हरिद्वार:आज से श्राद्ध पक्ष शुरू हो रहा (Shradh Paksha 2022) है. अगले 15 दिन तक पितर यमलोक से आकर पृथ्वीलोक पर निवास करते हैं. हिंदू चाहे दुनिया में किसी भी कोने में रहे, लेकिन इस श्राद्ध पक्ष में वह अपने देव तुल्य पितरों को जरूर पूजते हैं. कहा जाता है कि जो इस पक्ष में पितरों को भूल जाता है या फिर उनके अंतिम कर्म विधि विधान से पूरे नहीं करता उससे उनके पितर रुष्ठ हो जाते हैं. ऐसे रूष्ठ पितरों को मानने के लिए धरती पर तीन स्थान बताए गए हैं. पहला बदरीनाथ धाम, दूसरा हरिद्वार में नारायणी शिला और तीसरा स्थान है गया जी.
मान्यता है कि हरिद्वार में नारायणी शिला (Narayani Shila Haridwar) पर पितरों का तर्पण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म के लिए यहां देशभर के श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. इस स्थान से कई मान्यताएं और किवंदतियां जुड़ी हुई हैं. देश ही विदेश से भी लोग यहां अपने पितरों (Shradh Paksha 2022) की आत्मा की शांति के लिए पूजा करवाने आते हैं. पुराणों में कहा गया है कि जब सूर्य कन्या राशि में आता (Haridwar Pinda Dan Mandir) है, तब श्राद्ध पक्ष शुरू होते हैं. इस ग्रह योग में पितृलोक पृथ्वी के सबसे करीब होता है, यह ग्रह योग आश्विन कृष्ण पक्ष में बनता है. इसीलिए पृथ्वी के सबसे निकट होने के कारण पितृ हमारे घर पहुंच जाते हैं.
नारायणी शिला से जुड़ी कथा: मान्यता के अनुसार हरिद्वार में स्थित नारायणी शिला (Narayani Shila Haridwar) भगवान श्री हरि नारायण की कंठ से नाभि तक का हिस्सा है. भगवान की कमल विग्रह स्वरूप का बीच का हिस्सा है. इसी कमल स्वरूप भगवान के चरण गयाजी में विष्णु पाद और ऊपर का हिस्सा ब्रह्म कपाली के रूप में बद्रिकाश्रम अर्थात बदरीनाथ में पूजा जाता है और श्रीहरि का कंठ से लेकर नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार स्थित नारायणी शिला के रूप में पूजा जाता है.
यह है नारायणी शिला का महत्व: गयासुर राक्षस ने भगवान नादर जी की प्रेरणा से अपने पितरों और अपने मोक्ष के लिए भगवान नारायण से बैर करने का प्रयास किया. भगवान नारद ने बताया कि श्री हरि विष्णु का घर बद्रीका आश्रम यानी बदरीनाथ में है और श्रीहरि वहीं पर मिलेंगे. जिसके बाद गयासुर बदरीनाथ पहुंचा. लेकिन उसे पापी जानकर भगवान ने उसे अपने दर्शन नहीं दिए.
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स्कंद पुराण के अनुसार: इसके बाद गयासुर नाम का राक्षस देवलोक से भगवान विष्णु यानी नारायण का श्री विग्रह लेकर भागा तो नारायण के विग्रह का धड़ यानी मस्तक वाला हिस्सा श्री बदरीनाथ धाम के ब्रह्मकपाली नाम के स्थान पर गिरा. उनके हृदय वाले कंठ से नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार के नारायणी मंदिर में गिरा और चरण गया में गिरे. नारायण के चरणों में गिरकर ही गयासुर की मौत हो गई.
स्कंद पुराण के केदार खंड के अनुसार, हरिद्वार में नारायण का साक्षात हृदय स्थान होने के कारण इसका महत्व अधिक इसलिए माना जाता है. क्योंकि मां लक्ष्मी उनके हृदय में निवास करती है. इसलिए इस स्थान पर श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है.
कथाओं के अनुसार मौत के बाद भी गयासुर का शरीर शांत नहीं हुआ तो भगवान विष्णु ने अपने गधे की नोक से उसके मस्तक पर प्रहार कर उसके शरीर को शांत किया और वरदान दिया. तब भगवान विष्णु ने कहा था कि गयासुर अपने और पितरों के मोक्ष के लिए यह सब किया है. इसीलिए इन तीनों स्थानों पर पूजा अर्चना करने से अतृप्त पितृ तृप्त होंगे.
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