देहरादून: उत्तराखंड में सशक्त भू कानून की मांग को लेकर मोबाइल टावर पर चढ़ा युवक सुरेंद्र सिंह रावत 6 घंटे बाद उतर गया है. सिटी मजिस्ट्रेट कुसुम चौहान द्वारा शासन के साथ वार्ता के आश्वासन पर सुरेंद्र सिंह रावत टावर से नीचे उतर गया है. पुलिस ने सुरेंद्र को अस्पताल में भर्ती कराया है. सुबह करीब साढ़े 7 बजे सुरेंद्र सिंह रावत मोबाइल टावर पर चढ़ गया था. युवक ने भू कानून की मांग पूरी ना होने पर आत्महत्या करने की धमकी दी थी.
बता दें कि उत्तराखंड सशक्त भू कानून की मांग को लेकर देहरादून के गांधी पार्क में 15 दिन से धरने पर बैठे क्रांतिकारी सुरेंद्र सिंह रावत आज सुबह पटेल नगर के मोबाइल टावर पर चढ़ गया था. उन्होंने भू कानून की मांग पूरी ना होने पर आत्महत्या करने की धमकी दी. सुरेंद्र ने एक वीडियो जारी करते हुए कहा है कि अगर वह आत्महत्या करता है तो इसकी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की होगी. मामले की सूचना पर तुरंत पटेल नगर कोतवाली पुलिस मौके पर पहुंची गई थी. इसके कुछ देर बाद ही सिटी मजिस्ट्रेट कुसुम चौहान भी मौके पर पहुंच गई थी और युवक से लगातार वार्ता करने का प्रयास कर रही थी.
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राज्य गठन से है सख्त भू कानून की मांग: भू कानून उत्तराखंड के लिए कोई नया मुद्दा नहीं है. राज्य स्थापना के बाद से ही भू कानून की मांग उठने लगी थी. उस दौरान उत्तर प्रदेश का ही भू अधिनियम प्रदेश में लागू रहा. राज्य बनने के बाद काफी तेजी से जमीनों की खरीद-फरोख्त शुरू हो गई. इसी को देखते हुए एनडी तिवारी सरकार में भू कानून को लेकर कुछ संशोधन किए गए. उत्तराखंड दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से जुड़ा हुआ है. यहां 71 फीसदी वनों के साथ 13.92 फीसदी मैदानी भूभाग है, तो 86% पर्वतीय क्षेत्र है.
एनडी तिवारी तिवारी सरकार ने साल 2003 में उत्तर प्रदेश जमीदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम 1950 की धारा 154 में संशोधन किया. इसमें बाहरी प्रदेश के लोगों को आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की अनुमति का नियम तय किया था. यही नहीं, कृषि भूमि पर खरीद को सशर्त रोक लगाई गई थी.
उधर, 12.5 एकड़ तक की कृषि भूमि खरीदने की अनुमति देने का अधिकार जिलाधिकारी को दिया गया था. उद्योगों की दृष्टि से सरकार से अनुमति लेने के बाद भूमि खरीदने की व्यवस्था की गई थी. यही नहीं, जिस परियोजना के लिए भूमि ली गई है उस परियोजना को 2 साल में पूरा करने की भी शर्त रखी गई थी. हालांकि इसमें बाद में कुछ शिथिलता की गई.
इसके बाद भी भू कानून का मुद्दा शांत नहीं हुआ और प्रदेश में बाहरी प्रदेश के लोगों द्वारा बड़ी मात्रा में जमीन खरीदने का मामला सियासत में भी देखने को मिला. लिहाजा, खंडूरी सरकार ने नियम में कुछ और सख्ती करते हुए 500 वर्ग मीटर की अनुमति को और कम करते हुए 250 वर्ग मीटर कर दिया. हालांकि त्रिवेंद्र सरकार ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए साल 2018 में खंडूरी सरकार के इस नियम को खत्म कर दिया. जिसके बाद प्रदेश में बाहर से आने वाले लोगों को जमीन खरीदने को लेकर पूरी आजादी मिल गई.
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क्या है हिमाचल का भू कानून:हिमाचल में भू कानून काफी सख्त है. यहां जमीनों की खरीद-फरोख्त के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं. खासतौर पर कृषि भूमि की खरीद-फरोख्त के नियम काफी मुश्किल हैं. इसमें कृषि भूमि को किसान के द्वारा ही खरीदा जा सकता है. इसमें भी वह किसान जो हिमाचल में लंबे समय से रह रहा हो.
उत्तराखंड में 90 फीसदी जनसंख्या कृषि पर निर्भर है. खास बात यह है कि राज्य स्थापना के समय करीब 7.8 चार लाख हेक्टेयर कृषि भूमि थी. अब महज 6.48 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि ही बची है. इस तरह देखा जाए तो अबतक करीब 1.22 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि कम हो चुकी है, जो काफी चिंता की बात है. इसीलिए कृषि भूमि में खरीद-फरोख्त को लेकर विशेष नियम की जरूरत है.