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Shardiya Navratri 2023: हरिद्वार में नील पर्वत पर खंभ के रूप में विराजमान हैं मां चंडी देवी, जानें मंदिर की महिमा

Chandi Devi Temple Haridwar शारदीय नवरात्रि 2023 में इस बार ईटीवी भारत आपको उत्तराखंड में स्थित शक्तिपीठों के बारे में बताने जा रहा है. इससे पहले हमने हरिद्वार जिले में स्थित मां मनसा देवी के मंदिर के पौराणिक महत्व के बारे में बताया था. वहीं आज हम आपको हरिद्वार जिले में ही स्थित मां चंडी देवी मंदिर की महिमा के बारे में बताते हैं. इस मंदिर की महिमा भी अपरंपार है. Shardiya Navratri 2023

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 16, 2023, 8:05 AM IST

Updated : Oct 16, 2023, 3:36 PM IST

हरिद्वार में नील पर्वत पर खंभ के रूप में विराजमान हैं मां चंडी देवी.

हरिद्वार:धर्मनगरी हरिद्वार को वैसे तो हरि का द्वार कहा जाता है, लेकिन यहां देवी के भी कई मंदिर हैं, जिनके बारे में आज आपको विस्तार से बताया जाएगा. इसी में एक मंदिर है मां चंडी देवी का. हरिद्वार में मां चंडी देवी का मंदिर सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध है. इस मंदिर का इतिहास करीब 1200 साल पुराना है. मां चंडी देवी हरिद्वार में नील पर्वत पर मां खंभ के रूप में विराजमान हैं.

शारदीय नवरात्रि 2023

मां चंडी देवी मंदिर हरिद्वार में वैसे तो साल भर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि में यहां देश भर से भक्त माता के दर्शन करने आते हैं. इस दौरान यहां कई कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है.

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माता ने किया था राक्षसों का वध:पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब शुंभ, निशुंभ और महिसासुर के अत्याचारों से धरती पर हाहाकार मचा हुआ था. देवता भी तीनों राक्षसों के अत्याचारों से परेशान हो चुके थे. काफी जतन के बाद भी जब देवता तीनों राक्षसों का संहार नहीं कर पाए, तो सभी देवता एकत्र होकर भगवान भोलेनाथ के पास गए, जहां उन्होंने भगवान भोलेनाथ से गुहार लगाई.

शारदीय नवरात्रि 2023

पौराणिक कथाओं के अनुसार तब शुंभ, निशुंभ और महिसासुर का संहार करने के लिए भगवान भोलेनाथ और देवताओं के तेज से मां चंडी ने अवतार लिया. मां चंडी देवी से बचने के लिए तीनों राक्षस नील पर्वत पर छिप गए थे. तभी माता मां चंडी देवी हरिद्वार के नील पर्वत पर खंभ के रूप में प्रकट हुईं और शुंभ, निशुंभ व महिसासुर का संहार किया यानी उनका वध किया.

शारदीय नवरात्रि 2023

देवताओं ने मांगा था माता से वरदान: शुंभ, निशुंभ और महिसासुर का वध करने के बाद माता चंडी देवी ने देवताओं से वर मांगने को कहा था. तब देवताओं ने माता से विनती की थी कि वे मानव कल्याण के लिए यहीं नील पर्वत पर विराजमान हो जाएं. तब से माता चंडी देवी खंभ के रूप में हरिद्वार के नील पर्वत पर विरजमान हैं, और अपने दर पर आने वाले भक्तों का कल्याण कर रही हैं.
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शंकराचार्य ने कराया था मंदिर का जीर्णोद्धार: बताया जाता है कि मां चंडी देवी मंदिर का जीर्णोद्धार आठवीं शाताब्दी में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने कराया था. शंकराचार्य के बाद 1872 में कश्मीर के राजा सुचेत सिंह ने मां चंडी देवी मंदिर का जीर्णोद्धार कराया.

कैसे पहुंचें मंदिर: मां चंडी देवी का मंदिर हरिद्वार शहर में स्थित है. हरिद्वार आप देश के किसी भी कोने से बस और रेल से पहुंचे सकते हैं. दिल्ली से हरिद्वार की दूरी करीब 250 किमी है. हवाई मार्ग से आने वाले भक्तों के लिए देहरादून का जौलीग्रांट एयरपोर्ट सबसे नजदीक है. जौलीग्रांट एयरपोर्ट से हरिद्वार की दूरी करीब 35 से 40 किमी है. मां चंडी देवी मंदिर नील पर्वत के शिखर पर स्थित है, जहां जाने के लिए या तो आपको तीन किमी की चढ़ाई चढ़नी पड़ेगी. इसके अलावा आप रोपवे से भी मां चंडी देवी के मंदिर में आसानी से जा सकते हैं.

Last Updated : Oct 16, 2023, 3:36 PM IST

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