देहरादून: राजधानी देहरादून में जोशीमठ के रहने वाले युवक विपिन रावत (Vipin Rawat murder case in Dehradun) की हत्या के बाद एक बार फिर से रंजिशन अपराध के मामलों की चर्चाएं होने लगी हैं. जिस तरह से मामूली विवाद के बाद दून का कुख्यात गैंगस्टर 'देवेन्द्र अरोड़ा' उर्फ़ 'निक्कू दाई' (Gangster Devendra Arora Nikku Dai) गुनाह के रास्ते पर निकल गया था, शायद वो ही राह उसके भतीजे ने भी पकड़ ली है. देवेन्द्र अरोड़ा' उर्फ़ 'निक्कू दाई ने भतीजे ने मामूली कहासुनी में चमोली निवासी युवक विपिन रावत की हत्या कर दी.
बता दें जोशीमठ निवासी विपिन रावत पुत्र अव्वल सिंह रावत दून की एक प्राइवेट लैब में टेक्नीशियन था. 23 नवंबर की रात वह तीन दोस्तों के साथ इनामुल्ला बिल्डिंग स्थित रेस्टोरेंट में खाना खाने गया था. इसके बाद वह लोग वहां से निकलकर सभी बाहर सड़क पर खड़े थे. इसी दौरान कार से आईं दो महिलाएं और दो युवकों ने उन पर अभद्र टिप्पणी कर दी. इसके बाद कार सवार महिला और विपिन की महिला दोस्त के बीच तनावपूर्ण कहासुनी हो गई. देखते ही देखते चारों लोग विपिन पर हमला करने लगे.
इस बीच विपिन ने माफी मांगी तो किसी तरह मामला शांत हो गया. तभी सभी लोग वहां से निकल रहे थे कि अचानक महिलाओं के साथ मौजूद युवक ने कार से बेसबॉल स्टिक निकालकर विपिन के कमर और सिर पर जबरदस्त हमला कर दिया. जिसके बाद विपिन जमीन पर गिरकर तड़पने लगा. यह देख हमलावर मौके से फरार हो गया. विपिन को स्थानीय लोगों की मदद से सीएमआई अस्पताल पहुंचाया गया. जहां तीन दिन चिकित्सा उपचार के बाद उसे सीरियस कंडीशन में महंत इंद्ररेश अस्पताल में भर्ती कराया गया. जहां शुक्रवार रात विपिन ने दम तोड़ दिया.
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इस दुःखद घटना के बाद 25 नवंबर को विपिन के भाई पंकज की शिकायत पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ मारपीट, गाली-गलौज और जान से मारने की धमकी देने के आरोप में मुकदमा दर्ज कराया गया. इस पूरे घटनाक्रम में जो नाम सामने आया, वह काफी चौंकाने वाला है. वह नाम कुख्यात बदमाश देवेंद्र अरोड़ा उर्फ निक्कू के सगे भाई संजय अरोड़ा के बेटे विनीत अरोड़ा एवं उसकी पत्नी का है. विपिन की हत्या करने वाला आरोपी कोई नहीं बल्कि विनीत अरोड़ा था. सीसीटीवी फुटेज से इस बात की पुष्टि हुई है.
कौन था 'देवेन्द्र अरोड़ा' उर्फ़ 'निक्कू दाई': देवेन्द्र अरोड़ा उर्फ़ निक्कू दाई (Gangster Devendra Arora Nikku Dai) 80 के दशक में उत्तराखंड का गैंगस्टर था. उसकी दहशत का डंका देहरादून से पश्चिम उत्तर प्रदेश बिहार और मुंबई अंडरवर्ल्ड जैसे कई राज्यों में भी बजता था. देवेन्द्र अरोड़ा उर्फ निक्कू एक ऐसा गैंगस्टर था, जिसने न केवल देहरादून शहर में कोहराम मचाया. बल्कि बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम और पूर्वी उत्तर प्रदेश के माफियाओं को साथ जोड़कर इतना बड़ा गैंग खड़ा कर दिया कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री को उसे काबू में लाने के लिए एक स्पेशल टीम का गठन करना पड़ा. निक्कू अंतरराज्यीय गिरोहों का सरगना भी बना. उसे काबू करने में कई राज्यों की पुलिस के पसीने छूट गए.
