हरिद्वार: भगवान शिव की ससुराल कनखल के बारे में मान्यता है कि यहां के कण-कण में भगवान शिव बसते हैं. इसी कनखल में भगवान शंकर के कई ऐसे सिद्ध स्थान भी हैं जिसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं. भूमिया मंदिर ऐसे ही एक स्थान है. भूमिया मंदिर कि मान्यता है कि जब मां सती ने हवन कुंड में कूद कर अपने शरीर का त्याग किया था उस वक्त भगवान शिव के क्रोध से धरती भी डोल गई थी. तब देवी-देवताओं के आग्रह करने पर इस स्थान पर भगवान शिव ने अपनी मृगछाला रखी थी. जिसके बाद पृथ्वी का डोलना बंद हो गया था. कहा जाता है कि जो भी यहां सांप की पूजा करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. पौराणिक काल से ही इस स्थान पपर की गई पूजा का विशेष महत्व माना जाता है.
अगर आपके जीवन में सुख शांति नहीं है या फिर आपको जमीन जायदाद का सुख नहीं मिल रहा है तो बस एक बार इस मंदिर में सच्चे मन से नाग देवता की पूजा करे. आपके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे. धर्म के जानकार डॉक्टर प्रतीक मिश्रपुरी बताते हैं कि इस छोटे से स्थान का बहुत बड़ा महत्व है. जब भगवान शिव की अर्धांगिनी मां सती अपने पिता द्वारा कराए जा रहे यज्ञ में अपने पति के अपमान को सहन नहीं कर सकी तब उन्होंने इस यज्ञ कुंड में कूद कर खुद को स्वाहा कर लिया.
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तब भगवान शंकर के क्रोध से धरती डोलने लगी थी. धरती को अपने फन पर टिकाए हुए शेषनाग भी डगमगाने लगे थे. पूरी सृष्टि में भय व्याप्त हो गया था. तब भगवान शंकर ने देवताओं के आग्रह पर अपने क्रोध पर काबू किया था. जिसके बाद कनखल के इस इस स्थान पर भगवान शिव ने अपनी मृगछाला उतार कर रख दी थी. तब पृथ्वी का भी डोलना बंद हो गया था.