रुड़की:उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के लिए कुछ ही वक्त बचा है. सभी पार्टियां प्रदेश में अलग-अलग अंदाज में अपना प्रचार करने में जुटी हैं. कोई बिजली-पानी फ्री देने का वादा कर रहा है, तो कोई शिक्षा-चिकित्सा और रोजगार की गारंटी ले रहा है. चाहे सत्ताधारी बीजेपी हो या फिर विपक्षी दल, दावों और वादों में कोई भी किसी से पीछे नहीं है. कुल मिलाकर उम्मीदों का मेला सज चुका है.
उत्तराखंड में बारी-बारी से सत्ता की कमान अलग-अलग पार्टियों में बदलती रही. अगर कुछ नहीं बदला तो वो है अंतिम छोर पर बैठे आदमी की जिंदगी. उत्तराखंड में पहाड़ के दुर्गम इलाकों का हाल तो छोड़ दीजिए, मैदानी जनपद हरिद्वार के इस गांव के हालात आपको यह सोचने पर मजबूर कर देंगे कि क्या ऐसा भी हो सकता है कि कोई इलाका शहर या गांव का हिस्सा ही ना हो.
हरिद्वार जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर हजारा टोंग्या गांव में आजादी के 75 साल बाद भी यहां के लोग सिर्फ लोकसभा और विधानसभा के वोटर हैं. उन्हें न तो अपना मुखिया चुनने का अधिकार और न पंचायत या निकाय चुनाव में वोट डालने का. हैरत की बात है कि लगभग 600 जनसंख्या वाले इस क्षेत्र में न बिजली की कोई व्यवस्था है न सड़क व शौचालय की.
विडंबना देखिए, पूरे देश में घर-घर शौचालय बन रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद लोगों को शौचालय बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. लेकिन इस गांव में शौचालय नहीं हैं. इससे साफ है कि अधिकारियों के काम में झोल है और हरिद्वार जिला अभी पूरी तरह खुले में शौच मुक्त नहीं हो सका है.
यहां लगभग 125 परिवार हैं, पर उनके लिए अपना मुखिया चुनने की मनाही है. कुल मिलाकर, वो उस व्यवस्था से बाहर हैं जो पंचायत राज के नाम से पूरे देश में जानी जाती है. टोंग्या गांव के निवासी किरणपाल सवाल उठाते हैं कि उनके पास सरकार से करने के लिए बहुत सारे सवाल हैं. वो किसी एक राजनीतिक दल की सरकार से खफा नहीं हैं, उनके लिए तो किसी ने भी कुछ नहीं किया चाहे वो भाजपा हो या फिर कांग्रेस.
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अंग्रेजों ने 1932 में बसाए थे पूर्वज:हजारा टोंगिया को वन क्षेत्र से बाहर लाने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे श्यामलाल ने बताया कि साल 1932 में ब्रिटिश शासनकाल में हिमालयी क्षेत्रों में प्लांटेशन के लिए अलग-अलग क्षेत्रों से श्रमिकों को लाया गया था. इन श्रमिकों में उनके पूर्वज भी थे, जिनको इस क्षेत्र में पौधे लगाने और पेड़ बनने तक परवरिश की जिम्मेदारी दी गई थी. जंगल बनाने के लिए प्लांटेशन की व्यवस्था को टोंगिया नाम से पहचान मिली. इस जगह को हजारा टोंगिया के नाम से जाना गया. यहां से कुछ दूरी पर हरिपुर टोंगिया भी है.
श्यामलाल बताते हैं अंग्रेजों ने उनके पूर्वजों को यहीं बसा दिया था. उनको प्रति परिवार लगभग 12-12 बीघा भूमि दी गई थी, जिस पर खेती करते आ रहे हैं. साल 1980 तक उन लोगों ने प्लांटेशन किया. बाद में यह वन क्षेत्र राजाजी राष्ट्रीय पार्क क्षेत्र के अधीन आ गया.
33 साल पहले शुरू हुआ था पुनर्वास: हजारा टोंगिया क्षेत्र टाइगर रिजर्व का हिस्सा है. यहां मानवीय गतिविधियों की मनाही है. फिर भी इन परिवारों का पुनर्वास नहीं किया जा रहा है. श्यामलाल ने बताया कि साल 1988 में यहां रहने वाले सभी परिवारों के पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. उन्हें आधा-आधा बीघा भूमि बुग्गावाला के पास ही खानपुर रेंज के सिकरौढा ब्लाक में आवंटित कर दी गई. हमें आवास बनाने के लिए धनराशि देने को कहा गया था. पर बाद में ऐसा नहीं हो सका. तब से सभी परिवारों का पुनर्वास अधर में है. जबकि 125 परिवारों की लिस्ट तैयार है. इस लिस्ट में परिवारों के बच्चों तक के नाम अंकित किए गए थे. यह लिस्ट घर-घर जाकर तैयार की गई थी. अधिकारियों ने इसका सत्यापन भी किया था.
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दूसरे गांव पढ़ने जाते हैं बच्चे:डब्ल्यूडब्ल्यूएफएन (World Wide Fund for Nature) के सहयोग से कक्षा पांचवीं तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक सेंटर बना है. छठी से 12वीं तक की पढ़ाई दूसरे गांवों में जाकर होती है. यहां सेंटर यानी स्कूल का पक्का निर्माण नहीं किया जा सकता. इसलिए 5वीं तक के लिए टिन का स्ट्रक्चर बनाया गया है.