हरिद्वार:कोरोना के बीचआज पूरे देश में नाग पंचमी का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. आज के दिन लोग नाग देवता की पूजा के साथ-साथ भगवान शिव की पूजन कर जलाभिषेक भी कर रहे हैं. वहीं, सावन मास में पड़ने वाले इस त्योहार की धार्मिक मान्यता भी है. जानिए क्या है वह मान्यताएं...
धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि शेषनाग जिसका निवास बैकुंठ में है. शेषनाग भगवान विष्णु के साथ रहते हैं. उनके सिर पर महत्वपूर्ण पृथ्वी का भार है. वहीं, वासुकी नाग को भगवान शिव ने अपने गले में धारण किया है. भविष्य पुराण, अग्निपुराण, स्कंद पुराण, नारद पुराण और महाभारत में भी नागों की उत्पत्ति और नाग पूजा का वर्णन मिलता है.
भारत-नेपाल सहित दुनिया के कई अन्य देशों की प्राचीन संस्कृतियों में सांपों की पूजा की जाती है. भारत में नागपंचमी सिंधु घाटी सभ्यता के समय से मनाई जाती है. यह पर्व नागा जनजाति में प्रमुखता से मनाया जाता है. भारत के प्राचीन और पवित्र महाकाव्यों में से एक महाभारत में उल्लेख है कि राजा जनमेजय नागों के लिए एक यज्ञ करते हैं. यह यज्ञ उनके पिता राजा परीक्षित की मौत का बदला लेने के लिए था, क्योंकि राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक सांप के काटने से हुई थी. वहीं, कहा जाता है कि महान ऋषि आशिका ने जनमेजय को यज्ञ करने से रोकने और सांपों को यज्ञ में आहूतिे से बचाने के लिए शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन उस यज्ञ को रोका था. तब से उस दिन को पूरे भारत में नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है.
शक्तिधर शास्त्री ने बताया कि सावन महीना बड़ा पवित्र माना जाता है. क्योंकि इसमें कई पर्व आते है. वह बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाते हैं. नागपंचमी इसलिए भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि नाग भगवान शंकर के आभूषण माने जाते हैं. इस बार की नागपंचमी इसलिए भी विशेष मानी जाती है क्योंकि इस बार शनिवार को नागपंचमी है. वहीं, शनिदेव का स्वरूप भी काला है. वहीं, अधिकतर नागों का रंग भी काला होता है. शंकर भगवान भी कृष्ण वर्ण के हैं.