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इस साल बीजेपी-कांग्रेस के कई नेता हुए 'पैदल', अर्श से फर्श तक की पूरी कहानी

उत्तराखंड में साल 2022 कई नेताओं के लिए बड़े राजनीतिक जख्म लेकर आया. इस दौरान सत्ता में बेहद पावरफुल माने जाने वाले कई नेता अर्श से फर्श की तरफ जाते नजर आए. ऐसे नेताओं की सूची में न केवल कांग्रेस के चेहरे शामिल हैं, बल्कि कुछ ताकतवर भाजपाई भी अपना रुतबा कायम रखने में नाकामयाब रहे. राज्य में कौन से हैं ये राजनेता और यह साल क्यों रहा इनके लिए खराब. पढ़िए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...

Year Ender 2022
अर्श से फर्श पर लाने वाला रहा साल 2022

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Published : Dec 21, 2022, 11:35 AM IST

अर्श से फर्श पर लाने वाला रहा साल 2022.

देहरादूनःउत्तराखंड में साल 2022 की शुरुआत राजनीतिक रूप से बड़ी चुनौती भरी थी. विधानसभा चुनाव के चलते मुख्य रूप से बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों के लिए यह साल काफी अहम था. जबकि चुनावी वर्ष होने के कारण राजनेताओं के सामने इस साल अपने राजनीतिक भविष्य को बचाने की चुनौतियां भी थी. इन सबके बीच ऐसे कई नेता हैं, जिनको साल की शुरुआत से ही ऐसे झटके मिले कि उनका राजनीतिक भविष्य ही सवालों के घेरे में आ गया. यूं तो प्रदेश में इन नेताओं की लंबी फेहरिस्त है. लेकिन हम बात करेंगे, उन नेताओं की जो सत्ता में ताकतवर स्थिति में दिखे पर 2022 आते ही अपनी पोजीशन से उन्हें हाथ धोना पड़ा.

कांग्रेस के लिए खराब रहा साल 2022ः सबसे पहले बात कांग्रेस की. क्योंकि उत्तराखंड में बारी-बारी सत्ता में आने की परंपरा इस बार टूट गई और राजनीतिक रूप से साल 2022 की शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव के परिणामों के साथ कांग्रेस पार्टी (Uttarakhand Congress) को तगड़ा झटका लगा. इस तरह कहा जा सकता है कि साल 2022 राजनीतिक दल के रूप में देखें तो कांग्रेस के लिए उत्तराखंड में बेहद खराब रहा.

हरक सिंह रावत को बड़ा नुकसानःकांग्रेसी राजनेताओं के रूप में देखें तो सबसे ज्यादा नुकसान में कद्दावर नेता हरक सिंह रावत रहे. साल 2021 तक बीजेपी में रहकर सबसे ताकतवर मंत्री के रूप में सत्ता के करीब रहने वाले हरक सिंह रावत 2022 आते ही न केवल अपने रूतबे को खो बैठे, बल्कि कांग्रेस में शामिल होने के दौरान उन्हें जिस तरह नजर अंदाज किया गया, उससे उनकी अपनी व्यक्तिगत छवि को भी खासा नुकसान हुआ. इसके बाद कांग्रेस ने उनकी जगह उनकी बहू को टिकट देकर उनके राजनीतिक भविष्य पर प्रश्न खड़े कर दिए. हरक सिंह रावत के लिए इससे भी बुरा तब हुआ, जब विधानसभा चुनाव के परिणाम निकले और उनकी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं चुनाव हार (Anukriti Gusain Lost Election from Lansdowne) गईं.

