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Chaitra Navratri 2022: हरिद्वार की अधिष्ठात्री मायादेवी के मंदिर में लगा भक्तों का तांता - मायादेवी मंदिर में पूजा

चैत्र नवरात्रि का आज पहला दिन है. हरिद्वार के मायादेवी मंदिर में तड़के से ही श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां शैलपुत्री की पूजा करने से अच्छा स्वास्थ्य, मान-सम्मान और यश मिलता है.

Chaitra Navratri 2022
चैत्र नवरात्रि 2022

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Published : Apr 2, 2022, 10:10 AM IST

हरिद्वार:चैत्र नवरात्रि का आज पहला दिन है. नवरात्रि के प्रथम दिन मां दुर्गा के प्रथम रूप मां शैलपुत्री की पूजा हो रही है. हरिद्वार में माता के प्रसिद्व मंदिर मां मनसा देवी, चंडी देवी और माया देवी मंदिर में सुबह से बड़ी संख्या में भक्त पहुंच रहे हैं. हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी और 52 शक्तिपीठों में से एक मायादेवी मंदिर नवरात्रों के पहले दिन श्रद्वालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है.

मां शैलपुत्री की हो रही पूजा:हिमालय की पुत्री होने के कारण मां को शैलपुत्री नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां शैलपुत्री की पूजा करने से अच्छा स्वास्थ्य, मान-सम्मान और यश मिलता है. मां शैलपुत्री को सफेद वस्त्र अति प्रिय हैं. मां शैलपुत्री की पूजा करने से उत्तम वर की प्राप्ति भी होती है.

अधिष्ठात्री देवी मायादेवी मंदिर में भक्तों का तांता.

नवरात्रि के नौ दिनों में मां के 9 रूपों की पूजा का विधान है. भक्त नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास भी रखते हैं. मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा की विधिवत पूजा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. मां दुर्गा के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है.
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मां शैलपुत्री मंत्र:-ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:
मां शैलपुत्री भोग:मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप को गाय के घी और दूध से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से मां शैलपुत्री प्रसन्न होती हैं.
भगवान श्रीराम ने की थी मां की उपासना:देवी दुर्गा की पूजा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. भगवान श्रीराम ने भी विजय की प्राप्ति के लिए मां दुर्गा जी की उपासना की थी. ऐसी अनेक पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का महत्व व्यक्त किया गया है. वहीं, मां भगवती के सिद्ध पीठों की पौराणिक कथाओं में भी कहा जाता है कि 52 शक्तिपीठों की शुरुआत हरिद्वार से ही हुई थी.

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