हरिद्वार:देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में विख्यात हैं मां के 52 शक्तिपीठ, जहां पर हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि इन 52 शक्तिपीठों की जननी आज भी बदहाली की मार झेल रही है. हालत यह है कि बड़े-बड़े सरकारी दावों के बावजूद आज भी कनखल स्थित पौराणिक सतीकुंड अर्थात 52 शक्तिपीठों की जननी सरकारी उपेक्षा के चलते बर्बादी की कगार पर है. बस आसपास के चंद लोग हैं, जो आज भी इस सतीकुंड का अस्तित्व बचाए रखे हुए हैं.
हरिद्वार की पौराणिक नगरी कनखल राजा दक्ष की नगरी कहलाती है. पुराणों के मुताबिक राजा दक्ष ने इसी कनखल में एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें सभी देवी देवताओं को निमंत्रण भेजकर सादर आमंत्रित किया था. लेकिन राजा दक्ष ने भगवान शिव और सती को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया. पिता मोह में माता सती अपने पति भगवान शिव के मना करने के बाद भी यज्ञ में पहुंचीं. मगर जब मां सती ने यज्ञ में अपने पति का आसन लगा नहीं देखा, तो इसे अपने पति का अपमान समझा और मां सती ने इससे नाराज होकर सतीकुंड में बने हवन कुंड में कूदकर जान दे दी थी. इस कथा का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड में मिलता है.
सती के हवनकुंड में आत्मदाह करने के बाद भगवान शिव ने अपनी जटा से वीरभद्र की उत्पत्ति कर राजा दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया था. इसी स्थान पर वीरभद्र ने राजादक्ष का सर भी धड़ से अलग कर दिया था. सती के हवन कुंड में कूदने के बाद भगवान शंकर क्रोध में सती का शरीर लेकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने लगे. जिसके बाद उन्हें रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के जले हुए शरीर के 52 टुकड़े किए. यह 52 टुकड़े पृथ्वी पर 52 स्थानों पर गिरे. जिन स्थानों पर यह टुकड़े गिरे उन्हें आज 52 शक्तिपीठों के रूप में जाना जाता है. इन्हीं 52 शक्तिपीठों की जननी है हरिद्वार के कनखल में स्थित सतीकुंड.
पंचपुरी के नाम से विख्यात है हरिद्वार: सतीकुंड वही स्थान है, जहां पर राजा दक्ष ने यज्ञ किया था. हरिद्वार को पंचपुरी भी कहा जाता है. हरिद्वार को पांच भागों में विभाजित किया गया है. शांतिकुंज से मायापुर तक मायापुरी, मायापुर से कनखल तक दक्षपुरी, दक्ष (कनखल) से जगजीतपुर तक जगजीतपुरी, फिर मिश्रपुरीऔर ज्वालापुरहै.
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12 सौ योजन में बना था दक्ष का यज्ञ कुंड:शिवपुराण के अनुसार राजा दक्ष के यज्ञ आयोजन को 12 सौ योजन में किया गया था. यहां बनाया गया हवन कुंड 12 सौ योजन तक फैला हुआ था. जिस स्थान पर आज सती कुंड मौजूद है, यह वही स्थान है, जहां पर बैठकर राजा दक्ष ने यज्ञ की आहुति दी थी, जो दक्ष मंदिर आज विद्यमान है. इसी स्थान पर आए भगवान शंकर के गणों ने यज्ञ के दौरान भृगु ऋषि की दाढ़ी नोच दी थी और यज्ञ तहस-नहस कर दिया था.
कंधे पर लेकर निकले थे सती का शरीर: इसी स्थान पर बनाए गए हवन कुंड स्थल से भगवान शंकर ने माता सती के जले हुए शरीर को अपने कंधे पर उठाया और पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया. भगवान विष्णु ने जब अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 52 टुकड़े करे, तो उसमें से एक अंग आज के पाकिस्तान स्थित हिंगला देवी शक्ति पीठ में गिरा था. वहां माई की कोहनी गिरी थी. भगवान शंकर की आंख से इस दौरान जहां जहां आंसू गिरे वहां वहां रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई.
एक-एक देवी व एक-एक भैरव की हुई थी उत्पत्ति:सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 52 टुकड़े हुए. जहां-जहां यह टुकड़े गिरे वहां वहां, एक एक देवी और भैरव की उत्पत्ति होती गई. इस तरह देश में 52 शक्तिपीठों की उत्पत्ति कनखल के इसी सतीकुंड से हुई.
भगवान शंकर से नाराज थे राजा दक्ष:कहा जाता है कि सती के लिए एक से बढ़कर एक वर आ रहे थे. लेकिन माता सती ने भस्म धारी भोले शंकर को ही अपना पति मान लिया था. गले में नाग और शरीर पर भस्म धारण करने वाले भगवान शंकर को उनके ससुर राजा दक्ष बिल्कुल पसंद नहीं करते थे. यही कारण था कि अपने यहां किए गए आयोजन में उन्होंने न तो भगवान शंकर को न्योता भिजवाया था और ना ही माता सती को.
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