हरीश रावत के राजनीतिक भविष्य पर बुरा असरःकांग्रेस नेता हरीश रावत (Congress Leader Harish Rawat) को भी साल 2022 ने बड़े झटके दिए. एक तरफ पार्टी के सत्ता से दूर रहने के चलते मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना अधूरा रह गया तो दूसरी तरफ जानकार मानते हैं कि अपनी अधिक उम्र के कारण उन्होंने सत्ता में शीर्ष पर पहुंचने का अपना यह आखिरी मौका भी खो दिया. इस राजनेता के लिए सत्ता में कांग्रेस का न आना ही परेशानी नहीं रहा, बल्कि विधानसभा चुनाव में एक और हार उनके खाते में जुड़ गई. इस तरह हरीश रावत के राजनीतिक भविष्य पर भी साल 2022 बुरा असर छोड़ गया.

गणेश गोदियाल को लगा दोहरा झटकाःकांग्रेस में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल (Ganesh Godiyal) के लिए भी यह साल कुछ अच्छा नहीं रहा. विधानसभा चुनाव में श्रीनगर विधानसभा सीट से बेहद कम अंतर से उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इतना ही नहीं चुनाव के दौरान पार्टी के लिए मजबूती से काम करने के बावजूद उन्हें 2022 में अपना प्रदेश अध्यक्ष का पद भी खोना पड़ा. इस तरह साल 2022 में उन्हें दोहरा झटका लगा.

प्रीतम सिंह को गंवाना पड़ा नेता प्रतिपक्ष का पदःइस सूची में प्रीतम सिंह का भी नाम शामिल है. जिन्होंने भले ही चकराता विधानसभा सीट से अपने लगातार जीत के रिकॉर्ड को कायम रखा और साल की शुरुआत में चकराता से विधायक चुनकर आने में सफलता हासिल की, लेकिन इस कामयाबी के बावजूद भी न तो वो नेता प्रतिपक्ष बन सके और न ही प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी को हासिल कर पाए. उल्टा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद उन्हें अपना नेता प्रतिपक्ष का पद भी गंवाना पड़ा.
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RSS के प्रांत प्रचारक युद्धवीर को पद से धोना पड़ा हाथःउत्तराखंड में एक और चेहरा है, जो बेहद ताकतवर माना गया, लेकिन साल 2022 में कुछ आरोपों के साथ इस चेहरे को उत्तराखंड से विदा लेनी पड़ी. हालांकि, यह नाम सक्रिय राजनीति से नहीं है. हम बात आएसएस (RSS) में उत्तराखंड के प्रांत प्रचारक युद्धवीर की कर रहे हैं. युद्धवीर उत्तराखंड में आरएसएस के प्रांत प्रचारक के रूप में बेहद ताकतवर माने जाते रहे और बीजेपी सरकार में उनकी ताकत को मुख्यमंत्री से कम नहीं माना गया, लेकिन साल 2022 में निर्विवाद इस चेहरे को कुछ आरोपों के चलते चर्चाओं में आना पड़ा. जिसके बाद युद्धवीर को उत्तराखंड में प्रांत प्रचारक के पद से हाथ धोना पड़ा.

मदन कौशिक को बीजेपी ने किया दरकिनारःउत्तराखंड में साल 2022 के दौरान बीजेपी के भी ऐसे कई चेहरे थे, जो कभी ताकतवर माने गए, लेकिन एकाएक उन्हें सत्ता और संगठन से अलविदा कह दिया गया. इसमें सबसे पहला और बड़ा नाम मदन कौशिक का है. मदन कौशिक हरिद्वार से विधायक हैं और पिछले कई बार से लगातार इस सीट पर जीत हासिल करते रहे हैं. बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर लंबे समय तक काम करने वाले मदन कौशिक उत्तराखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे.

साल 2020 में न केवल मदन कौशिक (Madan Kaushik) को बीजेपी में संगठन के सबसे बड़े अध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा, बल्कि बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री के तौर पर भी उन्हें जगह नहीं दी गई. हालांकि, वे राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आमंत्रित सदस्य बनाए गए हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि मदन कौशिक को जिस तरह बीजेपी दरकिनार किया है, उसने उनके राजनीतिक भविष्य पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिए हैं.