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देवेंद्र अरोड़ा के निक्कू दाई (Gangster Devendra Arora Nikku Dai) बनने की कहानी कुछ-कुछ वैसी ही है. जैसी अक्सर किसी बॉलीवुड फिल्म में जुर्म के खिलाफ हथियार उठाने वाले किसी किरदार की होती है.. ये कहानी भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दंगों से शुरू होती है. संतराम अरोड़ा भी इन्हीं लोगों में से एक थे. उनका परिवार बंटवारे के बाद हुए दंगों के बाद पाकिस्तान के बन्नूवाल गांव से भारत पहुंचा. जहां से वे देहरादून के प्रेमनगर में आकर बसे. यहां उन्हें शरणार्थी के रूप में मिला पट्टा उनकी नई पहचान बना.
शरणार्थियों के लिये लगाए गए टेंट उनकी नई दुनिया रही. सब कुछ गवां देने के बाद संतराम ने किसी तरह अपना एक छोटा सा फलों के जूस का व्यवसाय शुरू किया. संतराम ने मेहनत करके कुछ रक़म जोड़ी. जिसके बाद रिफ्यूजी कैंप से निकल कर देहरादून के डिस्पेंसरी रोड पर एक मकान खरीदा. संतराम शिक्षा को जरूरत को समझते थे, लिहाजा उन्होंने अपने पांचों बेटों को गांधी इंटर कॉलेज में एडमिशन दिलाया. तीसरे नंबर का बेटा देवेंद्र शांत और समझदार था. वो स्कूल के बाद पिता का हाथ बांटाने के लिये दुकान पर भी बैठता था. एक दिन कुछ ऐसा हुआ, जिसके बाद संतराम का शांत बेटा ताउम्र के लिये अशांत हो गया.
बताया जाता है कि उन दिनों शहर में राजेश भाटिया नाम का एक बदमाश व्यापारियों से रंगदारी वसूला करता था. एक दिन वो संतराम की फ्रूट जूस की दुकान पर भी पहुंचा. उसने संत राम से रंगदारी मांगी. संतराम ने देने से इनकार किया तो भाटिया और उसके साथियों ने बुजुर्ग संतराम के साथ मारपीट की. देवेंद्र उसी वक्त स्कूल से लौट रहा था. उसने अपने पिता को गुंड़ों से छुड़ाना चाहा, जिसमें बदमाशों मे उसकी भी पिटाई कर दी. ये गुंडागर्दी सरेआम होती रही, लेकिन किसी ने भी आगे बढ़कर उन्हें बचाने की कोशिश नहीं की.
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इसके बाद पिता की पिटाई चौराहे पर होते देख, देवेंद्र के मन में गहरा जख्म लगा. वो अपने पिता को अस्पताल ले गया. मरहम पट्टी कराने के बाद उन्हें घर छोड़ आया. अगले कुछ दिन देवेंद्र दुकान पर घायल हालत में खुद ही बैठा. उसका मन अब दुकानदारी से उठ चुका था. वो प्रतिशोध की आग में तप रहा था. उसे हर चीज़ से नफ़रत होने लगी. परिवार के अतीत में बंटवारे की नफ़रत तो वर्तमान में ग़रीबी का बोझ, जिसने उसे और भी अशांत कर दिया. यहीं से शांत देवेंद्र से कुख्यात निक्कू दाई बनने की कहानी शुरू होती है.
एक दिन देवेंद्र दुकान से उठकर साथी का तमंचा चुराकर सीधे घोसी गली पहुंचा. वहां उसे राजेश भाटिया अपने कुछ मवाली साथियों के साथ दिखा. निक्कू सीधे भाटिया के सामने आया. जिसके बाद देवेंद्र ने उसके पेट में तमंचा सटा कर फायर कर दिया. भाटिया की वहीं मौके पर ही मौत हो गई. भाटिया को लहूलुहान हालत में देख उसके साथी वहां से भाग गए. इस हत्याकांड से पूरे शहर में सनसनी फैल गई. पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया. 1980 का ये वो ही दिन था, जब देहरादून में पुलिस क्राइम रिकॉर्ड में निक्कू का खाता खुला.
