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International Mother Language Day: कब और क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस? जानिए इस वर्ष का थीम

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Published : Feb 21, 2023, 9:35 AM IST

21 फरवरी को पूरा विश्व अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना रहा है, मातृभाषा पर आए खतरे को लेकर शिक्षा जगत भी चिंतित है. ऐसे में मातृभाषाओं के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण के लिए बहुभाषी शिक्षा-शिक्षा को बदलने की आवश्यकता थीम पर अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जा रहा है.

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देहरादून: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तमाम क्षेत्रों की संस्कृति और बौद्धिक विरासत की रक्षा के साथ ही भाषाई, सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषावाद का प्रचार और दुनियाभर की तमाम मातृभाषाओं के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने और उनके संरक्षण के लिए हर साल 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है. दरअसल, आम जीवन में भाषा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यही वजह है कि यूनेस्को द्वारा हर साल 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को मनाया जाता है.

ऐसे में हर साल 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर विश्वभर में भाषा और संस्कृति से संबंधित तमाम कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. जिसमे शिक्षा और साहित्य से जुड़े लोग न सिर्फ देश के तमाम भाषाओं पर चर्चा करते हैं, बल्कि तमाम भाषाओं को सरल और सुगम बनाने के लिए भी टिप्स दिए जाते हैं. दरअसल, मातृभाषा आम जीवन में एक महत्वपूर्ण रोल अदा करती है. क्योंकि, रोजमर्रा की जीवन में लोग अपने मातृभाषा का ही प्रयोग करते हैं, ऐसे में इस आधुनिक युग में इस संजो कर रखना एक बड़ी चुनौती है.

क्या है मातृभाषा: मातृभाषा का अर्थ है मां की भाषा यानी यह जीवन की पहली भाषा है, जो हम अपने मां से सीखते हैं. आमतौर पर जो भाषा घरों में बोली जाती है, जिसे हम बचपन से सुनते उसे मातृभाषा कहते हैं. आमतौर पर देश में हजारों मातृभाषा हैं. क्योंकि हर छोटे-छोटे क्षेत्र में अलग-अलग तरह की भाषाएं बोली जाती हैं मुख्य रूप से देश में संस्कृत, हिंदी, उर्दू, पंजाबी, बांग्ला, भोजपुरी, इंग्लिश समेत तमाम ऐसी भाषाएं हैं, जो प्रचलित हैं. लेकिन मातृभाषा इससे भिन्न ही होती है. क्योंकि, देश के कई राज्यों में हिंदी भाषा बोली जाती है, लेकिन इन राज्यों में मातृभाषा अलग- अलग हो जाती है.

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21 फरवरी को क्यों मनाया जाता है अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस: 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाए जाने की घोषणा यूनेस्को ने 17 नवंबर 1999 में की थी. जिसके बाद पहली बार 21 फरवरी 2000 को वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया. दरअसल, कनाडा के रहने वाले बांग्लादेशी रफीकुल इस्लाम ने बांग्ला भाषा आंदोलन के दौरान ढाका में 1952 में हुए नृशंस हत्याओं को स्मरण करने के लिए इस दिवस को मानने के लिए 21 फरवरी के दिन को चुनने का सुझाव दिया था. जिसके बाद से ही हर साल 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को मनाया जाता है.

अस्तित्व बचाने में 16 लोगो की हुई थी मौतें: मातृभाषा के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए सबसे पहला आंदोलन बंगाल में शुरू हुआ था. दरअसल, 21 फरवरी 1952 को मातृभाषा का अस्तित्व बनाए रखने के लिए ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों और तमाम सामाजिक संगठनों ने एक बड़ा आंदोलन किया था. उस दौरान तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार ने उस आंदोलन को खत्म किए जाने को लेकर प्रदर्शनकारियों पर गोलियां भी चलवा दी थी, जिसके चलते यह पूरा आंदोलन नरसंहार में तब्दील हो गया था. हालांकि, इस गोलीकांड में 16 लोगों की मौत भी हो गई थी. लिहाजा मातृभाषा के अस्तित्व को बचाने के लिए हुए इस बड़े आंदोलन में शहीद हुए युवाओं की स्थिति के लिए यूनेस्को ने साल 1999 में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा कर दी.

