रुड़की:मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन हैं, हिंदुस्तां हमारा ये पंक्तियां देश की मूल आत्मा है. हमारा मजहब को लेकर खाई खोदने वालों की अपनी फितरत हो सकती है, लेकिन इस खाई को पाटने वाले भी बेशुमार हैं. मजहबी ऊंच-नीच के माहौल के बीच शिक्षानगरी से सटा ढंडेरा गांव यकीनन भाईचारे की नजीर बना हुआ है. यहां कई दशकों से मंदिर और मस्जिद एक दूसरे के सामने हैं. जहां दोनों धर्म के लोग आपसी सौहार्द भाव की मिसाल दे रहे हैं.
वहीं ग्रामीण बताते हैं कि गांव के भीतर एक मस्जिद थी, लेकिन बढ़ती आबादी के कारण 1965 में गुलाम बारी ने मस्जिद के लिए भूमि दान दी थी, जिसके बाद फाटक के पास साबरी मस्जिद का निर्माण किया गया जहां पर रोजाना लोग नमाज अता करते आ रहे हैं. बाकायदा माइक से अजान दी जाती है, तो वहीं मस्जिद के सामने साल 1975 में जसवीर राणा व शमशेर राणा ने अपनी भूमि मंदिर के लिए दान दी थी.