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पहाड़ी उत्पादों को नहीं मिल रहा बाजार, महिला स्वयं सहायता समूह में मायूसी

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Published : Sep 20, 2021, 10:03 AM IST

मसूरी के लंढौर क्षेत्र में महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं पहाड़ी खानपान को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं. लेकिन महिला समूह को उत्पाद बनाकर बेचने के लिए बाजार नहीं मिल पा रहा है, जिससे महिलाएं मायूस हैं.

pahadi food
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मसूरी:शहर के लंढौर क्षेत्र में महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं पहाड़ी खानपान को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं. जिसकी मदद के लिए हापुड़ वालों की दुकान की यूनिट देव भूमि रसोई द्वारा महिला समूह को गढ़वाल के पकवानों का प्रशिक्षण कर निःशुल्क स्थान पर उपलब्ध कराया जा रहा है. महिलाओं द्वारा बनाए गए उत्पाद जिसमें प्रमुखतः अर्से, रोटाना, दाल के पकोड़े, रोट, पहाड़ी, जीरा, लहसुन, तिल अजवाइन का लूण सहित पहाड़ी फलों की चटनी, पहाड़ी अचार, आदि हैं.

देवभूमि रसोई के संचालक पंकज अग्रवाल ने बताया कि महिला स्वयं सहायता समूह की महिलाएं उनके पास आई और उन्होंने कहा कि वे गढ़वाल के उत्पाद बना कर बेचना चाहते हैं. जिस पर उन्हें एक स्थान निःशुल्क दिया गया व उनको प्रशिक्षण भी दिया गया. लेकिन अब समस्या मार्केटिंग की है. क्योंकि मसूरी के ऐसा कोई स्थान नहीं है जहां पर यह अपने उत्पाद बेच सकें. सरकार स्वरोजगार की बात करती है और महिला समूहों को रोजगार के लिए ऋण भी दे रही है. लेकिन उनके पास बाजार नहीं है.

उन्होंने कहा कि अगर नगर पालिका शहीद स्थल के आस पास उन्हें एक काउंटर लगाने की जगह दे देती है तो शायद उनकी मेहनत रंग ला सकती है. वहीं, जब तक उनके पास स्थान नहीं होगा तो लोगों को कैसे पता चलेगा कि यहां पर गढ़वाली उत्पाद बनाए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि मसूरी में कार्निवल जब लगता है तो एक दिन के लिए ही फूड फेस्टिवल लगाया जाता है. तो एक दिन से कैसे पहाड़ी खाने का प्रचार होगा. इसके लिए तो एक स्थाई स्थान होना चाहिए.

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उन्होंने कहा कि सरकार पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत को बचाने की बात करती है लेकिन यहां का शिल्प, रंगोली, ऐपण, कपडे़ आदि का कोई बाजार नहीं है. ऐसे में कैसे इन चीजों को पर्यटकों तक पहुंचाया जा सकता है. मसूरी में किसी भी होटल या रेस्टोरेंट में गढ़वाली व्यंजन नहीं बनते हैं. हां, केवल साल भर में एक दिन फूड फेस्टिवल में यह व्यंजन बनाए जाते हैं.

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वहीं, मां जगदंबा महिला स्वंय सहायता समूह की अध्यक्ष विनीता चौहान का कहना है कि हम कुछ करना चाहते हैं इसके लिए महिलाओं का सहयोग लिया जा रहा है. लेकिन जब उनका बनाये हुए सामान बाजार में नहीं मिलेगा तो कैसे महिला सशिक्तकरण की बात हो सकती है.

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