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नवरात्रि का तीसरा दिन आज, मां माया देवी करती हैं सभी भक्तों की मुरादें पूरी

शारदीय नवरात्र में भक्त मां दुर्गा ने नौ रूपों की पूजा-अर्चना कर रहे हैं. दुनिया में ऐसे 51 स्थान हैं, जहां पर मां सती के अंग गिरे थे. जहां-जहां उनके अंग गिरे, वे स्थान सिद्धपीठ के रूप में विख्यात हुए. हरिद्वार में भी माया देवी का मंदिर मौजूद हैं, मान्यता है कि यहां पर मां सती के नाभि गिरे थे. नवरात्रि में मां माया देवी के दर्शन करने से सभी मुरादें पूरी होती है. जानिए माया देवी की क्या है मान्यता..

maya devi temple
चंद्रघंटा

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Published : Oct 19, 2020, 6:02 AM IST

हरिद्वारः शारदीय नवरात्र शुरू हो चुका है. नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना बड़े ही विधि-विधान से की जाती है. मां के हर रूप की अलग महिमा भी है. नवरात्रि के तीसरे दिन देवी के तृतीय स्वरूप चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. नवरात्रि के मौके पर हरिद्वार के सिद्धपीठ मां माया देवी मंदिर का दर्शन करना विशेष फलदायी माना जाता है. माना जाता है कि इसी स्थान पर मां सती का एक अंग नाभि यहां गिरा था. यह मंदिर तंत्र विद्या के लिए जाना जाता है.

राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदी थी मां सती
पुराणों की मानें तो राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ कराने के लिए यज्ञ कुंड का निर्माण कराया था. उन्होंने इस यज्ञ में तमाम देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया था, लेकिन अपने दामाद भगवान शंकर को नहीं बुलाया था. यज्ञ होने की जानकारी मिलते ही सती ने भी शंकर जी से वहां जाने की इच्छा जताई, लेकिन भगवान शंकर ने उन्हें बिना बुलाए नहीं जाने की सलाह दी. इसके बाद भी पिता प्रेम की वजह से सती यज्ञ में चली गई.

सिद्धपीठ मां माया देवी की महिमा.

उन्होंने वहां यज्ञ में अपने पति का आसन नहीं देखा. जिसे देख सती ने अपने पति और खुद का अपमान समझा और वो इसी जगह पर यज्ञ कुंड में कूद पड़ी. बाद में क्रोधित होकर शंकर भगवान ने रौद्र रूप धारण कर लिया. उनके निर्देश पर उनके गणों ने दक्ष का यज्ञ विध्वंस कर डाला. रौद्र रूप धारण कर भगवान शिव मां सती का मृत शरीर लेकर कर ब्रह्मांड में घूमते रहे. तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए.

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माया देवी मंदिर में गिरी थी मां सती की नाभि
पुराणों में कहा गया है कि जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरते गए, वो जगह शक्तिपीठ बन गई. सती की नाभि इसी स्थान पर हरिद्वार में गिरी थी. हरिद्वार में जिस जगह पर सती की नाभि गिरी थी. उस स्थान पर आज भी माया देवी मंदिर स्थित है. सती की नाभि गिरने से इस जगह को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है. इसी के बाद हरिद्वार का नाम मायापुरी पड़ा और मायापुरी इसी के बाद से सप्तपुरियों में सातवीं पुरी बन गई थी. इस मंदिर में ग्रहथ सन्यासी साधना करते हैं. यहां पर तंत्र पूजन और सात्विक पूजन भी किया जाता है. मां को मीठा भोग लगाया जाता है और मां प्रसन्न होकर अपने सभी भक्तों की सारी मुरादें पूरी कर देती हैं.

आमतौर पर श्रद्धालु माया देवी मंदिर में माता के दर्शन करने पहुंचते हैं, लेकिन नवरात्रि में मां का दर्शन करना विशेष फलदायी माना जाता है. माया देवी के दर्शन तब पूरे माने जाते हैं, जब वो उनके पहरेदार भैरव के दर्शन कर लें. माया देवी मंदिर में ही देवी के अन्य रूपों के भी दर्शन करने को मिल जाते हैं. इसी परिसर में भगवान शंकर की आराधना भी की जाती है.

माया देवी मंदिर लक्ष्मी के रूप में भक्तों के अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. इस मंदिर में नवरात्रों में जो भी भक्त दर्शन करने आता है, उसके यहां धन-संपदा बनी रहती है. क्योंकि, लक्ष्मी का दूसरा नाम माया है. इसका वर्णन दुर्गा सप्तशती में भी मिलता है. माना जाता है कि यहां पूजा करने से धन तो मिलता ही है, साथ ही दुश्मनों से भी छुटकारा मिलता है.

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हरिद्वार में एक ही स्थान पर मौजूद हैं सिद्ध देवियों के तीन मंदिर
हरिद्वार के माया देवी मंदिर में ही सिद्ध देवियों के तीन मंदिर एक स्थान पर मौजूद हैं. माया देवी का मंदिर त्रिकोण में है. इस त्रिकोण के उत्तरी पहाड़ी पर मां मनसा देवी, दक्षिण में शीतला देवी, जहां सती का जन्म हुआ और पूर्वी पहाड़ी पर चंडी देवी का मंदिर है. इसलिए महामाया देवी मंदिर में वो शक्ति है, जो भी दर्शन करता है. वो सभी इच्छाओं को प्राप्त कर लेता है. यही वजह है कि नवरात्रों में माया देवी मंदिर में मां के भक्तों का तांता लगा रहता है.

माया देवी मंदिर आने वाले भक्तों का कहना है कि माया देवी मंदिर में दर्शन कर जो भी कार्य किया जाता है. वह हमेशा सफल होता है और माता सभी भक्तों की मुरादें पूरी करती हैं. भक्तों का कहना है कि वो काफी समय से माया देवी मंदिर आते हैं और यहां आकर उन्हें शांति का अहसास होता है.

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