नारायणी शिला हरिद्वार में श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को मिलता है मोक्ष हरिद्वार:आज 29 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है, जो 14 अक्टूबर तक चलेंगे. हिंदू धर्म में पितृ पक्ष यानी श्राद्ध का बड़ा महत्व है. पितृ पक्ष में लोग धर्मिक स्थलों पर जाते हैं और अपने पितरों का श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करते हैं. देशभर में कई जगहों पर श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. बिहार के गया, उत्तराखंड के हरिद्वार में नारायणी शिला और उत्तराखंड के ही चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम में श्राद्ध करने का खास महत्व है. आज हम आपको हरिद्वार की नारायणी शिला के बारे में बताते हैं, यहां तर्पण करने का क्या महत्व है.
हरिद्वार के गंगा घाटों पर भीड़: हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार श्राद्ध करने से पितृ तृप्त होते हैं. पितरों के प्रसन्न रहने से घर में सुख शांति, धन संपदा और समृद्धि आती है. पितृ पक्ष शुरू होते ही हरिद्वार के गंगा घाटों पर श्राद्ध और तर्पण करने वालों की भीड़ लग जाती है. माना जाता है कि हरिद्वार में नारायणी शिला पर तर्पण करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और घर परिवार में सुख शांति आती है.
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नारायणी शिला से जुड़ी मान्यता: नारायणी शिला का हजारों साल पुराने ग्रंथों में वर्णन किया गया है और मान्यताओं के बारे में बताया गया है. कहा तो यहां तक जाता है कि नारायणी शिला के दर्शन मात्र से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. स्कंद पुराण के केदार खंड में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है कि नारायणी शिला में पितरों का श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करने से 100 पितृ कुल, मातृ कुल और अपना मोक्ष कर लेता है.
वायु पुराण में है वर्णन:शास्त्रों के अनुसार हरिद्वार स्थित नारायणी शिला में भगवाव विष्णु के कंठ से लेकर नाभि तक का हिस्सा है, जिसके बारे में वायु पुराण में बताया गया है. शास्त्रों में तो यहां तक कहा गया है कि नारायणी शिला में साक्षात भगवान विष्णु का वास है. इस कारण यहां श्राद्ध करने के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
नारायणी शिला के प्रबंधक मनोज त्रिपाठी बताते हैं कि हमारे जो पूर्वज यानी पितृ शरीर छोड़ चुके हैं, उनका पितृ पक्ष के दौरान दोबारा से घर में आगमन होता है. पितरों के प्रति हमारी जो भावना है, इस दौरान उसे पितृ स्वीकार करते हैं. पूर्णिमा से अमावस तक का 16 दिन का श्रद्धा पक्ष होता है. इस दौरान जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के लिए जो कार्य करता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है. वहीं, जो व्यक्ति पितरो के दोष से पीड़ित है वो श्राद्ध पक्ष में पितरों के लिए पिंडदान नारायणी शिला पर करता है तो उसे पितृ दोष से मुक्ति मिलेगी.