोरोना महामारी के चलते कई लोग अपने पितरों के निमित्त स्थानों पर श्राद्ध कर्म कराने नहीं आ पा रहे हैं. इसी को देखते हुए हरिद्वार स्थित नारायणी शिला मंदिर प्रबंधन द्वारा पहली बार ऑनलाइन श्राद्ध पिंडदान कराने की व्यवस्था की जा रही है, जिससे लोग अपने पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध और पिंडदान कर सकें. आखिर किस तरह से किया जाएगा ऑनलाइन अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध और पिंडदान देखें हमारी खास रिपोर्ट में.
शास्त्रों में श्राद्ध कर्म का उल्लेख
शास्त्रों में वर्णित है कि अपने पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए उनका श्राद्ध किया जाता है. गरुण पुराण के अनुसार जिसके भी पितरों को मुक्ति नहीं मिलती है तो उनका श्राद्ध कर उनको मुक्ति दिलाया जाता हैं. इसके लिए विशेष तीन स्थान है बदरीनाथ, हरिद्वार नारायणी शिला मंदिर और गया है. ऐसी मान्यता है कि इन तीनों ही स्थानों पर अपने पितरों के निमित्त पूजा अर्चना करने से भटके हुए पितरों को मुक्ति मिल जाती है.
ऑनलाइन श्राद्ध और पिंडदान इन तीन स्थानों पर श्राद्ध कर्म का है विशेष महत्व
पितरों को मुक्ति दिलाने का मार्ग श्राद्ध श्रद्धा भाव से किया जाता है और जिनके भी पितरों को मुक्ति नहीं मिलती है. उनको मुक्ति दिलाने के लिए बदरीनाथ, नारायणी शिला मंदिर और गया जी में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. हर साल लाखों की संख्या में लोग इन स्थानों पर अपने पितरों की मुक्ति दिलाने के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करते हैं.
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नारायणी शिला मंदिर में ऑनलाइन श्राद्ध और पिंडदान की व्यवस्था
नारायणी शिला मंदिर के मुख्य पुजारी मनोज त्रिपाठी का कहना है कि श्राद्ध कर्म अपने हाथों से ही करने का विधान है, लेकिन इस बार कोरोना काल में जो लोग श्राद्ध कर्म नहीं कर पा रहे हैं. उनके लिए हम ऑनलाइन श्राद्ध कराने की व्यवस्था कर रहे हैं. इसके लिए हम दो विधि अपना रहे हैं. पहला जो श्राद्ध कर्म करवाएंगे वह आचार्य और दूसरा श्राद्ध कर्म कराने वाले यजमान का गोत्र धारण कर प्रतिनिधि बिठाया जाएगा और गूगल मीट के माध्यम से लोगों को श्राद्ध कर्म कराने का प्रयास कर रहे हैं.
दो विधि से परिजन करा सकेंगे श्राद्ध और पिंडदान
मनोज त्रिपाठी का कहना है कि ऑनलाइन श्राद्ध कर्म कराने की दो विधि है. पहली एक आचार्य ब्राह्मण और श्राद्ध कर्म कराने वाले के प्रतिनिधि और दूसरी विधि मे 6 ब्राह्मण होंगे, जिसमें एक आचार्य, एक प्रतिनिधि और चार पाठ कराने वाले ब्राह्मण होंगे. श्राद्ध कर्म कराने वाले परिजन इन दोनों में से किसी भी विधि के अनुसार ऑनलाइन श्राद्ध कर्म करा सकते हैं. ऑनलाइन श्राद्ध कर्म में श्राद्ध कराने वाले व्यक्ति से संवाद लगातार जारी रहेगा. वह हमें देख सकते हैं और हम उनको पूजा का संकल्प कराएंगे. श्राद्ध कराने वाले परिजन से जो भी पूछा जाएगा. वह वहां पर बताता रहेगा. इससे श्राद्ध कर्म में उनकी श्रद्धा भी बनी रहेगी और उनको श्राद्ध का फल भी प्राप्त होगा.
श्राद्ध कर्म का है विशेष महत्व ऑनलाइन श्राद्ध और पिंडदान
नारायणी शिला मंदिर प्रबंधन द्वारा ऑनलाइन श्राद्ध कर्म कराने को लेकर लोग भी उत्साहित नजर आ रहे हैं. श्राद्ध कराने वाले लोगों का कहना है कि श्राद्ध कर्म के लिए जो ऑनलाइन व्यवस्था की जा रही है. यह काफी सराहनीय है क्योंकि कोरोना वायरस की वजह से किसी भी धार्मिक स्थान पर ज्यादा भीड़ नहीं हो सकती. लोगों का कहना है कि ऑनलाइन श्राद्ध और पिंडदान करने से पितरों को मुक्ति मिल पाएगी. क्योंकि, जो श्रद्धा भाव हमें रखना चाहिए उसको हम ऑनलाइन भी रख सकते हैं. पुरोहित जिस विधि से हमें श्राद्ध कर्म कराएंगे. हम उस विधि के अनुसार श्राद्ध कर्म करेंगे तो हमें विश्वास है कि हमारे पितरों को जरूर मुक्ति मिलेगी.
श्राद्ध और पिंडदान का धार्मिक महत्व
राजा सगर के पुत्र राजा भगीरथ ने अपने पितरों को मुक्ति दिलाने के लिए घोर तप किया था. तब जाकर मां गंगा धरती पर आई थी और राजा सगर को मुक्ति मिल सकी थी. तो वहीं, देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु बदरीनाथ नारायणी शिला और गया जी में जाकर अपने पितरों के निमित्त अपने हाथों से श्रद्धा भाव से श्राद्ध और पिंडदान करते हैं, तभी उनके पितरों को मुक्ति मिलती है. मगर, कोरोना काल में ऐसा पहली बार देखने को मिलेगा कि श्रद्धालु अपने पितरों की मुक्ति के लिए ऑनलाइन श्राद्ध और पिंडदान करेंगे. इसको लेकर लोगों में भी काफी उत्साह देखने को मिल रहा है.