देहरादून:उत्तराखंड में साल 2022 का विधानसभा चुनाव फ्री के वादों, नेताओं के बयानों और धुव्रीकरण के लिए याद रखा जाएगा. इस चुनाव में पहली बार राज्य में फ्री की सियासत को लेकर जमकर बयानबाजी हुई. आम आदमी पार्टी से शुरू हुई ये कवायद कांग्रेस और बीजेपी तक भी पहुंची. इसके बाद राज्य में धर्म के नाम पर भी इस बार जमकर राजनीति हुई.
अध्यात्मिक राजधानी से लेकर, धर्म संसद के मामले ने राज्य की राजनीति को खूब गरमाया. इसके बाद चुनावों के आखिर में वोटों के ध्रुवीकरण और तुष्टीकरण की कोशिशें भी की गई, जो कि उत्तराखंड के चुनावों में इस बार खुलकर सामने आया. इसके अलावा ऐसी कई और चीजें रही जिसके लिए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 याद रखा जाएगा. आइये ऐसे ही चुनावी मुद्दों और घटनाओं पर एक नजर डालते हैं.
इस बार चुनाव में प्रचार के लिए पहुंचे नेताओं ने उत्तराखंड में खूब बदजुबानी की. साथ में ही नेताओं ने ध्रुवीकरण के तीर भी जमकर छोड़े. चुनाव से पहले धर्मनगरी हरिद्वार में धर्म संसद का मामला सामने आया. जिससे राज्य के साथ ही देश की राजनीति भी गर्माई. इस मामले ने सोशल मीडिया पर खूब तूल पकड़ा.
जैसे-जैसे चुनाव निर्णायक दौर में पहुंचा भाजपा ने तुष्टिकरण के मुद्दे पर कांग्रेस को असहज करने की कोशिश की. कांग्रेस ने भी तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने को लेकर बनाए गए तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा मुद्दे से भाजपा को घेरने का प्रयास किया. आम आदमी पार्टी ने भी आध्यात्मिक राजधानी से लेकर फ्री बिजली गारंटी की भी सियासत की. इसके अलावा ऐसे कई और मुद्दे रहे जिनकी वजह से 2022 के चुनाव याद रखा जाएगा.
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इस साल हुए चुनाव में भाजपा ने आखिर में ध्रुवीकरण का दांव चला. मुस्लिम विवि के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ, अमित शाह से लेकर पार्टी नेताओं से जमकर कांग्रेस को घेरा. लव जिहाद से लेकर लैंड जिहाद, हिजाब और आखिर में सीएम धामी का समान नागरिक संहिता का मुद्दा ध्रुवीकरण की सियासत का आखिरी दांव माना गया.
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