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निर्जला एकादशी पर भक्तों ने लगाई गंगा में डुबकी, दान पुण्य करने से होती है अक्षय फल की प्राप्ति - top news

निर्जला एकादशी सनातन धर्म में हर साल जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी के रूप में मनाई जाती है. निर्जला एकादशी के महत्व के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इस एकादशी में व्रत करने वाले व्यक्ति को साल भर की सभी 24 एकादशी के बराबर फल मिलता है. एकादशी के चलते गंगा स्नान के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु धर्मनगरी पहुंच रहे हैं.

निर्जला एकादशी पर भक्तों ने लगाई गंगा में डुबकी.

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Published : Jun 13, 2019, 10:59 AM IST

Updated : Jun 13, 2019, 1:29 PM IST

हरिद्वार: गंगा दशहरा और गायत्री जयंती के पर्व के बाद धर्मनगरी में निर्जला एकादशी मनाई जा रही है. गंगा स्नान के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु धर्मनगरी पहुंच रहे हैं. इस एकादशी को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों में सबसे बलिष्ठ माने जाने वाले भीम ने भी इस व्रत को रखा था, इसीलिए इस एकादशी को भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस एकादशी में बिना जल ग्रहण किए व्रत करते हैं, जिसके कारण ही यह एकादशी निर्जला एकादशी के नाम से प्रचलित है.

निर्जला एकादशी पर भक्तों ने लगाई गंगा में डुबकी.

सनातन धर्म में हर साल जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी के रूप में मनाई जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, एक साल में 24 एकादशी आती हैं, निर्जला एकादशी के महत्व के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इस एकादशी में व्रत करने वाले व्यक्ति को साल भर की सभी 24 एकादशी के बराबर फल मिलता है. निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.

भगवान विष्णु की आराधना से मिलता है अक्षय फल
सुबह व्रत का आरंभ पवित्र नदी में स्नान करने से होता है, जिसके लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु धर्मनगरी हरिद्वार में गंगा स्नान करने के लिए पहुंच रहे हैं. इस दिन भगवान विष्णु को लाल फूल-फल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. आज के दिन का व्रत बड़ा ही कठिन माना जाता है, क्योंकि पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए व्रत रहते हैं, जिसके बाद अगले दिन भगवान विष्णु की पूजा करके व्रत का समापन करते हैं. निर्जला एकादशी के दिन दान पुण्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है.

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भीमसेन एकादशी के नाम से भी प्रचलित है निर्जला एकादशी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल में पांडवों में भीमसेन खाने-पीने के बड़े शौकीन थे. उनको लेकर यह बात बड़ी प्रचलित थी कि भीमसेन अपने भूख पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं, इसीलिए उनको छोड़कर उनके सभी भाई और द्रौपदी एकादशी का व्रत किया करते थे. भीम अक्सर इस बात को लेकर व्यथित रहते थे कि अपनी भूख को नियंत्रित न कर पाने की आदत के कारण वह एकादशी का व्रत नहीं कर पाते हैं, कहीं ना कहीं उनको ऐसा लगता था कि उनका एकादशी का व्रत न करना भगवान विष्णु का निरादर है. इस बात से परेशान होकर भीमसेन अपनी इस व्यथा को लेकर महर्षि व्यास के पास पहुंचे, भीमसेन ने जब अपनी समस्या महर्षि व्यास को सुनाई तो उन्होंने भीम को इसका उपाय बताया.

महर्षि व्यास ने भीमसेन को उपाय बताया कि 24 एकादशी के व्रत के बराबर फल केवल एक दिन निर्जला एकादशी का व्रत रख कर पाया जा सकता है. ऐसे में अगर तुम अपने भूख को नियंत्रण नहीं कर पाते हो तो साल भर की 24 एकादशी की बजाय 1 दिन केवल निर्जला एकादशी का व्रत रखो. तब से निर्जला एकादशी को भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाने लगा.

Last Updated : Jun 13, 2019, 1:29 PM IST

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