हरिद्वार: गंगा जिसे पतित पावनी और मोक्षदायिनी के नाम से जाना जाता है. गंगा के तेजी से दूषित होने की वजह से मोदी सरकार ने साल 2014 में सत्ता पर काबिज होते ही महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे लागू की. इसके अंतर्गत गंगा को स्वच्छ करने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का विशेष बजट रखा गया था. लेकिन, 5 साल बीत जाने के बाद भी गंगा स्वच्छ नहीं हो पाई है. अब देश में हो रहे लोकसभा चुनाव की वजह से सरकार दोबारा गंगा स्वच्छता को लेकर तमाम दावे कर रही है. साथ ही गंगा स्वच्छता के मुद्दे पर अपनी पीठ थपथपाने के लिए कई विज्ञापन भी चला रही है. लेकिन जमीनी हकीकत तो ये है कि गंगा में गिरने वाले नाले जस के तस है और गंगा दिनोंदिन दूषित होती जा रही है.
गंगा की स्वच्छता को लेकर ईटीवी भारत ने लंबे समय से काम करने वाली संस्था मातृ सदन सहित गंगा प्रेमियों से बात की. इस दौरान गंगा के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ चुके ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद का कहना है कि गंगा के नाम पर नमामि गंगे योजना में केवल दिखावा हो रहा है. जमीनी स्तर पर गंगा में खनन, बांध जो गंगा के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हैं, उसपर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद का कहना है कि गंगा की स्वच्छता के लिए एक पैसे के भी विज्ञापन, जागरूकता अभियान और नाच गाने की जरूरत नहीं है. गंगा स्वच्छता के नाम पर गंगा में क्लोरीन डाला जा रहा है, जिससे गंगा में रहने वाले जीव मर रहे हैं.