इस हत्या के आरोप में गिरफ़्तार हुआ, निक्कू कुछ सालों बाद जब जमानत पर छूट कर आया तो उसकी पारिवारिक हालत बेहद खराब हो चुकी थी. निक्कू का नाम जुर्म की दुनिया में दर्ज हो चुका था. लिहाज़ा उसने इसी दुनिया में आगे बढ़ने का फैसला किया. अब देवेंद्र अवैध शराब का धंधा करने लगा. इसके साथ ही उसने अपनी एक गैंग बना डाली. जिसने फिर डालनवाला क्षेत्र में कई लूट की घटनाओं को अंजाम दिया. पुलिस ने उस पर घेरा कसा तो वो भाग कर ऋषिकेश आ गया. वहां से अपने धंधे संचालित करने लगा. निक्कू यहां पर अपना धंधा स्थापित कर ही रहा था कि उसकी अनिल कुमार नाम के एक व्यापारी से दुश्मनी हो गई. उसने ऋषिकेश के नामा हाउस के पास सरेआम अनिल कुमार की गोली मारकर हत्या कर दी. उसी की मोटरसाइकिल लेकर फ़रार हो गया.
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पुलिस पर निक्कू को गिरफ़्तार करने का दबाव बढ़ता जा रहा था. 1982 के उस दौर में ऋषिकेश कोतवाली के सब इंस्पेक्टर राजबीर सिंह यादव हुआ करते थे. उनका सामना एक शाम निक्कू और उसके साथी सत्यबीर त्यागी से हो गया. दोनों तरफ़ से कई राउंड गोलीबारी हुई. जिसमें सत्यबीर त्यागी की मौत हो गई. तब निक्कू एक बार फिर से भागने में कामयाब रहा. अब तक निक्कू को एक बात समझ आ गई थी कि पुलिस से सांठ-गांठ किए बिना उसका धंधा चल पाना मुश्किल है. लिहाज़ा उसने अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा पुलिस तक पहुंचाना शुरू कर दिया. बदले में पुलिस उसके काले कारनामों पर आंख मूंदने लगी. यहीं से निक्कू और भी ज्यादा ताकतवर होने लगा.
निक्कू का राजनीतिक रसूखदार लोगों से दुश्मनी का दौर:अस्सी के दशक में देहरादून में विनोद बड़थ्वाल कॉलेज की राजनीति में अपना परचम फहरा रहे थे. सूर्यकांत धस्माना छा़त्र राजनीति में दाखिल होने वाले थे. इनका एक और दोस्त था, जो बाद में इस पूरी कहानी का मुख्य किरदार बनने वाला था. उसका नाम सुभाष शर्मा था. विनोद बड़थ्वाल, सूर्यकांत धस्माना और सुभाष शर्मा का अपना एक स्टूडेंट ग्रुप था, जो डीएवी कॉलेज की राजनीति में मजबूत दखल रखता था.
विनोद बड़थ्वाल फॉरेस्ट गार्ड पिता के चार बेटों में सबसे बड़े थे. 1983 में वो डीएवी कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. लगभग इसी दौर में उनके छोटे भाई राजेश बड़थ्वाल को छायादीप पिक्चर हॉल के साइकिल स्टेंड का ठेका मिला था. इस ठेके को निक्कू के गुर्गे भी लेना चाह रहे थे. दोनों पक्षों में विवाद हुआ, मारपीट हुई, गोलियां तक चल गई.
