देहरादूनःउत्तराखंड अपना 22वां स्थापना दिवस मना रहा है. प्रदेश में मौजूदा समय में भाजपा की सरकार है. भाजपा सरकार के तीसरे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को 21वें राज्य स्थापना दिवस पर प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. इसके अलावा सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए ये इसलिए भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि आने वाले समय में भाजपा चुनाव में जनता के सामने होगी. ऐसे में राज्य स्थापना दिवस की भूमिका और अधिक बढ़ जाती है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये कि इन बीते 21 सालों में उत्तराखंड ने क्या कुछ खोया और क्या कुछ पाया.
उत्तराखंड राज्य को विरासत में मिला कर्जःवरिष्ठ पत्रकार भागीरथ शर्मा बताते हैं कि वर्ष 2000 में जब उत्तर प्रदेश से राज्य अलग होकर उत्तराखंड राज्य बना तो विरासत में हमें कर्ज मिला. वरिष्ठ पत्रकार शर्मा बताते हैं कि जब बंटवारा हुआ तो बंटवारे में उत्तराखंड के हिस्से में ढाई हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज था, जो इन 21 सालों में 55 हजार करोड़ तक पहुंच चुका है. आज भी यह स्थिति है कि हर महीने सरकार को 200 से 300 करोड़ रुपये तक का ऋण बाजार से उठाना पड़ता है. उत्तराखंड में लगातार घट रही उत्पादकता और बढ़ रहे खर्च के बदौलत आज प्रदेश लगातार कर्ज में डूबता जा रहा है, जिसका कोई भी सरकार अभी तक स्थाई समाधान नहीं ढूंढ पाई है.
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औद्योगिक क्षेत्र में उछालःवर्ष 2000 में कई सालों के आंदोलन के बाद अलग राज्य उत्तराखंड का सपना साकार हुआ. शहीदों की शहादत और आंदोलनकारियों की बदौलत तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रदेशवासियों को अलग राज्य उत्तराखंड का तोहफा दिया. इसके बाद 2002 में पहली निर्वाचित सरकार उत्तराखंड में कांग्रेस की बनी. राष्ट्रीय छवि के नेता पंडित नारायण दत्त तिवारी उत्तराखंड के निर्वाचित सरकार के पहले मुख्यमंत्री बने. तिवारी सरकार के कार्यकाल को प्रदेश में औद्योगिक विकास के लिए आज भी याद किया जाता है. कहा जाता है कि तिवारी सरकार में जो औद्योगिक विकास उत्तराखंड के तराई इलाकों में हुआ, उससे प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र में एक नया उछाल मिला.
तिवारी सरकार के बाद नहीं मिला लोकायुक्तः 21 सालों के बाद भी आज उत्तराखंड की पहली कांग्रेस सरकार को कई मायनों में याद किया जाता है. इसमें सबसे बड़ी उपलब्धि मुख्यमंत्री के तौर पर एनडी तिवारी द्वारा 5 साल पूरे करना और लोकायुक्त के लिए कवायद करना है. तिवारी सरकार के बाद कोई भी सरकार प्रदेश में लोकायुक्त के गठन की हिम्मत नहीं दिखा पाई. इसके अलावा तिवारी सरकार को इसलिए भी मजबूत सरकार माना जाता है क्योंकि जिस तरह से उन 5 सालों में राज्य में विकास के रफ्तार से काम हुए, वह रफ्तार अब देखने के लिए नहीं मिलती.
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उत्तराखंड बना ऊर्जा प्रदेशःइन 21 सालों में उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर अप्रत्याशित रूप से विकास हुआ. उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश की तरफ अग्रसर हुआ. हालांकि, इसकी शुरुआत का श्रेय भी तिवारी सरकार को ही जाता है. क्योंकि उत्तराखंड में सबसे बड़ी टिहरी जल विद्युत परियोजना का काम भी 2005 में शुरू हुआ था, जिस दौरान एनडी तिवारी की सरकार थी. वहीं, इसके बाद प्रदेश के कई अलग-अलग इलाकों में जल विद्युत परियोजनाओं की नीव रखी गई. आज प्रदेश में छोटी से लेकर बड़ी सैकड़ों जल विद्युत परियोजनाएं काम कर रही हैं, जो प्रदेश के आर्थिकी में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं.
2013 में लड़खड़ाया उत्तराखंडःइन 21 सालों में प्रदेश को एक बड़ा झटका भी लगा. वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई भीषण आपदा से प्रदेश को बड़ी क्षति हुई. उस दौरान कांग्रेस की सरकार थी. लिहाजा, कांग्रेस सरकार को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. हालात इतने बिगड़े कि मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी तक छोड़नी पड़ी. इसके बाद मुख्यमंत्री के तौर पर हरीश रावत ने हालातों को काफी हद तक सुधारने की कोशिश की, लेकिन 2017 विधानसभा चुनाव आते-आते उनके कुछ अपनों ने ही उनकी सरकार गिरा दी.