देहरादून:पिछले कुछ सालों से उत्तराखंड का मौसम (Uttarakhand Weather) देवभूमि के लोगों को चौंका रहा है. जिस मौसम में बारिश होती थी, उस मौसम में गर्मी पड़ रही है. वहीं, जब लोग गर्मी की उम्मीद करते थे, उस दौरान भयंकर बारिश हो रही है. उत्तराखंड में इस बदले हुए वेदर पैटर्न के आंकड़े किस तरह से हैं और इसके पीछे की क्या मुख्य वजह है. आइए जानते हमारी इस खास रिपोर्ट में...
पोस्ट मानसून सीजन: फिलहाल अक्टूबर का महीना चल रहा है. मौसम विज्ञान के मुताबिक (terminology of meteorology) में इस महीनो को पोस्ट मानसून का माना जाता है. मानसून सीजन खत्म होने के बाद अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर के महीने में मौसम विभाग अनुसार पूरे साल में सबसे कम बरसात होती है, लेकिन इन दिनों उत्तराखंड में कुछ और ही आलम है. अक्टूबर महीने में भी आसमान से बदरा ऐसे बरस रहे हैं, मानो जैसे सावन का महीना हो.
उत्तराखंड में बेमौसम बारिश: उत्तराखंड में लगातार हो रही इस तरह की बेमौसम बारिश का आंकड़ा मौसम विभाग में भी दर्ज है. पिछले 2 सालों के आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि सामान्यतः जिन महीनों में बरसात की उम्मीद की जाती है, उस दौरान बरसात नहीं हो रही है. जबकि बेमौसम बारिश हो रही है. आंकड़े बता रहे हैं कि मानसून में भी कई दिनों तक कभी बारिश नहीं होती है. तो कभी कुछ ही देर में बहुत भारी बारिश पड़ जाती है. यह सारे बदलाव दैवीय आपदाओं के लिहाज से खतरनाक साबित हो रहे हैं.
उत्तराखंड के वेदर पैटर्न में बदलाव: उत्तराखंड में लगातार बदल रहे वेदर पैटर्न के आंकड़े क्या कहते हैं. इसको लेकर जलवायु और मौसम शोधकर्ता से इस बारे में बात की. पूरे साल को मिटीरियोलॉजी के अनुसार 4 भागों में बांटा गया है. मौसम विभाग की शब्दावली में पूरे साल को चार अलग-अलग भागों में बांटा गया है. वहीं सामान्य वर्षा को लेकर के भी कुछ मानक सेट किए गए हैं. साल के शुरुआत के 2 महीने जनवरी और फरवरी को विंटर सीजन माना गया है, जिसमें बरसात की कम ही उम्मीद होती है. सामान्यत आंकड़ों में 101.7mm तक बारिश हो सकती है.
बारिश का संतुलन: इन महीनों के बाद मार्च, अप्रैल और जून प्री मानसून का समय माना जाता हैं. इस दौरान भी हल्की बरसात की उम्मीद की जाती है, जिसका मानक सामान्यतः 158.2mm तक हो सकता है. जून के बाद से लगातार 4 महीने जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर मॉनसून सीजन माना जाता है. इस दौरान अधिकतम बरसात तकरीबन पूरे चार महीनों में 1162.7mm बरसात को सामान्य बरसात माना जाता है. वहीं, मानसून सीजन के बाद अक्टूबर नवंबर और दिसंबर के 3 महीने ऐसे होते है. जिन्हे पोस्ट मानसून का कहा जाता है. इस दौरान पूरे सालभर में सबसे कम तकरीबन पूरे तीन महीने में केवल 55mm बारिश की उम्मीद की जाती है.
उत्तराखंड में मानसून बदल रहा ट्रेंड पिछले साल पोस्ट मानसून में हुई 300% ज्यादा बारिश:मौसम विभाग में रिकॉर्ड किए गए बरसात के आंकड़े चौकाने वाले हैं. मौसम विभाग के आंकड़ों अनुसार पिछले साल यानी 2021 में मानसून सीजन खत्म होने के बाद, पोस्ट मानसून के 3 महीनों में यानी अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में जहां 55mm बरसात एक सामान्य बरसात होती है. लेकिन इस दौरान 219.6mm बरसात हुई. जो सामान्य बरसात से तकरीबन 300 फीसदी ज्यादा है.
पिछले साल 18 से 20 अक्टूबर 2021 तक हुई भारी ओलावृष्टि और बरसात एक बड़ी आपदा के रूप में सामने आयी थी. बरसात के बदले हुए पैटर्न के आंकड़े चौंकाने वाले हैं, जो बताता है कि उत्तराखंड में वेदर पैटर्न कितनी तेज गति से बदल रहा है. पिछले साल और इस बार भी अक्टूबर माह में पोस्ट मानसून का महीना चल रहा है. इस समय भी उत्तराखंड में लगातार मूसलाधार बारिश देखने को मिल रही है.
