रुड़की:भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जहां आस्था, श्रद्धा और विश्वास की त्रिवेणी का संगम न केवल शहरों बल्कि गांव देहातों में देखा जाता है. हरिद्वार धर्म और आध्यात्म की ऐसी अनुपम नगरी है जहां हर दिन अधिकांश आश्रमों से धर्म और आध्यात्म आधारित उपदेश गूंजते हैं, वहीं, इसी के पास स्थित पिरान कलियर (Piran Kaliyar) से सूफियों के मानव कल्याण का संदेश भी दिया जाता है.
रुड़की से 7 किलो मीटर की दूरी पर बसी सूफी संतों की नगरी पिरान कलियर (Piran Kaliyar) में एक अलग ही दुनिया बस्ती है. जिन्हें मस्तमलंगों की दुनिया कहा जाता है. दरअसल ये मस्तमलंग दुनियावी रीतिरिवाज से बिल्कुल अलग होते हैं, ना परिवार ना कोई ख्वाहिश और ना ही कोई चाहत, बस अपनी ही धुन और अपनी ही दुनिया में खोए ये मस्तमलंग दुनियां भर में बसे हैं. दुनियाभर में मजारों पर इन मस्तमलंगों का डेरा होता है. बस यही वो स्थान है जहां उनका घरबार और सब कुछ है. पिरान कलियर भी उन स्थानों में एक है. बता दें, पिरान कलियर में चार धुनें रजिस्ट्रर्ड हैं, चारों धुनों पर सैकड़ो मस्तमलंग रहते हैं जो ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ को अंजाम देते हैं.
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इन दिनों पिरान कलियर(Piran Kaliyar) स्थित विश्व प्रसिद्ध दरगाह हजरत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक का सालाना उर्स चल रहा है. उर्स में शिकरत करने आए दूर दराज से मस्तमलंग कलियर स्थित डेरों पर आशिकी में लीन हैं. रफाई धुनें के बाबा ने बताया कि उनको मजार शरीफ में आराम फरमा सूफ़ीओं से सच्ची मुहब्बत है. उन्हीं के इश्क में वह दुनियां भुलाए हैं.
बाबा बताते हैं कि धुनों पर मौजूद मस्तमलंगों की गिजा चिलम है, हालांकि ये सेहत के लिए हानिकारक होती है, बावजूद इसके वो इसे अपनी ग़िज़ा मानते हैं, वो बताते हैं कि यदि तीन दिन उन्हें खाना ना दिया जाए तो उनपर कोई फर्क नही पड़ेगा. बस चिलम के सहारे वो अपनी भक्ति में लीन रहते हैं.
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बता दें पिरान कलियर सूफी सन्तों की नगरी कहलाती है, क्योंकि यहां विश्व प्रसिद्ध सूफी हज़रत मखदूम अलाउद्दीन अली अहमद साबिर पाक की दरगाह है. दरगाह से अक़ीदत और सच्ची मुहब्बत रखने वाले लोग यहां आते हैं. अपनी बिड़गी बनाते हैं. कहते हैं दरबार में सच्चे दिल से जो मांगा जाता वो उसे हासिल होता है. दरबार-ए- साबिर पाक का प्रत्येक वर्ष सालाना उर्स मनाया जाता है जो इन दिनों चल रहा है. उर्स में दूर दराज से अकीदतमंद दरबार में हाजरी लगाते हैं. इन्हीं अकीदतमंदों में एक फौज मस्तमलंगो की भी होती है,जिन्हें दरबार के अलावा और कोई धुन नहीं होती.
वहीं, ये मस्तमलंग अपने परिवारों को छोड़कर दरगाहों की शरण में रहते हैं और ख़िदमत को अंजाम देते है. मस्तमलंगों की दुनिया बेहद दिलचस्प होती है. इनके धमाल को देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर हो जाता है. उर्स के दौरान ये मस्तमलंग धमाल (करतब) करते हैं. जिसमें ये अपने ऊपर तलवार, हंटर आदि चीजों से वार करते हुए दिखाई देते हैं. इनका मानना है कि ये सब दरबार की सच्ची मुहब्बत का प्रमाण है. जिससे इनको कोई नुकसान नहीं पहुंचता. वहीं, अगर बात करें इनके जीवन यापन की करें तो ये बेहद सादा होता है. लोगों और जरुरतमंदों की मदद करना ही इनके जीवन का मकसद होता है.