देहरादून:उत्तराखंड में इस बार का विधानसभा चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है. मिशन 2022 के लिए सभी पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है. राज्य गठन के बाद प्रदेश में अभी तक तीसरा सशक्त विकल्प नहीं उभर पाया है. स्थिति यह है कि अभी तक हुए चार विधानसभा चुनावों में दो बार कांग्रेस तो दो बार भाजपा सत्ता में आई है. तीसरे मजबूत विकल्प के अभाव में प्रदेश की राजनीति भाजपा और कांग्रेस के आसपास ही सिमट कर रह गई है.
9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश राज्य से अलग होकर नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था. उस दौरान यूपी में अपना सियासी वर्चस्व रखने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी भी सियासी विरासत के तौर पर नवगठित राज्य में अपने अस्तित्व को मजबूत करने की कवायद में जुटी. इसके साथ ही 90 के दशक से अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन करने वाली उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) भी एक क्षेत्रीय दल के रूप में अपनी पहचान रखती थी. बावजूद इसके समय बदला, मतदाताओं की विचारधारा बदली और सियासी समीकरण में भी बदलाव होना शुरू हो गया.
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव-2022 को लेकर प्रदेश में थर्ड फ्रंट की सियासत एक बार फिर से मुखर होती हुई नजर आने लगी है. विधानसभा चुनाव से पहले उत्तराखंड में तीसरा मोर्चा सुर्खियों में आता है तो प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी और विपक्षी पार्टी कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. ऐसे में क्या कई थर्ड फ्रंट उत्तराखंड के सियासी गणित को बिगाड़ने में अहम किरदार निभा सकता है.
प्रदेश में 2007 और 2012 में क्षेत्रीय दलों के समर्थन से ही सरकारें बनी हैं. ऐसे में किंग मेकर की भूमिका के लिए क्षेत्रीय दल एक फिर जद्दोजहद कर रहे हैं. उत्तराखंड में अभी तक द्विदलीय व्यवस्था ही चली आ रही है. ऐसे में आगामी विधासनभा चुनाव में थर्ड फ्रंट यानी क्षेत्रीय दल के रूप में आम आदमी पार्टी या उत्तराखंड क्रांति दल जैसी पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस की राह में रोड़ा अटका पाएंगे या फिर, 2022 के चुनाव में भी क्षेत्रीय दल महज कुछ वोट काटकर संतुष्ट हो जाएंगे.
राष्ट्रीय दलों की बढ़ सकती हैं मुश्किलें
वरिष्ठ पत्रकार भगीरथ शर्मा का कहना है कि थर्ड फ्रंट बीजेपी और कांग्रेस की मुश्किलें तो बढ़ाएंगे, लेकिन सत्ता सुख भोग पाएंगे यह कहना अभी जल्दबाजी होगा. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की जनता शुरू से ही थर्ड फ्रंट देखती रही है. चाहे वह उत्तराखंड क्रांति दल के रूप में हो या फिर बहुजन समाजवादी पार्टी के रूप में. हालांकि यह दोनों पार्टियों ने राज्य गठन के बाद अपना अच्छा प्रदर्शन भी किया था, लेकिन मौजूदा समय अब परिस्थितियां बदल गईं हैं.
ये भी पढ़ें- भारत को डिजिटल गेमिंग क्षेत्र में नेतृत्व करना चाहिए : पीएम मोदी