देहरादूनः देश में सस्ते इलाज का सपना तब तक नहीं देखा जा सकता, जब तक लूट मचाने वाली बड़ी फार्मा कंपनियों से गरीबों को मुक्ति न दिला दी जाए. इसका जवाब है प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना. लेकिन तब जब इस योजना का सही और व्यापक उपयोग हो. हालांकि देश भर की तरह उत्तराखंड में भी इसको लेकर न तो लोग जागरूक हैं और न ही योजना चलाने वाले गंभीर. जानिए इस स्पेशल रिपोर्ट में.
केंद्र सरकार ने साल 2015 में प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना की घोषणा की थी. इसके बाद धीरे-धीरे तमाम राज्यों में इस योजना के तहत विभिन्न केंद्र खोले जाने लगे. उत्तराखंड में भी कोरोना संक्रमण की आहट के साथ ही इस योजना को लॉन्च कर दिया गया. मार्च 2020 में योजना की शुरुआत के साथ ही प्रदेश के युवाओं को इस योजना के तहत न केवल रोजगार की संभावनाएं दिखाई गईं, बल्कि गरीबों को भी दवाइयों के रूप में एक सस्ते इलाज का भरोसा दिलाया गया.
देश भर में प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्रों को खोला जा रहा है और अब तक कुल करीब 6,700 केंद्र खोले जा चुके हैं. इस तरह मौजूदा वित्तीय वर्ष में इन केंद्रों द्वारा 519.34 करोड़ रुपए का कारोबार किया जा चुका है. उत्तराखंड में इस योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में जन औषधि केंद्र खोले गए हैं. जिनकी संख्या राज्य में 100 से भी कम है. यूं तो इन केंद्रों में दवाइयां लेने के लिए लोग पहुंच रहे हैं, लेकिन इन केंद्रों में सस्ती दवाइयों का लाभ लेने वाले लोगों की संख्या बेहद कम है, जो लोग इन केंद्रों पर पहुंच रहे हैं. उनका कहना है कि यहां पर ब्रांडेड कंपनियों की दवाइयों के मुकाबले बेहद सस्ती दवाइयां मिलती हैं और इसका उन्हें फायदा भी मिल रहा है. लेकिन इन केंद्रों पर सभी दवाइयां नहीं मिलने के कारण उन्हें महंगी दवाइयों को भी ब्रांडेड कंपनियों वाली दवा की दुकानों में जाकर खरीदना पड़ता है.
जेनेरिक दवाओं का फायदा
प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना का मकसद लोगों को जेनेरिक दवाइयों को उपलब्ध करवाना है. जेनेरिक दवा यानी ऐसी दवाइयां जो किसी भी ब्रांड की नहीं होतीं लेकिन उतनी ही असरदार होती हैं, जितनी कि कोई महंगी ब्रांडेड दवाइयां. खास बात ये है कि जेनेरिक दवाइयां ब्रांडेड दवाइयों के मुकाबले 60 से 90% तक सस्ती होती हैं. जिससे गरीबों को इसका खास तौर पर लाभ मिल सकता है.