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संतान की रक्षा के लिए रखा जाता है अहोई अष्टमी का  व्रत,  ऐसे करें पूजा - अहोई माता

संतान की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए किया जाने वाला अहोई अष्टमी व्रत आज यानी 21 अक्टूबर को किया जा रहा है. इस व्रत पर माता पार्वती की पूजा की जाती है. महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर नहाकर व्रत का संकल्प लेती हैं. इसके बाद पूरे दिन व्रत रखकर शाम को सूर्यास्त के बाद अहोई माता की पूजा की जाती है. फिर तारों को अर्घ देकर व्रत पूरा किया जाता है.

अहोई अष्टमी व्रत

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Published : Oct 21, 2019, 2:44 AM IST

Updated : Oct 21, 2019, 8:22 AM IST

हरिद्वार:जहां एक ओर महिलाएं पत्नी रूप में अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं. वहीं दूसरी ओर मां के रूप में अहोई अष्टमी का व्रत रखकर अपने बच्चों की सुरक्षा, लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुख समृद्धि की कामना करती हैं. शास्त्रों के अनुसार अहोई अष्टमी का सबसे पहला व्रत माता सीता ने अपने पुत्र लव और कुश के लिए रखा था. आज अहोई अष्टमी का व्रत है, जानिए इस व्रत के बारे में पूरी जानकारी इस रिपोर्ट में.

बच्चों की लंबी उम्र और उनके कष्टों को दूर करने के लिए महिलाएं अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता का व्रत रखती हैं. अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन अहोईमाता (पार्वती) की पूजा की जाती है. जिन लोगों को संतान नहीं हो पा रही हो उनके लिए ये व्रत विशेष है. यह उपवास आयुकारक और सौभाग्यकारक होता है.

अहोई अष्टमी व्रत

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ज्योतिषाचार्य प्रतीक मिश्र पूरी बताते हैं कि अहोई अष्टमी कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष में मनाई जाती है. इस दिन महिलाएं अपने बच्चों के लिए अहोई का व्रत रखती हैं. अहोई माता का स्वरूप मां पार्वती का स्वरूप है, दुर्गा सप्तशती में इसका वर्णन भी मिलता है. कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से संतान के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. इस दिन महिलाएं सुबह से निर्जला व्रत रखती हैं और शाम होने पर अहोई की कथा सुनती और सुनाती हैं. इस व्रत को रखने वाली महिलाएं अहोई माता से अपने बच्चों के लिए दुआ करती हैं कि उनके सभी दुखों को मां दूर करें.

प्रतिक मिश्र पुरी का कहना है कि व्रत वाले दिन महिलाएं अपने बच्चों को ना डांटे और रात के समय तारे देखकर अपना व्रत खोलें. इस दौरान ध्रुव तारे का काफी महत्व है. इस व्रत की पूजा करने का अलग-अलग विधान हैं. इस व्रत में अहोई माता के आगे घी का दीपक जलाया जाता है. चावल, रोली, मोली, पुष्प से माता की पूजा की जाती है. पूजा में विशेष तौर पर चांदी के आभूषणों का प्रयोग होता है.

वहीं कई जगह पहले अहोई माता की रोली, पुष्प, दीप से पूजा कर उन्हें दूध भात अर्पित किया जाता है. जिसके बाद हाथ में गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा (बयाना) लेकर अहोई की कथा सुनी जाती है. कथा के बाद माला गले में पहनकर और गेंहू के दाने तथा बयाना सासु मां को देकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है.

जिसे एक माला में पिरोकर रखा जाता है और अहोई के दिन बच्चों के गले में डाला जाता है, जिससे बच्चों के सभी कष्टों का निवारण हो जाए. साथ ही अहाई के बाद चांदी की माला को दीपावली के दिन निकालकर जल के छींटे देकर सुरक्षित रखा जाता है. हर साल इस माला में चांदी के दो दाने जोड़े जाने की भी परंपरा है.

अपने बच्चों के लिए व्रत रखने वाली महिला मनु शिवपुरी का कहना है कि अहोई माता का व्रत हम अपने बच्चों के लिए रखते हैं. मान्यता है कि हमारे द्वारा की गई पूजा का फल हमारे बच्चों को मिलता है. वे कहती हैं कि बच्चों को हर प्रकार की परेशानी से अहोई माता बचाती है. प्राचीन काल में इस व्रत को बेटों के लिए रखा जाता था, लेकिन अब इस व्रत को बेटियों के लिए भी किया जाने लगा है. इसके साथ ही घर में लक्ष्मी के रूप में आने वाली बहू के लिए भी इस व्रत को रखा जाना चाहिए, जिससे घर की सुख-शांति बनी रहती है.

Last Updated : Oct 21, 2019, 8:22 AM IST

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