हरिद्वार: धर्मनगरी में अगले साल (2021) आयोजित होने वाले कुंभ में प्रशासन उन सभी पहलुओं पर ध्यान दे रहा है, जो मेले में सिरदर्द बन सकते हैं. शासन-प्रशासन पुराने हादसों से सबक लेते हुए नई योजनाएं तैयार कर रहा है. हरिद्वार कुंभ में पुराने हादसों की पुर्नावृति न हो इसके लिए कुंभ मेलाधिकारी दीपक रावत पुराने हादसों से जुड़ी सरकारी फाइलों को रोज अध्ययन कर रहे हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश शासन काल से जुड़ी हुई भी कई फाइलें भी हैं.
इतना ही नहीं, पुरानी फाइलों के अध्ययन के साथ मेलाधिकारी दीपक रावत उन लोगों से मिल रहे हैं, जिन्होंने कई कुंभ देखे हैं, ताकि नई योजना बनाने में मदद मिल सके. इसे नियती कहें या कुछ और, कुंभ में हादसों का होना एक इतिहास सा बन गया है. अक्सर देखने में आता है कि मेला प्रशासन और राज्य सरकारों के तमाम बंदोबस्त और दावों के उलट श्रद्धालुओं की भीड़ भगदड़ों का शिकार हो जाती है.
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कुंभ मेलों के इतिहास पर अगर नजर डालें तो हर कुंभ में कोई न कोई बड़ा हादसा हुआ है. जानकारों की मानें तो केवल अखाड़ों और महंतों की सुरक्षा करने वाले कुंभ मेल प्रशासन ने बीते कई सालों से इस पर ध्यान दिया है कि भीड़ पर नियंत्रण कैसा किया जाए? कैसे संतों के साथ-साथ आम जनता की उमड़ती भीड़ को अलग-अलग मार्गों से डाइवर्ट किया जाए.
इतिहास के पन्ने कुंभ की कुछ दर्दनाक घटनाओं से पटे पड़े हैं. ऐसा नहीं है कि हरिद्वार कुंभ में ही हादसे हुए हैं. प्रयागराज कुंभ भी हादसों का गवाह रह चुका है. एक हादसे में सैकड़ों लोगों ने अपनी जान गंवाई थी.