हरिद्वार:भोले शंकर, जिनकी महिमा अपरंपार है. दुनिया जिन्हें पूजती है. जो सबसे ज्यादा अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं. भगवान शंकर को याद करने मात्र से उनके कष्ट दूर हो जाते हैं. पुराणों के अनुसार हरिद्वार के कनखल नगरी में दक्ष प्रजापति मंदिर में भगवान शिव का पहला शिवलिंग स्थापित है. जिसे खुद भोले शंकर ने स्थापित किया था. वैसे तो शिव हर जगह विद्यमान हैं, पर उनकी ससुराल में शिव की निराली महिमा है. अगर यहां पर उनकी पूजा और आराधना की जाए तो जीवन के सभी कष्टों का अंत हो जाता है.
हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थान हरिद्वार है. जहां सभी देवाता साक्षात विराजते हैं. यहां कलयुग की प्रधान देवी मां गंगा हैं तो भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी भी यहां विराजते हैं. देवों के देव भोले शंकर तो यहां के कण-कण में वास करते हैं. कैलाश के बाद अगर भोले शंकर का कोई निवास स्थान है तो वह है उनकी ससुराल हरिद्वार की एक उपनगरी कनखल. जिसका वर्णन हमारे शास्त्रों और पुराणों में भी है. कनखल ब्रह्मा जी के पुत्र और राजा दक्ष की नगरी इसी पौराणिक नगरी में स्थित है. दक्षेश्वर महादेव का मंदिर जिसे दक्ष प्रजापति के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. यहां मान्यता है कि अगर यहां भगवान शंकर का विधि विधान के साथ रुद्राभिषेक किया जाए और उनकी पूजा की जाए तो भगवान शिव सभी मनोकामना पूरी करते हैं.
राजा दक्ष की नगरी और शिव की ससुराल कनखल एक छोटा सा नगर है, जो हरिद्वार के पास ही है. यह नगरी हरिद्वार स्टेशन से करीब 2 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है. यहीं पर स्थित है दक्षेश्वर महादेव मंदिर. इस मंदिर की पौराणिक कथा के अनुसार शिव के ससुर राजा दक्ष ने शिव को अपमानित करने के लिए यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया पर अपने दामाद को आमंत्रित नहीं किया. दक्ष के यज्ञ में जब आकाश मार्ग से सभी देवताओं को जाते हुए शिव की अर्धांगिनी और राजा दक्ष की पुत्री सती ने देखा तो उन्हें मालूम हुआ कि उनके पिता ने कोई यह का आयोजन किया है और सभी देवी देवता उसी में शामिल होने के लिए जा रहे हैं.
तब सती ने भी अपने पति शिव से यज्ञ में जाने की जिद की. पर शिव ने यह कहकर मना कर दिया कि जब हमें आमंत्रण नहीं मिला है तो वहां नहीं जाना चाहिए. पित्र प्रेम में सती पति की आज्ञा का उल्लंघन कर यज्ञ में चलीं गईं. उनके वहां पहुंचने पर उन्होंने देखा कि सभी देवी देवताओं का स्थान तो यज्ञ में है पर उनके पति का नहीं है और उनके पिता शिव के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग कर रहे थे. यह सब सती से सहन नहीं हुआ और सती ने उसी यज्ञ कुंड में कूदकर अपने शरीर को त्याग दिया.