हरिद्वार: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 की रणभेरी बच चुकी है. चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने एक बार फिर प्रत्याशी जनता के बीच में हैं. हरिद्वार में बीते बीस सालों से मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही रहा है. लेकिन जनता बीते चार चुनावों से अपना आशीर्वाद बीजेपी प्रत्याशी को ही देती आई है. आखिरी बार हरिद्वार में कांग्रेस 1984 में जीतकर आई थी.
उसके बाद कांग्रेस को जीत का स्वाद चखने का मौका नहीं मिला. इस बार कांग्रेस ने पूर्व पालिकाध्यक्ष सतपाल ब्रह्मचारी को अपना चेहरा बनाया है. जबकि बीजेपी ने अपने चार बार से लगातार जीत दर्ज कराते आ रहे मदन कौशिक को ही चुनावी मैदान में उतारा है. लेकिन क्या इस बार कांग्रेस, बीजेपी के इस अभेद्य किले को भेदने में कामयाब होगी.
कांग्रेस के हाथ में नहीं आया हरिद्वार: उत्तराखंड में भले एक बार कांग्रेस तो एक बार बीजेपी के सत्तारूढ़ होने का ट्रेंड चला आ रहा हो, लेकिन हरिद्वार शहर की सीट पर इस ट्रेंड का कोई असर राज्य गठन के बाद से नहीं पड़ा है. यहां पर अब तक एकतरफा बीजेपी अपना कमल खिलाने में कामयाब रही है. इसका बड़ा कारण यह था की बीजेपी प्रत्याशी के खिलाफ कांग्रेस की सबसे बड़ी चूक ये रही है कि पार्टी कभी कोई दमदार प्रत्याशी को खड़ा ही नहीं कर पाई.
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बीजेपी को मिली हर बार जीत:पहली बार जब बीजेपी ने मदन कौशिक को टिकट मिला था तो उस समय कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता पारस कुमार जैन को मैदान में उतारा था, लेकिन उस समय कांग्रेस से बगावत कर बसपा के हाथी पर विकास चौधरी के सवार हो जाने के कारण कांग्रेस के समीकरण ऐसे बदले की फिर कभी बीजेपी ने जिले में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. पहली जीत के बाद से हरिद्वार सीट पर अब तक कभी कांग्रेस कोई ऐसा दमदार चेहरा भी नहीं उतार पाई जो मदन कौशिक की नींव को हिला सके.
कांग्रेस की हार का बड़ा कारण:आखिरी के तीनों विधानसभा चुनाव टिकट मिलने के बाद से ही एक तरफा नजर आते रहे हैं. कमजोर प्रत्याशी के साथ कांग्रेस की हार में अंदरूनी गुटबाजी भी हमेशा से बड़ा कारण रहा है. इस बार भले कांग्रेस ने दमदार प्रत्याशी मैदान में उतारा हो, लेकिन इससे भी कांग्रेस का एक धड़ा खफा है, जो एक बार फिर हरिद्वार में कांग्रेस को कमजोर कर सकता है.