यूनेस्को हर साल निर्धारित करती है थीम: यूनेस्को हर साल अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस को वृहद स्तर पर और बेहतर ढंग से मनाए जाने को लेकर एक थीम निर्धारित करती है, जिसके तहत की कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और उसे आगे बढ़ाया जाता है. इसी क्रम में साल 2023 के लिए यूनेस्को ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाने के लिए टीम भी निर्धारित कर दी है, जिसके तहत वर्तमान साल के लिए 'बहुभाषी शिक्षा-शिक्षा को बदलने की आवश्यकता' (Multilingual Education- A necessity to transform education) थीम निर्धारित की है. हालांकि, पिछले साल यानी 2022 में इस महत्वपूर्ण दिवस को मानने के लिए 'बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग: चुनौतियां और अवसर' थीम को निर्धारित किया था.

विदेशी भाषा सीखने के चलते मातृभाषा हो रही है लुप्त: आज के इस डिजिटल दुनिया में बेहतर रोजगार पानी को लेकर मातृभाषा और राष्ट्रभाषा को छोड़ विदेशी भाषाओं को सीखने की होड़ लगी हुई है. यही वजह है कि आज लोग अपनी मातृभाषा को भूलते जा रहे हैं, लिहाजा एक बड़ी वजह यही है कि मातृभाषा धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है. हालांकि, वर्तमान समय में भाषा को सरल और सुगम बनाए जाने को लेकर भारत समेत कई बड़े देश कार्य योजना तैयार कर रहे हैं. साथ ही छात्रों को तमाम भाषाओं की जानकारी मिल सके, इसको देखते हुए कई विश्वविद्यालयों में भाषाओं को लेकर भी नए कोर्स तैयार किए जा रहे हैं, ताकि नए जनरेशन को भाषाओं का ज्ञान भी मिल सके.

भारत में है 22 संवैधानिक भाषाएं: भारत के संविधान में भारतीय भाषाओं का उल्लेख है जिसके तहत वर्तमान समय में भारत देश में 22 संविधानिक भाषाएं हैं. जिसमे हिंदी, संस्कृत, असमिया, बांग्ला, कन्नड़, पंजाबी, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, उड़िया, सिंधी, उर्दू, बोडो, मलयालम, कश्मीरी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, संथाली, मैथिली, डोगरी शामिल हैं. हालांकि, देश में हिंदी और अंग्रेजी अधिकारी रूप से राजभाषा है. यही नहीं भारत देश में हिंदी और अंग्रेजी बोलने वाले लोगों की संख्या करीब 32 करोड़ है, जोकि कुल जनसंख्या का करीब 27 फीसदी है. आपको बता दें कि संविधान के निर्माण के समय 14 भाषाओं को शामिल किया गया था. इसके बाद 1967 में सिंधी भाषा, 1992 में कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली भाषा और 2004 में संथाली, मैथिली, डोगरी एवं बोडो भाषा को शामिल किया गया.

दुनिया भर में हैं करीब 6900 भाषाएं: संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में करीब 6900 भाषाएं बोली जाती हैं. लेकिन इन सभी भाषाओं में से 90 फीसदी भाषाएं ऐसी हैं, जिन्हें बोलने वाले लोगों इस संख्या एक लाख से भी कम है. हालांकि, विश्व भर में बोले जाने वाली सर्वाधिक भाषाओं की बात करें तो हिंदी, पंजाबी, बंगला, अंग्रेजी, जापानी, स्पेनिश, रूसी, पुर्तगाली और अरबी समेत अन्य 100 भाषाएं हैं. लेकिन इन सभी करीब 100 भाषाओं में से शिक्षा प्रणाली और सार्वजनिक क्षेत्र में कुछ ही भाषाओं को वैश्विक स्तर पर जगह मिल पाई है.

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