हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार में आज गुरु पूर्णिमा का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया गया. इस दौरान हरिद्वार के मठ, मंदिरों में श्रद्धालुओं की काफी भीड़ देखी गई. गुरु पूर्णिमा पर पंचायती श्री निरंजनी अखाड़ा स्थित चरण पादुका मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की गई. इस अवसर पर दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं ने अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद एवं मां मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज से आशीर्वाद लिया.
धर्मनगरी हरिद्वार में गुरु पूर्णिमा की धूम, मठ-मंदिरों में लगा श्रद्धालुओं का तांता - Guru Purnima in Haridwar
देशभर में आज गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है. हरिद्वार में भी गुरु पूर्णिमा की धूम है. हरिद्वार के मठ, मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है.
श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज ने कहा गुरु पूर्णिमा अपने गुरु के प्रति समर्पण व आस्था का पर्व होता है. जीवन में गुरु ही हमें ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है. गुरु के सिखाए ज्ञान पर ही जीवन सफल होता है. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपनो जिन गोविंद दियो बताए का उदाहरण देते हुए श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज ने कहा भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान से बढ़कर स्थान दिया गया है. उन्होंने कहा शिवपुराण के अनुसार 28वें द्वापर में इसी दिन भगवान विष्णु के अंशावतार वेदव्यास जी का जन्म हुआ. महर्षि वेदव्यास को चारों वेदों का ज्ञाता माना जाता है.
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उन्होंने ही सर्वप्रथम चारों वेदों का ज्ञान मानव जाति को प्रदान किया था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचार प्रमुख पद्म कुमार ने कहा गुरु से प्राप्त शिक्षाओं व ज्ञान को आचरण में उतारकर जीवन में आने वाली बड़ी से बड़ी चुनौतियों का आसानी से सामना किया जा सकता है. गुरु केवल एक शिक्षक ही नहीं बल्कि अपने ज्ञान से शिष्य के सभी दोषों को दूर कर प्रत्येक संकट से बाहर निकालने वाला मार्गदर्शक भी होता है. वहीं, प्राचीन अवधूत मंडल में भी आज गुरु पूर्णिमा का पर्व पूरे ही धूमधाम से मनाया गया. इस दौरान प्राचीन अवधूत मंडल के महंत स्वामी रूपेंद्र प्रकाश ने कहा गुरु न सिर्फ शिष्य के जीवन को संवारते हैं, बल्कि समाज और राष्ट्र निर्माण में भी अहम योगदान देते हैं. गुरु ही शिष्य की जीवन रूपी नैया को भव सागर से पार लगाते हैं. गुरु की डांट में भी एक अद्भुत ज्ञान होता है. इसलिए सच्चे शिष्य को मन में गुरु के प्रति सदैव सम्मान रखना चाहिए.