हरिद्वार: धर्मनगरी में चल रहे महाकुंभ में 12 अप्रैल को पहला शाही स्नान होने जा रहा है. विशेष नक्षत्रों में पड़ रहे इस पर्व का विशेष महत्व है. क्योंकि इस समय कुंभ काल चल रहा है और ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के बाद जिन चार जगह पर अमृत की बूंदें गिरी थी, उनमें से एक हरिद्वार भी है. जहां हर 12 वर्ष में कुंभ का आयोजन किया जाता है, जिसमें देशभर से साधु संत पहुंचते हैं. आपको बता दें कि कल सोमवती अमावस्या भी है.
शाही स्नान को लेकर संन्यासियों के सभी 13 अखाड़ों के साथ मेला प्रशासन और जिला प्रशासन की बैठक हो चुकी है. जिसमें अखाड़ों के स्नान क्रम तय हो चुके है. कुंभ पर्व पर संत शाही स्नान के लिए बड़ी शान-शौकत के साथ जाते हैं. सभी अखाड़ों का क्रम होता है, जिस क्रम में वे एक दूसरे के बाद स्नान करते हैं.
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संतों का कहना है की राजा, महाराजाओं के समय में राज्य का शासक, संत महात्माओं का स्वागत बड़ी शान और शौकत के साथ किया करते थे. वहीं, कुंभ के दौरान राजा, महाराजा साधु संतों को बड़ी राजशाही ठाट बाट के साथ स्नान के लिए ले जाया करते थे. तभी से यह प्रथा चली आ रही है कि इन चार प्रमुख स्थानों पर कुंभ के दौरान होने वाले स्नान को शाही स्नान कहा जाता है, जिसमें प्रमुखता साधु संत स्नान करते हैं.
संतों की माने तो कुंभ पर्व का शाही स्नान अपने आप में संतों का समागम है, जिसमें ध्यान योग और अध्यात्म से जुड़े सभी प्रमुख बातें एक जगह देखने को मिलती हैं. इस दिन कुंभ नगरी की छटा विशेष रहती है, जिसमें अलौकिक शक्ति का समावेश रहता है. संतों का मानना है कि शाही स्नान के दिन लोक कल्याण के लिए सभी साधु संत स्नान करते हैं.