अरविंद पांडे का रुतबा नहीं रहा कायमःउत्तराखंड बीजेपी में दूसरा चेहरा अरविंद पांडे (BJP Leader arvind Pandey) का है, जो पिछली बीजेपी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे और संघ के कुछ बड़े पदाधिकारियों के करीबी होने के साथ उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का भी करीबी माना जाता है. साल 2022 में बीजेपी की सरकार दोबारा आने के बाद उन्हें विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर विधायक बनने के बावजूद कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया. इस तरह यह नेता सत्ता के करीब होने के बावजूद मंत्री पद से दूर रहकर अपने पूर्व के रुतबे को कायम रखने में कामयाब नहीं हो पाए.

बंशीधर भगत और बिशन सिंह चुफाल को कैबिनेट में नहीं मिली जगहःइस सूची में बंशीधर भगत (Bansidhar Bhagat) और बिशन सिंह चुफाल का नाम भी शामिल है. ये दोनों ही नेता पिछली बीजेपी सरकार में मंत्री भी रहे और बंशीधर भगत ने तो बीजेपी के अध्यक्ष के तौर पर भी जिम्मेदारी संभाली, लेकिन साल 2022 में जहां एक तरफ बंशीधर भगत को न तो कैबिनेट में जगह दी गई, उल्टा अध्यक्ष पद से भी हाथ धोना पड़ा. उधर, दूसरी तरफ बिशन सिंह चुफाल भी इस बार कैबिनेट में अपनी जगह नहीं बना पाए. इस तरह देखा जाए तो इन दोनों नेताओं के लिए साल 2022 कुछ खास अच्छा नहीं रहा.

विधानसभा चुनाव की परीक्षा में पास नहीं हो पाए यतीश्वरानंदःबीजेपी के ऐसे ही नेताओं में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के बेहद करीबी स्वामी यतीश्वरानंद (Swami Yatishwaranand) का भी नाम शामिल है. हालांकि, यतीश्वरानंद पिछली बीजेपी सरकार में ही पहली बार कैबिनेट मंत्री बने, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के करीबी होने के कारण उन्हें सरकार में सबसे ताकतवर मंत्री के रूप में देखा जाता रहा. प्रदेश में बीजेपी के इस बार फिर सत्ता में आने और मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी के फिर से काबिज होने के बाद यतीश्वरानंद का मंत्री बनना भी तय था, लेकिन साल 2022 में विधानसभा चुनाव की परीक्षा में यतीश्वरानंद पास नहीं हो पाए और इस तरह उनके लिए यह साल किसी बड़े झटके से कम नहीं रहा.

प्रदेश में ये बड़े चेहरे हैं, जो 2022 में वक्त या कहे की किस्मत की मार के चलते अपने कद को पूर्व की तरह रुतबा कायम रखने में कामयाब नहीं हो पाए. इस मामले में कांग्रेस के नेता कहते हैं कि भले ही उनकी पार्टी के कुछ नेताओं को चुनावी परीक्षा में कामयाबी हासिल न हुई हो, लेकिन उन्होंने विपक्ष के तौर पर अपना काम किया है और इसीलिए सरकार को कई मामलों में विभिन्न मुद्दों पर घुटने टेकने पड़े हैं.

वहीं, राजनीतिक रूप से बीजेपी के भीतर बड़े चेहरों को दरकिनार करने के मामले में कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया बीजेपी के नेताओं की भी है. पार्टी के प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी कहते हैं कि बीजेपी में इस तरह से राजनीतिक रूप से नहीं सोचा जाता. पार्टी में निष्ठावान और काम करने वाले नेताओं को पूरी तरजीह दी जाती है और सभी को काम भी दिया जाता है.

राज्य में राजनीतिक दलों से जुड़े इन राजनेताओं के लिए साल 2022 कुछ कड़वे अनुभव दे गया. वरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा कहते हैं कि प्रदेश में इस साल की शुरुआत विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के लिए खराब अनुभव से शुरू हुई और इसमें कई नेताओं को व्यक्तिगत रूप से विभिन्न कारणों के चलते नुकसान भी झेलना पड़ा.
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