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उत्तराखंड में ओवैसी की धमक से बढ़ी हलचल, गड़बड़ाएगा BJP-AAP-कांग्रेस का समीकरण!

उत्तराखंड में AIMIM के चुनाव लड़ने से राजनीतिक समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं. AIMIM उत्तराखंड की कुछ सीटों पर किस्मत आजमाएगी. यानी साफ है कि बीजेपी-कांग्रेस-आप और अब एआईएमआईएम की एंट्री के बाद मुकाबला और भी दिलचस्प होगा. हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो AIMIM के चुनाव लड़ने से कांग्रेस को नुकसान और बीजेपी को फायदा होगा.

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रुड़की

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Published : Oct 27, 2021, 10:10 PM IST

Updated : Oct 27, 2021, 10:51 PM IST

रुड़कीः ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी बुधवार को उत्तराखंड पहुंचे. हालांकि ओवैसी का ये दौरा राजनीतिक नहीं था. लेकिन उसके बावजूद भी राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है. कारण ये है कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. ऐसे में प्रदेश में भाजपा, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अब एआईएमआईएम की एंट्री के साथ मुकाबला दिलचस्प होने वाला है.

भाजपा, कांग्रेस और आप के बाद अब ओवैसी की पार्टी की एंट्री से विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण की राजनीति अपने चरम पर होने की संभावना है. एआईएमआईएम के उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष डॉ. नय्यर काजमी के मुताबिक आगामी कुछ दिनों में पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशियों का ऐलान कर सकती है. हालांकि ये भी स्पष्ट है कि उत्तराखंड में एआईएमआईएम पार्टी का कोई वजूद नहीं है. प्रदेश के दो से तीन जिलों के अलावा अन्य किसी जिले में पार्टी कार्यकर्ता भी मौजूद नहीं है. ऐसे में पार्टी को चुनाव में ऐसे उम्मीदवारों को उतारना होगा जिनका वर्चस्व अन्य उम्मीदवारों से कई अधिक हो.

उत्तराखंड में ओवैसी की धमक से बढ़ी हलचल

क्या कहते हैं समीकरणः70 विधानसभा सीटों वाले उत्तराखंड में में जादुई आंकड़े के लिए 36 का संख्या बल चाहिए. 70 में से तकरीबन 22 सीटों पर मुस्लिम और दलित वोटों का गठजोड़ अहम भूमिका निभा सकता है. लेकिन यह भी जरूरी नहीं कि दलित और मुस्लिम एक साथ वोट करें ही. जहां बीएसपी की अच्छी खासी मौजूदगी है, वहां मतों का बंटवारा हुआ है. इसके अलावा कांग्रेस और बीजेपी को भी दलित वोट मिलता रहा है.

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हरिद्वार सबसे अहम जिलाःहरिद्वार जिला उत्तराखंड का सबसे बड़ा जिला है. जिले में 11 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें से 10 सीटों पर दलित और मुस्लिम प्रभावी भूमिका में हैं. राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो जिले की 11 विधानसभाओं में पिरान कलियर, भगवानपुर, मंगलौर, खानपुर व हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा में मुस्लिम मतदाता निर्णायक संख्या में है. जबकि रानीपुर, ज्वालापुर, झबरेड़ा व लक्सर जैसी सीटों पर भी मुस्लिम वोटर चुनाव को प्रभावित करते हैं. इसके अलावा उधमसिंह नगर की 9 सीट, देहरादून की 3 सीटों पर भी मुस्लिम-दलित समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका में हैं.

ओवैसी का सियासी गणितः एआईएमआईएम जिन 22 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, उन सीटों में भी करीब आधा दर्जन सीटों पर सर्वाधिक मुस्लिम और दलित आबादी है. इन सीटों में हरिद्वार जिले की पिरान कलियर, खानपुर, मंगलौर, लक्सर, झबरेड़ा, और नैनीताल की हल्द्वानी विधानसभा सीट शामिल हैं. इसके अलावा तमाम मुस्लिम घनी आबादी वाली सीटों पर भी वोटिंग प्रतिशत काफी रहा है. जैसे-जैसे ईवीएम मशीनें खुलेंगी तभी लोगों का फैसला सामने आ पाएगा, लेकिन इतना तो तय है कि उत्तराखंड की नई सरकार बनने में मुस्लिम वोटरों का अहम रोल होगा.

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क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञःराजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो अभी उत्तराखंड में एआईएमआईएम का वजूद नहीं है. आगामी विधानसभा चुनाव पर ओवैसी की पार्टी कोई खास प्रभाव नहीं डाल पाएगी. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि ओवैसी की पार्टी सिर्फ मुस्लिम वोट बैंक पर असर डालेगी, जिसका सीधे-सीधे नुकसान कांग्रेस, बसपा या आप पार्टी को हो सकता है. एआईएमआईएम के मजबूत तरीके से चुनाव लड़ने का फायदा सीधे-सीधे भारतीय जनता पार्टी को होगा.

काजमी को प्रदेश की जिम्मेदारीः हाल ही में रुड़की में AIMIM का पहला राजनीतिक कार्यक्रम के दौरान डॉ. नय्यर काजमी को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई. अब उत्तराखंड में एआईएमआईएम का जनाधार बढ़ाने की जिम्मेदारी डॉ. नय्यर काजमी पर है. कार्यक्रम में एआईएमआईएम यूपी के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली भी आये थे. पार्टी ने डॉ. नय्यर काजमी को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी देकर मुस्लिम वोटरों को हथियाने की कोशिश की है.

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बहरहाल, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के यूपी के बाद उत्तराखंड में भी चुनाव लड़ने से न सिर्फ सियासी पारा बढ़ा है बल्कि चुनाव में ध्रुवीकरण की राजनीति के चरम पर पहुंचने की संभावना भी बढ़ गई है. बता दें कि असदुद्दीन ओवैसी की अल्‍पसंख्‍यक मतदाताओं पर अच्‍छी पकड़ मानी जाती है और राज्‍य के कई जिलों में अल्पसंख्यक मतदाताओं की अच्‍छी खासी संख्‍या है. मसलन उत्तराखंड के देहरादून, उधम सिंह नगर, हरिद्वार और हल्‍द्वानी में मुस्लिम वोटर काफी संख्‍या में रहते हैं.

गौरतलब है कि हरिद्वार, उधमसिंह नगर से लेकर हल्द्वानी और देहरादून में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समाज के लोग रहते हैं. ऐसे में ओवैसी की एंट्री से चुनावी ध्रुवीकरण की राजनीति आने वाले समय में उत्तराखंड में भी देखने को मिलेगी. उत्तराखंड का अल्पसंख्यक वोटर ज़्यादातर कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता है. हालांकि आम आदमी पार्टी भी सेंधमारी में जुटी है.

Last Updated : Oct 27, 2021, 10:51 PM IST

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