देहरादून:हर साल चार फरवरी को वर्ल्ड कैंसर डे मनाया जाता है. कैंसर डे मनाने का उद्देश्य लोगों को कैंसर के प्रति जागरुक करना है, ताकि समय रहते लोग कैंसर के लक्षण पहचान सकें और समय से इस घातक बीमारी का इलाज कराकर अपना जीवन बचा सकें. उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में भी कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन समस्या ये है कि यहां कैंसर का इतना अच्छा उपचार नहीं मिल पा रहा है. उत्तराखंड के सबसे बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज दून हॉस्पिटल में कैंसर मरीजों के लिए सिर्फ एक डॉक्टर है.
आज कल हम जिस तरह की जीनवशैली जी रहे हैं, उसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है और उसके गंभीर परिणाम भी हमारे सामने आ रहे है. यही कारण है कि भारत में भी कैंसर मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. उत्तराखंड में कैंसर मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए दून मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में कैंसर के मरीजों का विशेष पंजीकरण शुरू कर दिया गया है, ताकि मरीजों की सही जानकारी मिल सके. लेकिन समस्या ये है कि यहां भी कैंसर के इलाज के लिए सिर्फ एक डॉक्टर उपलब्ध है. दून मेडिकल कॉलेज के अलावा जिले के किसी भी सरकारी हॉस्पिटल में कैंसर का इलाज संभव नहीं है.
पढ़ें-Womens को सर्वाइकल कैंसर से बचाने में बेहद लाभकारी हो सकती है सर्ववैक वैक्सीन, एक से अधिक पार्टनर भी हो सकते हैं कैंसर के कारण
बता दें कि करीब डेढ़ साल पहले दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कैंसर वॉर्ड शुरू किया गया था. इन डेढ़ सालों में यहां कैंसर का एक ही डॉक्टर उपलब्ध है. ऐसे में डॉक्टर के साथ-साथ मरीजों को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे हालत में डॉक्टर भी मरीजों को पूरा समय नहीं दे पाते हैं. दून मेडिकल कॉलेज के ऊपर न सिर्फ गढ़वाल मंडल के मरीज निर्भर हैं, बल्कि पड़ोसी राज्य यूपी और हिमाचल के मरीज भी यहां बड़ी संख्या में इलाज कराने के लिए पहुंचते हैं.
तमाम दिक्कतों को देखते हुए राज्य सरकार कैंसर नियंत्रण बोर्ड बनाए जाने पर भी विचार कर रही है. राजकीय दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय के कैंसर रोग विभाग के हेड डॉ दौलत सिंह ने बताया कि उत्तराखंड में सबसे अधिक मुंह के कैंसर, आहार नाल का कैंसर और फेफड़े का कैंसर देखने को मिल रहा, इससे पीड़ित 40 प्रतिशत महिलाएं हैं तो 60 प्रतिशत पुरुष हैं.
पढ़ें-विश्व कैंसर दिवस: उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रही मुंह और गर्भाशय कैंसर रोगियों की संख्या