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साल 2021 में बरसात के आंकड़े: विंटर सीजन में सामान्यतः 101.7mm बरसात होती है, लेकिन हुई 44.5mm यानी 56 फीसदी कम बरसात हुई. प्री मानसून में सामान्यतः 158mm बरसात होती है, लेकिन हुई 244.5 MM यानी सामान्य से 55 फीसदी ज्यादा. मानसून सीजन में सामान्यतः 1162.7mm बरसात की उम्मीद की जाती है, लेकिन हुई 1156.1mm जो तकरीबन सामान्य के बराबर ही है. पोस्ट मानसून में सामान्यतः 55mm बरसात की उम्मीद की जाती है, लेकिन हुई 219.6mm यानी सामान्य से तकरीबन 300 फीसदी ज्यादा.
साल 2022 में बरसात के आंकड़े:विंटर सीजन में सामान्यतः 101.7mm बरसात की उम्मीद होती है, लेकिन हुई 162.1mm यानी सामान्य से 59 फीसदी ज्यादा. प्री मानसून में सामान्यतः 158mm बरसात होती है, लेकिन हुई 107.5mm यानी सामान्य से 32 फीसदी कम. मानसून सीजन में सामान्य 1162.7mm बरसात की उम्मीद की जाती है, लेकिन हुई 1128.1mm. यानी -3 फीसदी कम जो तकरीबन सामान्य के बराबर ही है. पोस्ट मानसून में भी अक्टूबर के शुरुआत के दो सप्ताह लगातार वर्षा बनी हुई है.
बरसात के डिस्ट्रीब्यूशन और फ्रीक्वेंसी में परिवर्तन घातक: मौसम विभाग निदेशक विक्रम सिंह के अनुसार उत्तराखंड में सीजनल बरसात की पैटर्न में बदलाव तो देखने को मिल ही रहा है. इसके अलावा बरसात के डिस्ट्रीब्यूशन और फ्रीक्वेंसी में भी काफी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. जो दैवीय आपदाओं के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार होती है. भले ही बरसात की मात्रा पूरे सीजन में उतनी ही रहे, लेकिन यह इस बात पर बेहद ज्यादा निर्भर करती है कि पूरे सीजन के बरसात वाले दिन (रैनि डेज) कम है या ज्यादा.
यानी यदि रेनी डेज कम है और बरसात उतनी ही हुई है तो मतलब साफ है कि कम दिन में ज्यादा पानी बरसा है. यही नहीं बरसात के डिस्ट्रीब्यूशन पर भी मौसम वैज्ञानिकों की नजर रहती है. जैसे कि पूरे प्रदेश में बराबर बराबर मात्रा में बरसात हो रही है या फिर किसी इलाके में ज्यादा या कम. इस पैटर्न में भी पिछले कुछ सालों में बदलाव देखने को मिले हैं.
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उत्तराखंड मौसम निदेशक विक्रम सिंह के अनुसार पिछले कुछ सालों में बरसात के डिस्ट्रीब्यूशन और फ्रीक्वेंसी में बदलाव देखने को मिला है. इस तरह के आंकड़े रिपोर्ट किए गए हैं कि ज्यादा मात्रा में बरसात बहुत कम समय में कई जगहों पर हुई है और कुछ इलाकें ऐसे भी है, जहां सामान्य बरसात भी पूरे सीजन भर नहीं हुई है.
विक्रम सिंह ने इस मानसून सीजन का उदाहरण देते हुए बताया कि नैनीताल, चंपावत, पौड़ी और हरिद्वार कुछ जिले ऐसे हैं, जहां इस पूरे सीजन में सामान्य से कम वर्षा हुई है. वहीं चमोली, बागेश्वर और पिथौरागढ़ कुछ ऐसे जिलें भी है, जहां सामान्य से काफी ज्यादा बरसात देखने को मिली है. यह बदलाव का स्वरूप ही दैवीय आपदाओं सबसे ज्यादा घातक साबित होता है.
बेमौसम बरसात फसलों के साथ आपदा प्रबंधन के लिए चुनौती:जानकारों की माने तो जहां एक तरफ प्री मानसून गेहूं, बागवानी सहित तमाम तरह की फसलों और लीची आम अमरूद जैसे फलों को नुकसान पहुंचाती है. वही पोस्ट मानसून में होने वाली अत्यधिक बरसात धान, मक्का, दाल और सब्जियों को नुकसान पहुंचाती है. मौसम विभाग की जानकारी अनुसार भी इस बरसात से भले ही जमीन में तरावट अच्छी रहती है, लेकिन उस दौरान तैयार होने वाली फसल के लिए यह बेहद नुकसानदेह होती है.
खासतौर से अक्टूबर में धान और मक्के की खड़ी फसल को पोस्ट मानसून में होने वाली बरसात बर्बाद कर देती है. वही इसके अलावा बेमौसम बरसात आपदा प्रबंधन के लिए भी एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है. जिसमें मॉनसून सीजन के बाद तमाम रिपेयर वर्क या फिर मानसून सीजन में खराब हुए इन स्ट्रक्चर के रिकवरी के लिए मिलने वाले समय में यदि बरसात होती है तो प्रदेश में व्यवस्थाएं पटरी पर नहीं लौट पाती है.