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निक्कू वहां से लौट ही रहा था कि किसी ने तमंचे से उस पर पीछे से फायर कर दिया. ये फायर मिस हो गया, लेकिन इस घटना से राजेश बड़थ्वाल और निक्कू की रंजिश शुरू हो गई. ऐसी रंजिश जिसके चलते कई घरों के आंगन से अर्थियां उठी. नौ मई 1983 के दिन देहरादून में एक ऐसा सामूहिक हत्याकांड हुआ, जिससे पूरा शहर सन्न रह गया. इस दिन अपनी काली बुलेट पर राजेश बड़थ्वाल और उसका दोस्त दिलावर, अधोईवाला में रज्जो के घर पहुंचे थे. रज्जो राजेश की प्रेमिका हुआ करती थी. तीनों बैठकर गपशप कर ही रहे थे कि लाल रंग की एक मोटरसाइकिल पर दो युवक घर के बाहर उतरे और दरवाजे को धकेलते हुए अंदर कमरे में दाखिल हुए.
अंदर बैठे तीनों लोग कुछ समझ पाते, तब तक निक्कू और उसके साथी पप्पू कांणा ने प्वाइंट 32 बोर की रिवॉल्वर से दस राउंड से ज्यादा फायर तीनों पर झोंक दिए. राजेश, रज्जो और दिलावर की वहीं मौत हो गई. देहरादून के इस ट्रिपल मर्डर से हड़कंप मच गया. निक्कू पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में कुख्यात हो गया.
निक्कू के खिलाफ हत्या का मुकदमा फिर से दर्ज हुआ. इस बार देहरादून के पुलिस कप्तान शैलेंद्र सागर ने उस पर राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून की भी धारा लगा दी. कुछ समय बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत मिलने पर जब निक्कू बाहर आया तो पूरे देहरादून शहर के अवैध धंधों पर उसका एकछत्र राज स्थापित हो चुका था. उधर छोटे भाई की हत्या के आरोप में विनोद बड़थ्वाल ने निक्कू के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. इसके चलते निक्कू ने विनोद बड़थ्वाल की भी हत्या करने की खुली चुनौती दे डाली. इससे पूरे शहर में एक डर का माहौल हो गया. अब निक्कू का गैंग और डीएवी कॉलेज का छात्र संघ आमने-सामने आ गए थे.
ये वो दौर था जब डीएवी कॉलेज को बदमाशी की नर्सरी कहा जाता था. यहां छात्र नेता भी हथियार रखा करते थे. लिहाज़ा पूरे शहर में ये डर फैल गया था कि दोनों गुटों के आमने-सामने आने पर कोई भी अनहोनी घट सकती है. ये अनहोनी जल्द ही सच साबित हुई. डिस्पेंसरी रोड पर निक्कू के घर के पास ही दोनों पक्षों के बीच एक दिन गोलीबारी हो गई. इस घटना में इन दोनों पक्षों के लोगों को तो गोली नहीं लगी, लेकिन वहां से गुजर रहे जिलाधिकारी के अर्दली के बेटे की गोली लगने से मौत हो गई. इस घटना के बाद निक्कू गिरफ्तार तो हुआ, लेकिन अब वो इतना ताकतवर था कि कुछ ही दिनों में उसे फिर से जमानत मिल गई.
अब निक्कू जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह बन चुका था. शहर में एक समानांतर सत्ता उसकी चलने लगी थी. बहुत कम लोग ही उसका विरोध करने की हिम्मत करते थे. शहर के कुछ नेता भी निक्कू की बिरादरी के वोटों के लालच में उसके साथ मित्रता निभाते थे. ऐसे में निक्कू और उसके संगी साथी खूब चांदी काट रहे थे. चर्चित ट्रिपल मर्डर में भी निक्कू को सबूतों के अभाव बरी कर दिया गया. और इसके चलते पूरे पश्चिम उत्तर प्रदेश में उसकी तूती बोलने लगी.
मुंबई अंडरवर्ल्ड में निक्कू का सिक्का:निक्कू लगातार अपने काले कारनामों को विस्तार दे रहा था. इसी कड़ी में उसके संबंध मुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहम से भी हो गये. दाउद के कहने पर उसने पश्चिम उत्तर प्रदेश में कई शूट आउट किए. दाउद के अलावा सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद और यहां तक कि उस समय के बिहार के धनबाद कोल फील्ड के माफ़ियाओं से भी निक्कू के गहरे संबंध हो गये थे.