हरिद्वारः शारदीय नवरात्र शुरू हो चुका है. नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना बड़े ही विधि-विधान से की जाती है. मां के हर रूप की अलग महिमा भी है. नवरात्रि के तीसरे दिन देवी के तृतीय स्वरूप चंद्रघंटा की पूजा की जाती है. नवरात्रि के मौके पर हरिद्वार के सिद्धपीठ मां माया देवी मंदिर का दर्शन करना विशेष फलदायी माना जाता है. माना जाता है कि इसी स्थान पर मां सती का एक अंग नाभि यहां गिरा था. यह मंदिर तंत्र विद्या के लिए जाना जाता है.
राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदी थी मां सती
पुराणों की मानें तो राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ कराने के लिए यज्ञ कुंड का निर्माण कराया था. उन्होंने इस यज्ञ में तमाम देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को आमंत्रित किया था, लेकिन अपने दामाद भगवान शंकर को नहीं बुलाया था. यज्ञ होने की जानकारी मिलते ही सती ने भी शंकर जी से वहां जाने की इच्छा जताई, लेकिन भगवान शंकर ने उन्हें बिना बुलाए नहीं जाने की सलाह दी. इसके बाद भी पिता प्रेम की वजह से सती यज्ञ में चली गई.
उन्होंने वहां यज्ञ में अपने पति का आसन नहीं देखा. जिसे देख सती ने अपने पति और खुद का अपमान समझा और वो इसी जगह पर यज्ञ कुंड में कूद पड़ी. बाद में क्रोधित होकर शंकर भगवान ने रौद्र रूप धारण कर लिया. उनके निर्देश पर उनके गणों ने दक्ष का यज्ञ विध्वंस कर डाला. रौद्र रूप धारण कर भगवान शिव मां सती का मृत शरीर लेकर कर ब्रह्मांड में घूमते रहे. तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के टुकड़े करने शुरू कर दिए.
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माया देवी मंदिर में गिरी थी मां सती की नाभि
पुराणों में कहा गया है कि जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरते गए, वो जगह शक्तिपीठ बन गई. सती की नाभि इसी स्थान पर हरिद्वार में गिरी थी. हरिद्वार में जिस जगह पर सती की नाभि गिरी थी. उस स्थान पर आज भी माया देवी मंदिर स्थित है. सती की नाभि गिरने से इस जगह को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है. इसी के बाद हरिद्वार का नाम मायापुरी पड़ा और मायापुरी इसी के बाद से सप्तपुरियों में सातवीं पुरी बन गई थी. इस मंदिर में ग्रहथ सन्यासी साधना करते हैं. यहां पर तंत्र पूजन और सात्विक पूजन भी किया जाता है. मां को मीठा भोग लगाया जाता है और मां प्रसन्न होकर अपने सभी भक्तों की सारी मुरादें पूरी कर देती हैं.