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तो क्या 2016 की तरह इस बार भी उत्तराखंड में आएगा राजनीतिक भूचाल ?

उत्तराखंड में 2022 में विधान सभा चुनाव होने हैं. इससे पहले ही बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं की बयानबाजी शुरू हो चुकी है. 2016 में राजनीतिक भूचाल देख चुका उत्तराखंड क्या 2022 में भी इतिहास दोहराने जा रहा है.

Uttarakhand politics
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Published : Jan 5, 2021, 3:12 PM IST

Updated : Jan 5, 2021, 4:08 PM IST

देहरादून:2022 में होने वाले विधान सभा चुनाव में महज एक साल का ही वक्त बचा है. इसे देखते हुए प्रदेश की दोनों मुख्य पार्टियां भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने तरीके से जनता के बीच जाकर, जनता को रिझाने की कोशिश में जुटी हुई हैं. ताकि चुनाव के बाद सत्ता पर काबिज हो सकें. हालांकि, मौजूद समय में दोनों दल अपने संगठन को मजबूत बनाने से लेकर, नाराज नेताओं को भी एकजुट करने में जुटी हुई हैं. इसी क्रम में जहां एक ओर कांग्रेस अपने सभी गुटों को एक साथ जोड़ कर आगे बढ़ रही है तो वहीं भाजपा, अपने बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को मजबूती दे रही है.

उत्तराखंड की राजनीति में कुछ बड़ा होने वाला है !

लेकिन इन दिनों उत्तराखंड की राजनीति में साल 2016 की तरह ही नेताओं के एक पार्टी से दूसरे पार्टी में शामिल होने की चर्चाएं जोरों पर हैं. आखिर क्या है इस तरह की चर्चाओं की वजह. क्या वास्तव में एक बार फिर 2016 में हुई घटना दोहरायी जा सकती है. क्या है वास्तविक तस्वीर ? पढ़िए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

किसी भी नेता का एक दल को छोड़कर दूसरे दल में शामिल होना आम बात है. यह अमूमन हर जगह देखा जाता रहा है. लेकिन चुनाव से पहले एक दल को छोड़कर दूसरे दल में शामिल होने की घटनाएं अधिकांश देखी जाती हैं. इसकी कई वजह होती हैं. कुछ नेता चुनावी टिकट को लेकर अपना दल बदलते हैं. कुछ नेता अपने लाभ को लेकर पार्टी बदल देते हैं. हालांकि यह घटना उत्तराखंड की राजनीति के लिए कोई नई बात नहीं है. अमूमन हर विधानसभा चुनाव के दौरान नेताओं का अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होना आमतौर पर देखा गया है. लेकिन साल 2016 उत्तराखंड की राजनीति के लिए ऐसा साल रहा जिसने उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल ला दिया था.

2016 में टूट गई थी कांग्रेस

2016 में आया था राजनीतिक भूचाल

साल 2016 में कुछ ऐसी घटना हुई जिसने उत्तराखंड की राजनीति में पूरी तरह से भूचाल ला दिया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के शासनकाल के दौरान, पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में हरक सिंह रावत समेत 9 वरिष्ठ नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया था. जिसके बाद से ही उत्तराखंड की राजनीति में एक नया अध्याय जुड़ गया. उस घटना को कांग्रेस के नेता कभी भी नहीं भूल पाएंगे. यही वजह है कि अब एक बार फिर कांग्रेस के नेता साल 2016 की घटना साल 2021 में होने का दावा करने लगे हैं. कांग्रेस की दिग्गज नेता इंदिरा हृदयेश ने इस बात को सार्वजनिक मंच पर कहकर और भी सनसनी फैला दी.

कुर्सी और सत्ता के लालच में दलबदल करते हैं नेता

नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश के बयान के तो कई मायने निकाले जा रहे हैं, लेकिन वास्तविकता तो यही है कि चुनाव के दौरान नेताओं का दलबदल करना आम बात है.

वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक दलों में भगदड़ मचना आम बात है. जो हमेशा से ही देखा जाता रहा है. इसमें मुख्य रूप से जब किसी नेता को उसके पार्टी से टिकट नहीं मिलता है तो वह किसी और पार्टी का दामन थाम लेता है. या फिर कुछ नेताओं को ऐसा लगता है कि उनका भविष्य उस पार्टी में सुरक्षित नहीं है लिहाजा वह दूसरी पार्टी का दामन थाम लेते हैं. लिहाजा, राजनीति में अब यह एक सामान्य प्रक्रिया सी बन गयी है कि लोग कुर्सी और सत्ता के लालच में ऐसा करते हैं.

मंत्रियों की नाराजगी पर कांग्रेस की आस !

इस बार भी मच सकती है 2016 की तरह भगदड़

वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने बताया कि साल 2016 में राजनीति में हुई भगदड़ इस बार फिर से होने की संभावना है. इसकी मुख्य वजह यह है कि अगर मौजूदा नेतृत्व नहीं बदला जाता है तो ऐसे में भाजपा के युवा नेता जो मौजूदा नेतृत्व से संतुष्ट नहीं हैं वह आगामी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को झटका दे सकते हैं. यही नहीं, वर्तमान समय में जो वर्तमान नेतृत्व से संतुष्ट नहीं हैं वह खुलेआम असंतोष व्यक्त कर रहे हैं. जिसमें तमाम विधायक, मंत्री भी शामिल हैं. ऐसे में अगर मौजूदा नेतृत्व को हटाया नहीं जाता है तो भविष्य में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से खफा तमाम नेताओं के विद्रोह के आसार लग रहे हैं. इसके साथ ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार वरिष्ठ नेता भी विधानसभा चुनाव में खफा हो सकते हैं. साथ ही जय सिंह रावत ने कहा कि कांग्रेस में भगदड़ मचती रहती है, लेकिन इस बार भाजपा में भगदड़ मचने की संभावना है.

विधायकों की नाराजगी क्या गुल खिलाएगी ?

डूबते हुए जहाज में नहीं रखेगा कोई कदम- भाजपा

उधर भाजपा के प्रदेश महामंत्री खजान दास ने बताया कि नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की उम्र का ही तकाजा है जिस वजह से इस तरह की बयानबाजी कर रही हैं. भाजपा का कोई भी विधायक कांग्रेस के संपर्क में नहीं है और ना ही कभी होगा. क्योंकि, कांग्रेस एक डूबता हुआ जहाज है ऐसे में कोई भी उस जहाज पर चढ़ना नहीं चाहेगा. यही नहीं, मौजूदा त्रिवेंद्र सरकार का कोई भी कैबिनेट मंत्री नाराज नहीं है. लिहाजा साल 2016 में जो कांग्रेसी नेता, भाजपा में शामिल हुए हैं वह भाजपा के साथ खड़े हैं और भाजपा के साथ ही खड़े रहेंगे. लेकिन नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए लोगों को भ्रमित करने के लिए, ऐसा बयान दे रही हैं.

भाजपा से परेशान तमाम नेता ढूंढ रहे हैं रास्ता- कांग्रेस

कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि राजनीति में कभी भी कोई भी घटना घट सकती है. ऐसे में भविष्य की किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. जो व्यक्ति राजनीति में सक्रिय रहता है उसके लिए हमेशा संभावनाएं रहती हैं. धस्माना का कहना है कि साल 2016 में जिन नेताओं ने कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा का दामन थामा था, वो सभी परेशान हैं. इनमें हरक सिंह रावत, रेखा आर्य और यशपाल आर्य समेत अन्य नेता शामिल हैं.

सिसायत जो न करा दे वो कम है. अगर विधानसभा चुनाव 2022 में भी उत्तराखंड में राजनीतिक भगदड़ मचती है तो इसमें आश्चर्य की बात नहीं होगी. हां अगर बीजेपी में ऐसा होता है तो 'पार्टी विद डिफरेंस' के लिए ये फजीहत वाली बात होगी.

Last Updated : Jan 5, 2021, 4:08 PM IST

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